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शनिवार, 12 मई 2012

लघुकथा: एकलव्य --संजीव 'सलिल'

लघुकथा:
एकलव्य

संजीव 'सलिल'
*
- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'
- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'
- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'
-हाँ बेटा.'
- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'
*****
-सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम / दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.इन

शुक्रवार, 11 मई 2012

गीत: ओ मेरे मन... संजीव 'सलिल'

गीत:
ओ मेरे मन...

संजीव 'सलिल'
*
धूप-छाँव सम सुख-दुःख आते-जाते रहते.
समय-नदी में लहर-भँवर प्रति पल हैं बहते.
राग-द्वेष से बच, शुभ का कर चिंतन.
ओ मेरे मन...
*
पुलक मिलन में, विकल विरह में तपना-दहना.
ऊँच-नीच को मौन भाव से चुप हो सहना.
बात दूसरों की सुन, खुद भी कर मन-मंथन.
ओ मेरे मन...
*
पीर-व्यथा अपने मन की मत जगसे कहना?
यादों की उजली चादर को फिर-फिर तहना.
दुनियावालों! दुनियादारी करती उन्मन.
ओ मेरे मन...
*
हम सब कठपुतली, सुदूर वह सूत्रधार है.
जिसके वश में हर चरित्र हर कलाकार है.
'सलिल' चाहता वह जैसा, तू करना मंचन.
ओ मेरे मन...
*
वह विराम-अविराम, श्याम-अभिराम वही है.
सुनाता सबकी, किससे उसने व्यथा कही है?
उसस बन जा नेह नर्मदा में कर मज्जन.
ओ मेरे मन...
*



Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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गुरुवार, 10 मई 2012

गीत: खो बैठे पहचान... --संजीव 'सलिल'

गीत:
खो बैठे पहचान...
संजीव 'सलिल'
*

*
खो बैठे पहचान
हाय! हम भीड़ हो गये...
*
विधि ने किया विचार
एक से सृज अनेक दूँ.
करूँ सृष्टि संरचना
संवेदन-विवेक दूँ.

हो अनेक से एक
सृजें सब अपनी दुनिया.
जुडें एक से एक
तजें हँस अपनी दुनिया.

समय हँसा, घर नहीं रहा
हम नीड़ हो गये...
*
धरा-बीज से अंकुर फूटे,
पल्लव विकसे.
मिला शाख पर आश्रय
पंछी कूके-विहँसे.

कली-पुष्प बन सुरभि
बिखेरी- जग आनंदित.
चढ़े ईश-चरणों में
बनकर हार सुवंदित.

हुई जीत मनमीत
अहं जड़, पीड़ हो गये...
*
छिना मायका, मिला
सासरा- स्नेह नदारत.
व्यर्थ हुईं साधना
वंदना प्रेयर आयत.

अमृत छकने गये,
हलाहल हर पल पाया.
नीलकंठ हो सके न
माया ने भरमाया.
बाबुल खोया सजन
न पाया- हीड़ हो गये...
*
टीप: हीड़ना बुन्देली शब्द = मन-प्राण से याद करना.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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बुधवार, 9 मई 2012

गीत: लिखें कहानी... संजीव 'सलिल'

गीत:
लिखें कहानी...
संजीव 'सलिल'
*
सुनी कही कई बार,
आओ! अब लिखें कहानी.
समय कहे भू पर आये
इंसां वरदानी...
*
छिद्रित है ओजोन परत,
कुछ फिक्र कहीं हो.
घातक पराबैंगनी किरणें,
ज़िक्र कहीं हो.
धरती माँ को पहनायें
मिल चूनर धानी...
*
वायु-प्रदूषण से दूभर
सांसें ले पाना.
दूषित पानी पी मुश्किल
जिंदा रह पाना.
शोर कम करो,
मौन वरो कहते हैं ज्ञानी...
*
पुनः करें उपयोग,
समेटें बिखरा कचरा.
सुंदर-स्वच्छ स्वर्ग सी
सुंदर हो वसुंधरा.
गरल पियें अमृत बाँटें,
हो मीठी बानी...
****


Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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गीत: जितनी ऑंखें उतने सपने... --संजीव 'सलिल'

दोहा गीत:
जितनी ऑंखें उतने सपने...
संजीव 'सलिल'
*
*
जितनी ऑंखें उतने सपने...
*
मैंने पाये कर कमल, तुमने पाये हाथ.
मेरा सिर ऊँचा रहे, झुके तुम्हारा माथ..

प्राणप्रिये जब भी कहा, बना तुम्हारा नाथ.
हरजाई हो चाहता, सात जन्म का साथ..

कितने बेढब मेरे नपने?
जितनी ऑंखें उतने सपने...
*
घड़ियाली आँसू बहा, करता हूँ संतोष.
अश्रु न तेरे पोछता, अनदेखा कर रोष..

टोटा जिसमें टकों का, ऐसा है धन-कोष.
अपने मुँह से खुद किया, अपना ही जय-घोष..

लगते गैर मगर हैं अपने,
जितनी ऑंखें उतने सपने...
*
गोड़-लात की जड़ें थीं, भू में गहरी खूब.
चरणकमल आधार बिन, उड़-गिर जाते डूब..

अपने तक सीमित अगर, सांसें जातीं ऊब.
आसें हरियातीं 'सलिल', बन भू-रक्षक दूब..

चल मन-मंदिर हरि को जपने,
जितनी ऑंखें उतने सपने...
*****
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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मंगलवार, 8 मई 2012

दोहा सलिला: अमलतास है धन्य... --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
अमलतास है धन्य...
संजीव 'सलिल'
*

*
चटक धूप सह खिल रहा, अमलतास है धन्य.
गही पलाशी विरासत, सुमन न ऐसा अन्य..
*
मौन मौलश्री संत सम, शांत लगाये ध्यान.
भीतर जो घटता निरख, सत-शिव-सुंदर जान..
*
देवदारु पछता रहा, बनकर भू पर भार.
भू जल पी मरुथल बना, जीवन जी निस्सार..
*
ऊँचा पेड़ खजूर का, एकाकी बिन बाँह.
श्रमित पथिक अकुला रहा, मिली  न तिल भार छाँह..
*
आम्र बौर की पालकी, शहनाई है कूक.
अंतर में ऋतुराज के, प्रकृति मिलन की हूक..
*
कदली पत्रों से सजा, मंडप-बंदनवार.
कचनारी वधु ने किया, केसर-धवल सिंगार..
*
पवन झंकोरे झुलाते झूला, गाकर छंद.
प्रेम पींग जितना बढ़े, उतना ही आनंद..
*
शिशु रवि प्राची से रहा, अपलक रूठ निहार.
धरती माँ ने गोद से, नाहक दिया उतार..
*
जनक गगन के गाल पर, मलती उषा गुलाल.
लाड़ लड़ाती लडैती, जननी धरा निहाल..
*
चहक-चहक पंछी करें, कलरव चारों ओर.
पर्ण डाल पर झूमते होकर भाव-विभोर..
*
शैशव हँसता गोद में, बचपन करे किलोल.
गति किशोर, मति जवानी, प्रौढ़ शांति का ढोल..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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सोमवार, 7 मई 2012

नीर-क्षीर दोहा यमक: मन राधा तन रुक्मिणी... --संजीव 'सलिल'

नीर-क्षीर दोहा यमक:
मन राधा तन रुक्मिणी...
संजीव 'सलिल'
*

*
मन राधा तन रुक्मिणी, मीरां चाह अनाम.
सूर लखें घनश्याम को, जब गरजें घन-श्याम..
*
अ-धर अधर पर बाँसुरी, उँगली करे प्रयास.
लय स्वर गति यति धुन मधुर, श्वास लुटाये हास..
*
नीति देव की देवकी, जसुमति मृदु मुस्कान.
धैर्य नन्द, वासुदेव हैं, समय-पूर्व अनुमान..
*
गो कुल का पालन करे, गोकुल में गोपाल.
धेनु रेणु में लोटतीं, गूँजे वेणु रसाल..
*
मार सकी थी पूत ना, मरी पूतना आप.
जयी पुण्य होता 'सलिल', मिट जाता खुद पाप..
*
तृणावर्त के शस्त्र थे, अनगिन तृण-आवर्त.
प्रभु न केंद्र-धुरि में फँसे, तृण-तृण हुए विवर्त..
*
लिए वेणु कर-कालिया, चढ़ा कालिया-शीश.
कूद रहा फन को कुचल, ज्यों तरु चढ़े कपीश..
*
रास न आया रचाना, न ही भुलाना रास.
कृष्ण कहें 'चल रचा ना' रास, न बिसरा हास..
*
कदम-कदम जा कदम चढ़, कान्हा लेकर वस्त्र.
त्रस्त गोपियों से कहे, 'मत नहाओ निर्वस्त्र'..
*
'गया कहाँ बल दाऊ जू?', कान्हा करते तंग.
सुरा पिए बलदाऊ जू, गिरे देख जग दंग..
*
जल बरसाने के लिए, इंद्र करे आदेश.
बरसाने की लली के, प्रिय रक्षें आ देश..
*

रविवार, 6 मई 2012

झलक : चित्रगुप्त जयंती 2012 रायपुर छत्तीसगढ़







 झलक  : चित्रगुप्त जयंती 2012 रायपुर छत्तीसगढ़  





 














































रचना और रचनाकार: जनकवि बाबा नागार्जुन

रचना और रचनाकार:

जन कवि बाबा नागार्जुन


मूल नाम: वैद्यनाथ मिश्र, अन्य नाम: यात्री, मूल ग्राम तरौनी, दरभंगा बिहार. 
जन्म: ३० जून १९११, ननिहाल ग्राम सतलखा, जिला मधुबनी, बिहार.
निधन: ५ नवम्बर १९९८, ख्वाजा सराय, जिला दरभंगा, बिहार.
सृजन विधाएँ: कविता, निबंध, यात्रा वृत्त, उपन्यास.
रचना काल: १९३० - १९९४.
जीवन संगिनी:अपराजिता देवी. संतान: ६.
पुरस्कार: 'पत्रहीन नंगा गाछ' पर साहित्य अकादमी पुरस्कार १९६९, उत्तर प्रदेश शासन द्वारा साहित्यिक अवदान हेतु १९८३ में भारत भारती पुरस्कार, साहित्य अकादमी फैलोशिप १९९४.



जन्मना ब्राम्हण कालांतर में बौद्ध मतावलम्बी. ३ वर्ष की अल्पायु में माँ निधन. छात्रवृत्ति तथा रिश्तेदारों की सहायता से संस्कृत पाठशाला में अध्ययन प्रारंभ हुआ. तत्पश्चात संस्कृत, पाली तथा प्राकृत का अध्ययन वाराणसी तथा कलकत्ता में. न्स्कृत में साहित्य आचार्य की उपाधि प्राप्त की. १९३० में यात्री उपनाम से मैथिली तथा हिंदी में काव्य लेखन. कुछ समय सहारनपुर उत्तर प्रदेश में शिक्षक. १९३५ में बौद्ध धर्म का अध्ययन करने हेतु केलनिया श्रीलंका में नागार्जुन नाम धारण कर बौद्ध भिक्षु बने. १९३८ में लेनिनवाद और मार्क्सवाद का अध्ययन कर किसान सभा के संस्थापक स्वामी सहजानंद द्वारा आयोजित राजनैतिक पथशाला में भाग लिया. मूलतः यायावरी वृत्ति के नागार्जुन १९३० से १९४० के मध्य भारत के विविध अंचलों का भ्रमण करते रहे. उन्होंने जन जागरण के अनेक कार्यक्रमों में हिस्सेदारी की. १९३९ से १९४२ के मध्य किसान आन्दोलन के लिये अंग्रेजों ने उन्हें कारावास दिया. स्वतंत्र भारत में वे लंबे समय तक पत्रकार रहे. १९७५ - ७७ की समयावधि में वे लोकनायक जयप्रकाश नारायण प्रणीत सम्पूर्ण क्रांति में प्राण-प्राण से समर्पित रहे तथा ११ महा का कारावास भी काटा.

उनकी रचनाओं में प्रगाढ़ जन संवेदना, आम आदमी का दर्द, सत्ता प्रतिष्ठान के प्रति आक्रोश, सामयिक-राजनैतिक परिवेश के लिये घोर प्रताड़ना के भाव अन्तर्निहित हैं. उनकी प्रसिद्ध रचना 'बादल को घिरते देखा है' में उनकी यायावरी वृत्ति, 'मंत्र' में समूचे जनमानस के मनोभावों की अभिव्यक्ति, 'आओ रानी हम ढोयेंगे पालकी' में रानी एलिज़ाबेथ के भारत आगमन पर पं. नेहरु द्वारा स्वागत जनि विद्रूपता के प्रति जनाक्रोश की अभिव्यक्ति है. उन्होंने मादा सूअर पर 'पैंने दांतोंवाली' कविता लिखी. 'कटहल' जैसे अपारंपरिक विषय पर कविता श्रंखला की रचना उन्हीं के वश की बात थी. निराला के पश्चात् झोपडी से महलों तक अपनी कविताओं के माध्यम से पैठने का बूटा नागार्जुन में ही था. वे बांग्ला भाषा तथा पत्रकारिता से भी जुड़े थे. उन्होंने कंचन कुमारी को मलय रोय चौधरी की लम्बी काव्य रचना 'ज़ख़्म' के हिंदी अनुवाद में सहायता की थी. म. गाँधी की हत्या के पश्चात् लिखी गयी उनकी कविता को सरकार ने अशांति फैलने के भय से प्रतिबंधित कर दिया था. १९६२ में भारत पर चीन के हमले के बाद बाबा का साम्यवादियों से मोहभंग हो गया था.

साहित्यिक रचनाएँ:

प्रथम रचना: १९३० यात्री नाम से, १९३५ नागार्जुन नाम से.

पद्य: युगधारा, सतरंगे पंखोंवाली, तालाब की मछलियाँ, खिचड़ी विप्लव देखा हमने, हजार-हजार बांहोंवाली, पुरानी जूलियों का कोरस, तुमने कहा था, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, इस गुबारे की छाया में, ये दन्तुरित मुस्कान, मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोडा, रत्नगर्भा, ऐसे भी हम क्या, भूल जाओ पुराने सपने, अपने खेत में चंदना.

उपन्यास: रतिनाथ की चाची, बलचनमा, बाबा बटेसरनाथ, नई पौध, वरुण के बेटे, दुखमोचन, उग्रतारा, जमनिया का बाबा, कुन्भी पाक, पारो और आसमान में चंदा तरे, अभिनन्दन, इमरतिया.

निबन्ध संग्रह: अंत हीनं क्रियानं, बम भोलेनाथ, अयोध्या का राजा.

मैथिली रचनाएँ: काव्यसंग्रह पत्रहीन नंगा गाछ, सितारा. उपन्यास पारो, नव तुरिया, बलचनमा .

सांस्कृतिक लेख: देश दशकम, कृषक
दशकम.

अपने सिद्धांतों के प्रति अडिग रहनेवाले बाबा ने सत्ता से सदा दूरी बना कर रखी. उन्होंने ३ बार बिहार विधान परिषद् तथा १ बार राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किए जाने के प्रस्तावों को पूरी निस्पृहता से ठुकरा दिया.

 


नागार्जुन जमीं से जुड़े रहनेवाले तथा अभिन्न अंतरंगता को जीनेवाले जीवट के धनी व्यक्ति थे, प्रस्तुत चित्र में बाईं ओर बाबा के पुत्र शोभाकांत की पत्नि तथा दायीं ओर कथाकार धीरेन्द्र अस्थाना की पत्नि ललिता अस्थाना बाबा से कान खिंचवाकर स्नेह सलिला में अवगाहन का दुर्लभ सुख ले-दे रहे हैं.

दमा रोग से पीड़ित बाबा का जीवन अर्थाभाव से ग्रस्त रहा. उनके अंतिम दिनों में ज्येष्ठ पुत्रवधू ने हिंदीप्रेमियों से बाबा की चिकित्सा हेतु सहायता हेतु अनुरोध भी किया था किन्तु अपने अपने में मगन रहनेवाले कुछ न कर सके.   .

बाबा की कलम से :

जी हाँ, लिख रहा हूँ ...

बहुत कुछ ! बहोत बहोत !!

ढ़ेर ढ़ेर सा लिख रहा हूँ !

मगर, आप उसे पढ़ नहीं पाओगे ...

देख नहीं सकोगे, उसे आप !

दरअसल बात यह है कि

इन दिनों अपनी लिखावट

आप भी मैं कहॉ पढ़ पाता हूँ

नियोन-राड पर उभरती पंक्तियों की

तरह वो अगले कि क्षण गुम हो जाती हैं

चेतना के 'की-बोर्ड' पर वो

बस दो-चार सेकेंड तक ही टिकती है ....

कभी-कभार ही अपनी इस लिखावट को कागज़ पर नोट कर पाता हूँ

स्पन्दनशील संवेदन की क्षण-भंगुर लड़ियाँ

सहेजकर उन्हें और तक पहुँचाना !

बाप रे , कितना मुश्किल है !

आप तो 'फोर-फिगर' मासिक -वेतन वाले उच्च-अधिकारी ठहरे,

मन-ही-मन तो हसोंगे ही,

कि भला यह भी कोईकाम हुआ , कि अनाप-शनाप ख़यालों की

महीन लफ्फाजी ही करता चले कोई - यह भी कोई काम हुआ भला !
*****




शनिवार, 5 मई 2012

गीत: सँग समय के... --संजीव 'सलिल'

गीत:
सँग समय के...
संजीव 'सलिल'
*
सँग समय के चलती रहती सतत घड़ी.
रहे अखंडित काल-चक्र की मौन कड़ी...
*
छोटी-छोटी खुशियाँ कैसे जी पायें?
पीर-दर्द सह, आँसू कैसे पी पायें?
सभी युगों में लगी दृगों से रही झड़ी...
*
अंकुर पल्लव कली फूल फल बीज बना.
सीख न पाया झुकना तरुवर रहा तना.
तूफां ने आ शीश झुकाया, व्यथा बड़ी...
*
दूब ड़ूब जाती पानी में हरियाती.
जड़ें जमा माटी-रक्षक बन मुस्काती.
बरगद बब्बा बोलें रखना जड़ें गड़ी... 
*
वृक्ष मौलश्री किसको हेरे एकाकी.
ध्यान लगा खो गया, न कुछ भी है बाकी.
ओ! सो मत ओशो कहते 'तज सोच सड़ी'...
*
शैशव-यौवन सँग बुढ़ापा टहल रहा.
मचल रही अभिलाषा देखे बहल रहा.
रुक-झुक-चुक मत आगे बढ़, ले 'सलिल' छडी...
***
Sanjiv verma 'Salil'
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मुक्तिका: --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका
संजीव 'सलिल'
*
राह ताकते उम्र बितायी, लेकिन दिल में झाँक न पाये.
तनिक झाँकते तो मिल जाते, साथ सलिल यादों के साये..

दूर न थे तो कैसे आते?, तुम ही कोई राह बताते.
क्या केवल आने की खातिर, दिल दिल के बाहर दिल पाये?

सावन में दिल कहीं रहे औ', फागुन में दे साथ किसी का.
हमसे यही नहीं हो पाया, तुमको लगाते रहे पराये..

तुमने हमको भुला दिया तो शिकवा-गिला करें क्यों बोलो?
अर्ज़ यही मत करो शिकायत हमने क्यों संबंध निभाये..

'सलिल' विरह के अँधियारे भी हमको अपने ही लगते हैं.
घिरकर इनमें स्मृतियों के हमने शत-शत दीप जलाये..

********


Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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मुक्तिका: साहब --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
साहब
संजीव 'सलिल'

*
कुछ पसीना बहाइए साहब.
रोटियाँ तब ही खाइए साहब..

बैठे-बैठे कमायें क्यों लाखों?
जो मिला वह पचाइए साहब..

उसकी लाठी में आवाज़ नहीं.
वक़्त से खौफ खाइए साहब.

साँप जब निकल जाए तब आकर
लट्ठ जमकर चलाइए साहब..

गलतियाँ क्यों करें? टालें कल पर.
रस्म रस्मी चलाइए साहब..

हर दरे-दिल पे न दस्तक देना.
एक दिल में समाइये साहब..

शौक तो शगल है अमीरों का.
फ़र्ज़ हँसकर निभाइए साहब..

नाम बदनाम का भी होता है.
रह न गुमनाम जाइए साहब..

अंत होता है अँधेरे का 'सलिल'.
गीत खुशियों के गाइए साहब..

शुक्रवार, 4 मई 2012

गीत: तू नहीं और सही... --संजीव 'सलिल'









व्यंग्य गीत:
तू नहीं और सही...
संजीव 'सलिल'
*
तू नहीं और सही,  
और नहीं और सही...
*
ताकती टुकुर-टुकुर 
चिड़िया फिरंगन बैठी।
खेल कुर्सी का रचा 
देख रही है ऐंठी।

कौन किसका है यहाँ?
कौन बताये किसको?
एक आता  है तुरत 
दूसरा कहता खिसको।

हाय सरदार असरदार है 
बिलकुल भी नहीं...
*
माया ममता या जया,
हाथ न आनेवाली।
उमा आये भी तो जल्दी ही 
ही है जाने वाली।

देख सुषमा को न मोहित हो 
उगलती ज्वाला।
याद नानी न दिला दे 
तो बताना लाला।

राबडी दूध छटी का 
दे दिला याद रही...
*
जया-रेखा भी अखाड़े में 
उतर आयी हैं।
सिलसिला यादों का ले 
दुनिया तमाशाई है।

खाता स्विस बैंक का 
मांगें न क्यों नक्सलवादी?
देश की देश के वासी 
ही करें बर्बादी। 

चेतो सम्हलो ये  'सलिल' ने 
है खरी बात कही...

*************

 
 


गीत: पानी-पानी हो गये --संजीव 'सलिल'

गीत:
पानी-पानी हो गये
संजीव 'सलिल'
*



सत्य कहा जब स्नेह से
युग की बानी हो गये.
खोकर पानी आंख का,
पानी-पानी हो गये...
*
प्यासा है सारा जगत,
कौन बुझाये प्यास.
बनें न कान्हा-राधिका
चाह रचायें रास.
महलों ने निश-दिन दिये
झोपड़ियों को त्रास.
श्रम के अधर न पा सके
तनिक प्रतिष्ठा-हास.

रुपये लूट पैसे लुटा
डाकू दानी हो गये...
*
सत्ता ने हरदम दिया
सीता को वनवास.
जन-प्रतिनिधि धोबी करें-
सतत सत्य-उपहास.
बहते आँसू में लखें
पत्रकार अनुप्रास.
जोरू हुई गरीब की
जनता सह परिहास.

जो लायक अपमान के
वे ही मानी हो गये...
*
आँख न आँखों में बसी,
कैसे रुचे उजास?
आँख आँख से लड़-मिली
झुककर हुई हुलास.
आँख तरेरे प्राणप्रिय,
आँख चुराए दास.
आँख रचे, लिख आँख दे-
आँखों का इतिहास.

बंजर-ऊसर ह्रदय के
सपने धानी हो गये...
*****





गुरुवार, 3 मई 2012

गीत: देख नज़ारा दुनिया का... --संजीव 'सलिल'

गीत:
देख नज़ारा दुनिया का...
संजीव 'सलिल'
*
देख नज़ारा दुनिया का...
*
कौन स्नेह में पगा नहीं है।
किसने किसको ठगा नहीं है।
खाता  और खिलाता कसमें-
इन्सा भूला दगा नहीं है।
जला रहे अपनों को अपने-
कोई किसी का सगा नहीं है।

ओ ऊपरवाले जादूगर!
देख पिटारा दुनिया का...
*
दर-दरवाज़ा अगर न हो 
तो कैसे टूटेगा ताला?
खालू अगर दहेज़ न माँगे,
तो क्यों रोयेगी खाला?
जाने की तैयारी कर ले
जोड़ रहा धन क्यों लाला?

ओ नीचेवाले नटनागर!
अजब पसारा दुनिया का...
*
तन को बार बार धोते हैं.
मन पर मन बोझा ढोते हैं.
चले डुबाने औरों को पर
बीच धार खाते गोते हैं.
राम सीखकर मरा जप रहे
पिंजरे में बंदी तोते हैं.
बेपेंदी की फूटी गागर!
सदृश खटारा दुनिया का...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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गर्मी के दोहे --आनंद कृष्ण



गर्मी के दोहे 

आनंद कृष्ण 
*
भीषण गर्मी पड़ रही है ......... इस मौके पर सात दोहे प्रस्तुत हैं. ये सभी दोहे अपने आप में स्वतंत्र हैं किन्तु समेकित रूप में ये ग्रीष्म ऋतु के एक पूरे दिन का चित्रण करने का प्रयास हैं...... प्रयास की सफलता का मूल्यांकन आप  करेंगे ना-??????


निकल पड़ा था भोर से पूरब का मजदूर.
दिन भर बोई धूप को लौटा थक कर चूर.
 
पिघले सोने सी कहीं बिखरी पीली धूप.
कहीं पेड़ की छाँव में इठलाता है रूप.
 
तपती धरती जल रही, उर वियोग की आग.
मेघा प्रियतम के बिना, व्यर्थ हुए सब राग.
 
झरते पत्ते कर रहे, आपस में यों बात-
जीवन का यह रूप भी, लिखा हमारे माथ.
 
क्षीणकाय निर्बल नदी, पडी रेट की सेज.
"आँचल में जल नहीं-" इस, पीडा से लबरेज़.
 
दोपहरी बोझिल हुई, शाम हुई निष्प्राण.
नयन उनींदे बुन रहे, सपनों भरे वितान.
 
उजली-उजली रात के, अगणित तारों संग.
मंद पवन की क्रोड़ में, उपजे प्रणय-प्रसंग.

सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर
मोबाइल : 09425800818

एक कविता: उसकी और उनकी --अवनीश तिवारी

एक कविता:
उसकी और उनकी 
अवनीश तिवारी
*
-----------------------
उसकी कोमल चाह ,
उनकी कठोर मांगों तले दब ,
किसी कोने में अकेले रोती है |
उसके नन्हे - नन्हे सपने ,
उनकी बड़ी महत्वाकांक्षाओं से टकरा,
टूट बिखर जाते हैं |
उसकी आस की नदिया,
उनकी योजनाओं के सागर में मिल,
अपना अस्तित्व खो देती है |
उसकी ममता के अंकुर,
उनके संबंधों के बरगद की छाँव में ,
घुट - घुट पनपते है |
इसतरह ...
उसके गर्भ की संतान,
बेटा ना होने के परिणाम से डर,
पल रही है, बढ़ रही है |

गीत: हमें जरूरत है --संजीव 'सलिल'

गीत:  
हमें जरूरत है...  
--संजीव 'सलिल'
*
हमें जरूरत है लालू की...
*
हम बिन पेंदी के लोटे हैं.
दिखते खरे मगर खोटे हैं.
जिसने जमकर लात लगाई
उसके चरणों में लोटे हैं.
लगा मुखौटा हर चेहरे पर
भाये आरक्षण कोटे हैं.
देख समस्या आँख मूँद ले
हमें जरूरत है टालू की...
*
औरों पर उँगलियाँ उठाते.
लेकिन खुद के दोष छिपाते.
नहीं सराहे यदि दुनिया तो
खुद ही खुद की कीरति गाते.
तन से तन की चाह हमेशा
मन से मन को मिला न पाते.
देख चढ़ाव भागते पीछे
हमें जरूरत भू ढालू की...
*
दिखती है लंबी छाया पर-
कद से हम सचमुच बौने हैं...
लेट पालने, चूस अँगूठा
चाह रहे होते गौने हैं.
शेर-मांद में डाल रहे सिर
मन भटकाते मृग छौने हैं.
जो कहता हो ठाकुरसुहाती
हमें जरूरत उस चालू की...
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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बुधवार, 2 मई 2012

राजस्थानी मुक्तिकाएँ : संजीव 'सलिल'

राजस्थानी मुक्तिकाएँ :
संजीव 'सलिल'
*

१. ... तैर भायला

लार नर्मदा तैर भायला.
बह जावैगो बैर भायला..

गेलो आपून आप मलैगो.
मंजिल की सुण टेर भायला..

मुसकल है हरदां सूँ खडनो.
तू आवैगो फेर भायला..

घणू कठिन है कविता करनो.
आकासां की सैर भायला..

सूल गैल पै यार 'सलिल' तूं.
चाल मेलतो पैर भायला..

*

२. ...पीर पराई

देख न देखी पीर पराई.
मोटो वेतन चाट मलाई..

इंगरेजी मां गिटपिट करल्यै.
हिंदी कोनी करै पढ़ाई..

बेसी धन स्यूं मन भरमायो.
सूझी कोनी और कमाई..

कंसराज नै पटक पछाड्यो.
करयो सुदामा सँग मिताई..

भेंट नहीं जो भारी ल्यायो.
बाके नहीं गुपाल गुसाईं..

उजले कपड़े मैले मन ल्ये.
भवसागर रो पार न पाई..

लडै हरावल वोटां खातर.
लोकतंत्र नै कर नेताई..

जा आतंकी मार भगा तूं.
ज्यों राघव ने लंका ढाई..

***
टीप: राजस्थानी पर मेरा अधिकार नहीं है, यह एक प्रयास मात्र हैं. जानकार पाठकों से सुधार हेतु निवेदन है.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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मंगलवार, 1 मई 2012

सोनिया गाँधी विश्व की चौथी सर्वाधिक अमीर राजनेता: मोहन गुप्ता

सोनिया गाँधी विश्व की चौथी सर्वाधिक अमीर राजनेता:
मोहन गुप्ता
 


आँख मूँदने से सचाई छिप नहीं जायेगी...
 
अमेरिकी वेबसाइट बिजनेस इनसाइडर के मुताबिक सोनिया के पास दो से १९ अरब डॉलर [करीब ९९ अरब से लेकर ९४८ अरब रुपये] की संपत्ति है। सूची में हरियाणा की विधायक और जिंदल समूह की प्रमुख सावित्री जिंदल का नाम भी है। उनकी संपत्ति १३.२ अरब डॉलर [करीब ६५८ अरब रुपये] आंकी गई है। सबसे पहले यह खबर जर्मनी के अखबार 'डी वेल्ट' में प्रकाशित हुई थी। इस अखबार के व‌र्ल्ड लग्जरी गाइड सेक्शन में दुनिया के सबसे अधिक रईस २३ नेताओं कीसूची प्रकाशित की गई थी। इसमें सोनिया गांधी चौथे स्थान पर हैं। 





चौथे से पहले नंबर पर आने का संकल्प...

बिजनेस इनसाइडर ने अखबार का हवाला देते हुए यह सूची प्रकाशित की है ??? अधिक जानकारी :-http://www.jagran.com/news/national-sonia-worlds-fourth-richest-polit... पर उपलब्ध है. एक पत्रकार द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सोनिया से सरकार को सालाना दिए जाने वाले इनकम टेक्स का ब्यौरा माँगा तो सोनिया ने अपनी जान का खतरा बताते हुए मना कर दिया. जब मुकेश अम्बानी , रतन टाटा ,
अमिताभ बच्चन आदि की जान को खतरा नहीं है तो सोनिया ने पता नहीं कैसे अपनी जान का खतरा बता कर अपनी सालाना कमाई नहीं दिखाई ???




मत राज खोलो... क्या चाहिए लो...

इस खबर को जनरल वी. के. सिंह जी के उम्र विवाद की झूठी खबर जो चिदम्बरम और उसके बेटे के इशारे पर इण्डियन एक्सप्रेस अंग्रेजी अखबार में छपी थी के साथ जोड़ कर देखा जा रहा था और तख्ता पलट तक का ज़िक्र किया गया था। जनवरी महीने में सेना की कूच की तरह मीडिया इसे ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर दिखायेगा या मीडिया वालों के पास 10 जनपथ से उनके हिस्से के टुकड़े और हड्डियाँ चूसने के लिए पहुँच गए हैं.???

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