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सोमवार, 15 सितंबर 2025

गणेश पंचरत्न स्तोत्र

गणेश पंचरत्न स्तोत्र (हिंदी अनुवाद तथा अर्थ सहित) 
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गणेश पंचरत्न स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित भगवान गणेश की स्तुति है, जिसमें गणेश जी के पांच रत्नों जैसे गुणों का वर्णन है। इस स्तोत्र के अर्थ और पाठ से भक्तों को स्वास्थ्य, विद्या, संतान और दीर्घायु सहित अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। गणेश पंचरत्न स्तोत्र का हिंदी अनुवाद आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने रोला छंद में किया है। २४ मात्रिक रोल छंद में उच्चार क्रम १२१२१२१२१२१२१२१२ तथा पदांत गुरु या २ लघु होता है। 
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मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्ति साधकम्।
कलाधरावतंसकं विलासलोक रक्षकम्।।
अनायकैकनायकं विनाशितेभ दैत्यकम्।
नताशुभाशु नाशकं नमामि तं विनायकम्।१।
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करूँ नमन गणेश मोदकी विमुक्त जो करें।
निशीश माथ पर धरे सुरक्ष विश्व को करें।।
अशक्त-नाथ गज-असुर विनाशकर जगत पुजें।
करूँ प्रणाम भक्त के समस्त कष्ट जो हरें।१।
अर्थ- आनंद से मोदक धारण किए उन विनायक को प्रणाम,जो मुक्ति का साधन हैं, जिनके मस्तक पर चंद्र शोभित है, जो संसार के रक्षक हैं, जो निर्धनों के नाथ हैं. जिन्होंने गजासुर का नाश किया और जो भक्तों के सब कष्ट हर लेते हैं उन विनायक को प्रणाम।
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नतेतरातिभीकरं नमोदितार्कभास्वरं।
नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम्।।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं।
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम्।२।
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न जो विनत नमित करें दिनेश सम प्रकाश दें।
नमन सुदेव शत्रु अरि नमन नमित उबार दें।।
सुरेश हे! निधीश हे! गजेश हे! गणेश हे!
महेश दें चरण शरण अनवरत निखार दें।२।
अर्थ- जो न झुकनेवाले उद्दंडों को झुकाकर सूर्य की भांति प्रकाश देते हैं; उन देव शत्रुओं के शत्रु प्रणाम। वे मुझ विनत के कष्ट दूर करें। हे देवों के देव, निधियों के नाथ, हाथियों के ईश, गणनायक, श्रेष्ठतम मुझे शरण में लेकर । .
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समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुंजरं ।
दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम्।।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं ।
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम्।३।
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करें सदा निशंक जग, गज सदृश असुर मिटा।
बड़ा उदर गजाननी, न क्षरित जो करें कृपा।।
क्षमा करें सुखी करें, सुकीर्ति दें मुझे सदा।
मनीष नमन लीजिए, नमन प्रकाशमान हे।३।
अर्थ- हाथी के समान विशाल राक्षसों का वध कर सब लोकों की शंका मिटा दें। जिनका पेट विशाल और जिनका मुख हाथी का है, जिनका क्षर/ह्रास नहीं होता, वे कृपालु क्षमा करें, सुख और यश दें।.हे मन के स्वामी प्रकाशमान प्रबही! मैं आपका वंदन करता हूँ।
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अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं।
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम्।। 
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणं।
कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम्।। 
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मिटा सकल विनाश-दुख, सदैव वंदना सुनें। 
सुतादि हे उमेश के!, मिटा असुर-घमंड दें।। 
प्रलय-विनाश जो करें, भुजंग धनंजय सजें।
कपोल तक सुहाय मद, पुराणवारणी भजें।४।      
अर्थ- वे दरिद्रों के दुखों को दूर करनेवाले आप सदैव वंदना सुनिए। हे शिव के प्रथम पुत्र, असुरों का गर्व को चूरकार दीजिए।  प्रलय काल में विनाश करनेवाले, धनंजय नामक सर्प से विभूषित, कपोल तक मदजल से सुशोभित, हे पुराण-बाधा दूर करनेवाले, मैं आपका भजन करता हूँ।
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नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मज।
मचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम्।।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां।
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि संततम्।५।
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सदैव दंत कांति कांत कांत-पुत्र कांतिजा।
अचिंत्य जो अनंत हैं, सकल अनिष्ट दें मिटा।।
करें निवास योगियों-हृदय सदैव जो प्रभो!
करूँ सदैव स्मरण, अनादि एकदंत का।५।
अर्थ- जिनके दांतों की आभा सदैव कांतिमय है, जो जगस्वामी शिव तथा कांतिमयी पार्वती के पुत्र हैं, जो चितन के परे हैं, जिनका कहीं अंत नहीं है, जो सब बाधाओं का नाश करनेवाले तथा योगियों के ह्रदय में सदैव निवास करने वाले हैं, मैं उन एकदंत का चिंतन करता हूँ।
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महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं।
प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम्।।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां।
समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात्।६।
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महागणेश पंचरत्न श्लोक पाठ जो करे।
प्रभात में गणेश को सुमिर सदा हृदय धरे।।
रहें निरोग वे सदा, सुपुत्र पा अदोष हो।
मिलें विभूति आठ अभ्युदय सदैव प्राप्त हो।६।
अर्थ- जो व्यक्ति प्रति दिन महागणेश पंचरत्न स्तोत्र का पाठ कर सुबह भगवान गणेश को हृदय में रखता है, अच्छा स्वास्थ्य व उत्तम संतान पाकर दोषरहित जीवन जीते हैं। उन्हें आठ विभूतियाँ तथा उत्कर्ष प्राप्त होता है
। श्रीमत् शंकर भगवत्पादकृतआचार्य संजीव 'सलिल' अनुवादित श्रीगणेशपञ्चरत्न स्तोत्रम् पूर्ण हुआ।
१४-१५ सितंबर २०२५

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