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गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

दोहा ग़ज़ल अंगिका, सॉनेट

सॉनेट
जागरण
जागरण का समय जागो
बहुत सोये अब न सोना।
भुज भरे आलस्य त्यागो
नवाशा के बीज बोना।।

नमन कर रख कदम भू पर
फेफड़ों में पवन भर ले।
आचमन कर सलिल का फिर
गगन-रवि को नमन कर ले।।

मुड़ न पीछे, देख आगे
स्वप्न कुछ साकार कर ले।
दैव भी वरदान माँगे
जगत का उद्धार कर दे।।

भगत के बस में रहे वह
ईश जिसको जग रहा कह।।
२१-४-२०२२
•••
दोहा ग़ज़ल (अंगिका):
(अंगिका बिहार के अंग जनपद की भाषा, हिन्दी का एक लोक भाषिक रूप)

काल बुलैले केकरs, होतै कौन हलाल?
मौन अराधे दैव कै, ऐतै प्रातः काल..

मौज मनैतै रात-दिन, होलै की कंगाल.
साथ न आवै छाँह भी, आगे कौन हवाल?.

एक-एक के खींचतै, बाल- पकड़ लै खाल.
नीन नै आवै रात भर, पलकें करैं सवाल..
***

रविवार, 6 सितंबर 2020

हिंदी ग़ज़ल

हिंदी ग़ज़ल
छंद दोहा
*
राष्ट्र एकता-शक्ति का, पंथ वरे मिल साथ।
पैर रखें भू पर छुएँ, नभ को अपने हाथ।।
अनुशासन का वरण कर, हों हम सब स्वाधीन।
मत निर्भर हों तंत्र पर, रखें उठाकर माथ।।
भेद-भाव को दें भुला, ऊँच न कोई नीच।
हम ही अपने दास हों, हम ही अपने नाथ।।
श्रम करने में शर्म क्यों?, क्यों न लिखें निज भाग्य?
बिन नागा नित स्वेद से, हितकर लेना बाथ।।
भय न शूल का जो करें, मिलें उन्हीं को फूल।
कंकर शंकर हो उन्हें, दिखलाते वे पाथ।।
***
संजीव
६-९-२०१९
७९९९५५९६१८

सोमवार, 26 नवंबर 2018

doha muktika

दोहा मुक्तिका
*
स्नेह भारती से करें, भारत माँ से प्यार। 
छंद-छंद को साधिये, शब्द-ब्रम्ह मनुहार।।
*
कर सारस्वत साधना, तनहा रहें न यार।
जीव अगर संजीव हों, होगा तब उद्धार।।
*
मंदिर-मस्जिद बन गए, सत्ता हित हथियार।।
मन बैठे श्री राम जी, कर दर्शन सौ बार।।
*
हर नेता-दल चाहता, उसकी हो सरकार।।
नित मनमानी कर सके, औरों को दुत्कार।।
*
सलिला दोहा मुक्तिका, नेह-नर्मदा धार।
जो अवगाहे हो सके, भव-सागर से पार।।
*
संजीव
२५.११.२०१८

गुरुवार, 16 मई 2013

doha muktika ban ja salil ukaab sanjiv

दोहा ग़ज़ल :
संजीव
*
जमा निगाहें लक्ष्य पर, बन जा सलिल उकाब।
पैर जमीं पर जमाकर, देख गगन की आब।।

हूँ तो मैं खोले हुए, पढ़ता नहीं किताब।
आनंदित मन-प्राण पा, सूखा हुआ गुलाब।।

गिनती की साँसें मिलीं, रखना तनिक हिसाब।
किसे पता कहना पड़े, कब अलविदा जनाब।।

दकियनूसी हुए गर, पिया नारियल-डाब।
प्रगतिशील पी कोल्ड्रिंक, करते गला ख़राब।।

किसने लब से छू दिया, पानी हुआ शराब।
बढ़कर थामा हाथ तो, टूट गया झट ख्वाब।।

सच्चाई छिपती नहीं, ओढ़ें लाख नकाब।
उम्र न छिपती बाल पर, मलकर 'सलिल' खिजाब।।

नेह निनादित नर्मदा, प्रमुदित मन पंजाब।
सलिल-प्रीत गोदावरी, साबरमती चनाब।।

***
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in