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गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

जबलपुर की वेब पत्रकारिता और साहित्य तथा समाज में उसका योगदान

  जबलपुर की वेब पत्रकारिता और साहित्य तथा समाज में उसका योगदान 

विवेक रंजन श्रीवास्तव  
जन संपर्क अधिकारी 
म. प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी जबलपुर 
मो ९४२५८०६२५२

पौराणिक संदर्भो का स्मरण करें तो नारद मुनि संभवतः पहले पत्रकार कहे जा सकते हैं , इसी तरह  युद्ध भूमि से लाइव रिपोर्टिंग का पहला संदर्भ संजय द्वारा धृतराष्ट्र को महाभारत के युद्ध का हाल सुनाने का है . 
वर्तमान युग में  विश्व में पत्रकारिता का आरंभ सन् 131 ईसा पूर्व रोम में माना जाता है . तब  वहाँ “Acta Diurna” (दिन की घटनाएं) किसी बड़े प्रस्तर पट  या धातु की पट्टी  पर वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति, नागरिकों की सभाओं के निर्णयों और ग्लेडिएटरों की लड़ाइयों के परिणामों के बारे में सूचनाएं समाचार अंकित करके रोम के मुख्य स्थानों पर रखी जाती थीं .मध्यकाल में यूरोप के व्यापारिक केंद्रों में ‘सूचना-पत्र ‘ निकाले जाने लगे जिनमें कारोबार, क्रय-विक्रय और मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव के समाचार लिखे जाते थे .  ये सारे ‘सूचना-पत्र ‘ हाथ से ही लिखे जाते थे . 15वीं शताब्दी के मध्य में योहन गूटनबर्ग ने छापने की मशीन का आविष्कार किया . असल में उन्होंने धातु के अक्षरों का आविष्कार किया .   फलस्वरूप किताबों का ही नहीं, अखबारों का भी प्रकाशन संभव हो सका . 16वीं शताब्दी के अंत में, यूरोप के शहर स्त्रास्बुर्ग में, योहन कारोलूस नाम का कारोबारी धनवान ग्राहकों के लिये सूचना-पत्र लिखवा कर वितरित करता था ,  पर हाथ से बहुत सी प्रतियों की नक़ल करने का काम महंगा  और धीमा था . अतः वह छापे की मशीन ख़रीद कर 1605 में समाचार-पत्र छापने लगा .  समाचार-पत्र का नाम था ‘रिलेशन’ ,  यह विश्व का प्रथम मुद्रित समाचार-पत्र माना जाता है . 
 हिंदी पत्रकारिता का तार्किक और वैज्ञानिक आधार पर काल विभाजन करना कुछ कठिन कार्य है . हिंदी पत्रकारिता का उद्भव सन् 1826 से 1867 माना जाता है . 1867 से 1900 के समय को हिंदी पत्रकारिता के विकास का समय कहा गया है . 1900 से 1947 के समय को हिंदी पत्रकारिता के उत्थान का समय निरूपित किया गया है . जबलपुर में इसी अवधि में पत्रकारिता विकसित हुई . 1947 से अब तक के समय को स्वातंत्र्योत्तर पत्रकारिता कहा जाता है . स्वातंत्र्योत्तर पत्रकारिता में अखबार, पत्रिकायें, रेडियो तथा २० वीं सदी के अंतिम दो दशको में टी वी पत्रकारिता का उद्भव हुआ . २१वी सदी के आरंभ के साथ इंटरनेट तथा सोशल मीडीया का विस्तार हुआ और जब हम हिन्दी के  परिदृश्य में इस प्रौद्योगिकी परिवर्तन को देखते हैं तो हिंदी  पर इसके प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखते हैं . 21 अप्रैल, 2003 की तारीख वह स्वर्णिम तिथि है जब  रात्रि  22:21 बजे हिन्दी के प्रथम ब्लॉगर, मोहाली, पंजाब निवासी आलोक ने अपने ब्लॉग ‘9 2 11’ पर अपना पहला ब्लॉग-आलेख हिन्दी वर्णाक्षरों में इंटरनेट पर पोस्ट किया था . इस तारीख को हिन्दी वेब पत्रकारिता का प्रारंभ कहा जाना चाहिये . 
पत्रकारिता  आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, समाचार लिखना, रिपोर्ट करना, सम्पादित करना और समाचार तथा साहित्य का सम्यक चित्रांकन व प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं . 
सूचना और साहित्य किसी भी सभ्य समाज की बौद्धिक भूख मिटाने के लिये अनिवार्य जरूरत है . तकनीक के विकास के साथ इस आवश्यकता को पूरा करने के संसाधन बदलते जा रहे हैं .हस्त लिखित अखबार और पत्रिकायें , फिर टंकित तथा साइक्लोस्टायल्ड अथवा फोटोस्टेट पत्रिकायें , न्यूज लैटर या पत्रक , एक एक अक्षर को फर्मे पर कम्पोज करके तथा फोटो सामग्री के ब्लाक बनाकर मुद्रित अखबार की तकनीक , विगत कुछ दशको में तेजी से बदली है और अब बड़े तेज आफसेट मुद्रण की मशीने सुलभ हैं , जिनमें ज्यादातर  कार्य वर्चुएल साफ्ट कापी में कम्प्यूटर पर होता है . समाचार संग्रहण व उसके अनुप्रसारण के लिये  टेलीप्रिंटर की पट्टियो को अभी हमारी पीढ़ी भूली नही है . आज हम इंटरनेट से  ईमेल पर पूरे के पूरे कम्पोज अखबारी पन्ने ही यहाँ से वहाँ ट्रांस्फर कर लेते हैं . 
 सामाजिक बदलाव में सर्वाधिक महत्व विचारों का ही होता है .लोकतंत्र में विधायिका , कार्यपालिका , न्यायपालिका के तीन संवैधानिक स्तंभो के बाद पत्रकारिता को  चौथे स्तंभ के रूप में मान्यता दी गई क्योकि पत्रकारिता वैचारिक अभिव्यक्ति का माध्यम होता है , आम आदमी की नई प्रौद्योगिकी तक  पहुंच और इसकी  त्वरित स्वसंपादित प्रसारण क्षमता के चलते सोशल मीडिया व ब्लाग जगत को लोकतंत्र के पांचवे स्तंभ के रूप में देखा जा रहा है . वैश्विक स्तर पर पिछले कुछ समय में कई सफल जन आंदोलन इसी सोशल मीडिया के माध्यम से खड़े हुये हैं . हमारे देश में भी बाबा रामदेव , अन्ना हजारे के द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध  तथा दिल्ली के नृशंस सामूहिक बलात्कार के विरुद्ध बिना बंद , तोड़फोड़ या आगजनी के चलाया गया जन आंदोलन , और उसे मिले जन समर्थन के कारण सरकार को विवश होकर उसके सम्मुख किसी हद तक झुकना पड़ा . इन  आंदोलनो में विशेष रुप से नई पीढ़ी ने इंटरनेट , मोबाइल एस एम एस और मिस्डकाल के द्वारा अपना समर्थन व्यक्त किया .तब से होते निरंतर प्रौद्योगिकी विकास के साथ हिन्दी के महत्व को स्वीकार करते हुये ही बी बी सी , स्क्रेचमाईसोल , रेडियो जर्मनी ,टी वी चैनल्स , तथा देश के विभिन्न अखबारो तथा न्यूज चैनल्स ने भी अपनी वेबसाइट्स पर पाठको के ब्लाग के पन्ने बना रखे हैं .बदलते तकनीकी परिवेश के चलते अब हर हाथ में एंड्रायड मोबाइल आता जा  रहा है , समाचार के लिये एप्प उपलब्ध करवाये जा रहे हैं . 
 ब्लागर्स पार्क दुनिया की पहली ब्लागजीन के रूप में नियमित रूप से मासिक प्रकाशित हो रही है . यह पत्रिका ब्लाग पर प्रकाशित सामग्री को पत्रिका के रूप में संयोजित  करने का अनोखा कार्य कर रही है .मुझे गर्व है कि मैं इसके मानसेवी संपादन मण्डल का सदस्य हूं .  अपने नियमित स्तंभो में  प्रायः समाचार पत्र ब्लाग से सामग्री उधृत करते हैं . हिन्दी ब्लाग के द्वारा जो लेखन हो रहा है उसके माध्यम से साहित्य , कला समीक्षा , फोटो , डायरी लेखन आदि आदि विधाओ में विशेष रूप से युवा रचनाकार अपनी नियमित अभिव्यक्ति कर रहे हैं . वेब दुनिया , जागरण जंकशन , नवभारत टाइम्स  जैसे अनेक हिन्दी पोर्टल ब्लागर्स को बना बनाया मंच व विशाल पाठक परिवार सुगमता से उपलब्ध करवा रहे हैं .और उनके लेखन के माध्यम से अपने पोर्टल पर विज्ञापनो के माध्यम से धनार्जन भी करने में सफल हैं . हिन्दी और कम्प्यूटर मीडिया के महत्व को स्वीकार करते हुये ही अपने वोटरो को लुभाने के लिये राजनैतिक दल भी इसे प्रयोग करने को विवश हैं . हिन्दी न जानने वाले राजनेताओ को हमने रोमन हिन्दी में अपने भाषण लिखकर पढ़ते हुये देखा ही है . 
'महर्षि जाबालि की तपोभूमि ,  नर्मदांचल ,  संस्कारधानी जबलपुर  सारस्वत संपदा से सदैव सम्पन्न रही है . वसुधैव कुटुम्बकम् की वैचारिक उद्घोषणा वैदिक भारतीय संस्कृति की ही देन है . वैज्ञानिक अनुसंधानो , विशेष रूप से संचार क्रांति  तथा आवागमन के संसाधनो के विकास ने तथा विभिन्न देशो की अर्थव्यवस्था की परस्पर प्रत्यक्ष व परोक्ष निर्भरता ने इस सूत्र वाक्य को आज मूर्त स्वरूप दे दिया है . हम भूमण्डलीकरण के युग में जी रहे हैं . सारा विश्व कम्प्यूटर चिप और बिट में सिमटकर एक गांव बन गया है . लेखन , प्रकाशन , पठन पाठन में नई प्रौद्योगिकी की दस्तक से आमूल परिवर्तन होते जा रहे हैं . नई पीढ़ी अब बिना कलम कागज के कम्प्यूटर पर ही  लिख रही है ,प्रकाशित हो रही है , और पढ़ी जा रही है . ब्लाग तथा सोशल मीडीया वैश्विक पहुंच के साथ वैचारिक अभिव्यक्ति के सहज , सस्ते , सर्वसुलभ , त्वरित साधन बन चुके हैं . वेब-मीडिया सर्वव्यापकता को चरितार्थ करता है जिसमें ख़बरें दिन के चौबीसों घंटे और हफ़्ते के सातों दिन उपलब्ध रहती हैं .जबलपुर वेब मीडीया की पत्रकारिता में पीछे नहीं है , श्री चैतन्य भट्ट समाचार विचार नामक पोर्टल चला रहे हैं जिसमें साहित्य , सामयिक आलेख कवितायें तथा समाचार नियमित रूप से अपडेट किये जाते हैं . इसकी हिट १००० से उपर प्रतिदिन है . वेब पता है http://samachar-vichar.com/ . इसी तरह http://www.palpalindia.com के वेब पते से पलपलइंडिया नामक पोर्टल जबलपुर से चलाया जा रहा है जिसमें आशुतोष असर व अन्य मित्र बढ़िया वेब पत्रकारिता कर रहे हैं . जबलपुर पर वेब साइट्स में http://www.jabalpur.astha.net/ जबलपुर आस्थानेट का भी जिक्र जरूरी है . "दिव्य नर्मदा" जिसके मुद्रित अंक भी पहले प्रकाशित होते रहे हैं , तथा उसके नियमित प्रकाशन में आरही आर्थिक कठिनाईयो के चलते , जिसे वेब पत्रिका बनाने में मेरा विचार , तकनीकी सहयोग व योगदान  रहा है. इसके संपादक मण्डल में भी मुझे ड़खा गया है , भाई संजीव सलिल इसे बेहद गंभीरता से चला रहे हैं और इस साहित्यिक वेब पत्रिका के हिट सारी दुनिया से मिल रहे हैं इसका वेब पता divyanarmada.blogspot.comहै . प्रतिवाद डाट काम , वेबदुनिया , जागरण जंक्शन , नवभारत टाइम्स ब्लाग , रेडियो मिर्ची ब्लाग्स , स्क्रेच माई सोल ब्लागर्स पार्क , दैनिक भास्कर , आदि सामूहिक ब्लाग्स पर भी जबलपुर से प्रतिदिन विविध सामग्री पोस्ट की जा रही है . हिन्दी साहित्य संगम नाम से वेब डोमेन पर विजय तिवारी किसलय नियमित लिख रहे हैं तथा जबलपुर के साहित्य जगत की विविध हलचलें वेब पर एक सर्च में सुलभ हैं . फेसबुक इन दिनो सबसे लोकप्रिय सोशल मीडिया है . हिन्दी एक्सप्रेस का पेजhttps://www.facebook.com/pages/Madhya-Pradesh-Hindi-Express एवं जबलपुर न्यूज का पन्नाhttps://www.facebook.com/Jabalpur.News समाचारो का लोकप्रिय पेज है . इसके सिवा अनेक युवा समूहो ने जबलपुर , पर केंद्रित ग्रुप बना रखे हैं . जबलपुर विभिन्न शासकीय व गैर शासकीय संस्थानो की वेब साइटें , फेसबुक पेज आदि भी सूचना  प्रसारण का महत्वपूर्ण योगदान समाज को दे रहे हैं . मेरे फेसबुक पेज पर जिन भी आयोजनो में मैं उपस्थित हो पाता हूं उनका संक्षिप्त विवरण तथा चित्र कार्यक्रम स्थल से ही पोस्ट करना मेरी आदत में है , जिसके परिणाम यह होते हैं कि मुझसे फेसबुक पर जुड़े तथा मेरे फालोअर लगभग ५००० लोगो तक वह आयोजन तुरंत पहुंच जाता है और उसकी त्वरित प्रतिक्रिया भी मिलती है . यही त्वरित स्वसंपादित प्रकाशन वेब की सबसे बड़ी विशेषता है . यूं तो जबलपुर से ज्योतिष , कुकरी , टूरिज्म , नौकरी , फाइनेस आदि विषयो पर अनेक लोग वेब पर अपने व्यवसायिक हितो के लिये लिख रहे हैं पर जो सार्वजनिक हित के लिये सक्रिय हैं उनमें http://mahendra-mishra1.blogspot.in/ महेंद्र मिश्र , समय चक्र http://sanskaardhani.blogspot.in/ गिरीश बिल्लौरे मिस फिट ,http://nomorepowertheft.blogspot.in/ विवेक रंजन श्रीवास्तव "बिजली चोरी के विरुद्ध जन जागरण" , "संस्कृत का मजा हिन्दी में" , मेरी कवितायें , तथा नमस्कार ब्लाग के साथ चर्चा योग्य हैं. 
http://hindisahityasangam.blogspot.in/ , http://mymaahi.blogspot.in/ महेश ब्रम्हेते "माही ",http://apnajabalpur.blogspot.in/ नितिन पटेल "शेष अशेष" , http://chakreshsurya.blogspot.in/चक्रेश सूर्या "सूर्या ", http://www.janbharat.blogspot.in/ अजय गुप्ता जनभारत ,http://swapniljain1975.blogspot.in सवप्निल जैन हमारा जबलपुर एवं अंग्रेजी में जबलपुर डायरीhttp://www.jabalpurdiary.com/blogs.php आदि भी प्रमुख ब्लाग हैं . 
बहुत जरुरी है कि कम से कम जबलपुर के सभी निजी ब्लाग व वेब पन्ने एक दूसरे को ब्लागरोल पर जोड़ें जिससे उनका व जबलपुर का व्यपक हित ही होगा . 
        यह सही है कि अभी ब्लाग लेखन नया है , पर जैसे जैसे नई कम्प्यूटर साक्षर पीढ़ी बड़ी होगी , इंटरनेट और सस्ता होगा तथा आम लोगो तक इसकी पहुंच बढ़ेगी यह वर्चुएल लेखन  और भी ज्यादा सशक्त होता जायेगा , एवं  भविष्य में  लेखन क्रांति का सूत्रधार बनेगा . जैसे जैसे वेब की पठनीयता बढ़ेगी वेब पत्रकारो को विज्ञापन मिलेंगे और वेब पत्रकारिता कोरी लफ्फाजी या हाई प्रोफाइल बनने के स्वांग से बढ़कर आजीविका का संसाधन भी बन सकेगी . 
फिलहाल जबलपुर की वेब पत्रकारिता विकास के युग में है और नियमित रूप से समाज और साहित्य को अपना सामग्री योगदान तथा ५ससे जुड़े लोगो को एक सशक्त मंच दे रही है .

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

cartoon HINDI

mukatak salila: sanjiv

​मुक्तक सलिला
संजीव
*
नाग नाथ को बिदा किया तो साँप नाथ से भी बचना
दंश दिया उसने तो इसने भी सीखा केवल डँसना
दलदल दल का दल देता है जनमत को सत्ता पाकर-
लोक शक्ति नित रहे जागृत नहीं सजगता को तजना।
*
परिवर्तन की हवा बह रही इसे दिशा-गति उचित मिले
बने न अंधड़, कुसुम न जिसमें जन-आशा का 'सलिल' खिले।
मतदाता कर्तव्यों को अधिकारों पर दे वरीयता-
खुद भ्रष्टाचारी होकर नेता से कैसे करें गिले?
*
ममो सोनिया राहुल डूबे, हुई नमो की जय-जयकार
कमल संग अरविन्द न लेकिन हाल एक सा देखो यार
जनता ने दे दिया समर्थन पर न बना सकते सरकार-
कैसी जीत मिली दोनों को जिसमें प्रतिबिंबित है हार
*
वसुंधरा शिव रमन न भूलें आगे कठिन परीक्षा है
मँहगाई, कर-भार, रिश्वती चलन दे रहा शिक्षा है
दूर करो जन गण की पीड़ा, जन-प्रतिनिधि सुविधा छोडो-
मतदाता जैसा जीवन जी, सत्ता को जन से जोड़ो
*

रविवार, 8 दिसंबर 2013

samyik kavita : sanjiv

​राहुल जी का डब्बा गोल
लम्बी_चौड़ी डींग हाँकतीं, मगर खुल गयी पल में पोल
मोदी जी का दाँव चल गया, राहुल जी का डब्बा गोल
मातम मना रहीं शीला जी, हुईं सोनिया जी बेचैन
मौका चूके केजरीवाल जी, लेकिन सिद्ध हुए ही मैन
हंग असेम्बली फिर चुनाव का, डंका जनता बजा रही
नेताओं को चैन न आये, अच्छी उनकी सजा रही
लोक तंत्र को लोभ तंत्र जो, बना रहे उनको मारो
अपराधी को टिकिट दे रहे, जो उनको भी फटकारो
गहलावत को वसुंधरा ने, दिन में तारे दिखा दिये
जय-जयकार रमन की होती, जोगी जी पिनपिना गये
खिला कमल शिवराज हँस रहे, पंजा चेहरा छिपा रहा
दिग्गी को रूमाल शीघ्र दो, छिपकर आँसू बहा रहा
मतदाता जागो अपराधी नेता, बनें तो मत मत दो
नोटा बटन दबाओ भैया, एक साथ मिल करवट लो
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

vartika samman 2013: sanjiv salil ko vyakaranacharya kamta prasad guru samman

समाचार

वर्तिका के राष्ट्रीय पुरस्कार घोषित
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' को व्याकरणाचार्य कामता प्रसाद गुरु सम्मान
जबलपुर, भारत। संस्कारधानी जबलपुर की सक्रिय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्था वर्तिका २२ दिसम्बर १३ को २९ वें स्थापना दिवस समारोह का आयोजन रानी दुर्गावती संग्रहालय सभागार भँवरताल जबलपुर में कर रही है. इस अवसर पर साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान हेतु राष्ट्रीय तथा स्थानीय स्तर पर पुरस्कार दिये जाने हेतु नामांकन आमंत्रित किये गये थे. एक उच्चस्तरीय चयन समिति ने वरिष्ठ साहित्यकार तथा साहित्य मनीषी प्रो चित्रभूषण श्रीवास्तव विदग्ध की अध्यक्षता में निर्णय लेकर इस वर्ष के पुरस्कारों की घोषणा की.
स्वर्ग विभा वेबसाइट की संस्थापिका डॉ. तारा सिंग मुम्बई को इस वर्ष का साज जबलपुरी लाइफटाइम वर्तिका अवार्ड दये जाने की घोषणा की गई है. साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. त्रिभुवन नाथ शुक्ल भोपाल को रामेश्वर शुक्ल अंचल अलंकरण,  आचार्य श्री संजीव वर्मा 'सलिल' जबलपुर को व्याकरणाचार्य कामता प्रसाद गुरू अलंकरण  के अतिरिक्त दिल्ली के श्री जाली अंकल, हैदराबाद के ब्लॉगर व कवि श्री विजय सपट्टी, नोयडा की सुश्री सखी सिंह, भोपाल के श्री अनवर इस्लाम, जबलपुर के श्री कुँवर प्रेमिल एवं श्रीमती लक्ष्मी शर्मा को सम्मानित किया जाएगा. इसके अतिरिक्त श्रीमती सुनीता मिश्रा  को श्रीमती दयावती श्रीवास्तव शिक्षा वर्तिका अलंकरण तथा श्री दीपक तिवारी को वर्तिका सम्मान प्रदान किया जाए गा .
वर्तिका ने अभिनव पहल करते हुए सक्रिय साहित्यिक संस्थाओं को भी सम्मानित करने का निर्णय लिया है. इस वर्ष यह सम्मान गुंजन कला सदन के संस्थापक श्री ओंकार श्रीवास्तव 'संत' को दिये जाने का निर्णय सर्व सम्मति से लिया गया है. 'वर्तमान परिदृश्य में साहित्यकारों की भूमिका' विषय पर संगोष्ठी के आयोजन के पश्चात् अलंकरण समारोह रविवार २२ दिसम्बर २०१३ को संध्या ६ बजे से आयोजित किया जा रहा है. समारोह के मुख्य अतिथि श्री मनु श्रीवास्तव आई. ए. एस. अध्यक्ष एवं प्रबंध संचालक पावर मैनेजमेंट होंगे. कार्यक्रम की अध्यक्षता हेतु कालिदास अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ. कृष्णकांत चतुर्वेदी तथा  विशिष्ट अतिथि के रूप में श्रीमती प्रज्ञा ॠचा श्रीवास्तव आई. पी. एस.  आई. जी. पुलिस महानिरीक्षक ने सहमति प्रदान की है.
समारोह के पहले चरण में दोपहर १ बजे से 'वर्तमान परिदृश्य में साहित्यकारों' की भूमिका विषय पर संगोष्ठी होगी जिसकी अध्यक्षता प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध' करेंगे तथा मुख्य वक्ता के रूप में श्री राजेन्द्र चंद्रकांत राय वक्तव्य देंगे. संगोष्ठी में वाचन हेतु आलेख  श्री विवेकरंजन श्रीवास्तव, अध्यक्ष  वर्तिका, ओ बी ११, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर जबलपुर ४८२००८ को भेजे जा सकते हैं.


शनिवार, 7 दिसंबर 2013

kavita: sanjiv

कविता :
संजीव
*
आओ
सागर की गहराई ​

​पर्वत की ऊँचाई

आकाश का विस्तार

अणु की सूक्ष्मता

बर्फ की ठंडक

अग्नि की गर्मी

पवन का वेग

अपनी बाँहों में समेटो।

अतीत की नींव पर

वर्त्तमान की दीवारें और

भविष्य की छत बनाओ,

परिंदों की तरह चहचहाओ।

अकेलेपन की खिड़की को

भोर की धूप की तरह खटखटाओ।

मेरे-तेरे का भेद भुलाकर

सुरभि की तरह महमहाओ। ​


​स्व को सर्व में विलीन कर

मुट्ठी खोलकर खिलखिलाओ

पाने-गँवाने की चिंता से मुक्त

समय-सलिला में नहाओ

कवि हो जाओ।
*​

facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'


सोमवार, 25 नवंबर 2013

chhand salila: PREMA CHHAND - sanjiv

छंद सलिला%

प्रेमा छंद

संजीव
*
१. मिले&जुले तो हमको तुम्हारे हसीं वादे कसमें लुभायें
   देखो नज़ारे चुप हो सितारों हमें बहारें नगमे सुनाये
   *
२. कहो कहानी कविता रुबाई लिखो वही जो दिल से कहा हो
    देना हमेशा प्रिय को सलाहें सदा वही जो खुद भी सहा हो
   *
३. खिला कचौड़ी चटनी मिठाई मुझे दिला दे कुछ तो खिलौने
   मेला लगा है चल घूम आयें बना न बातें भरमा रे!
****

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

virasat: dwandw geet - ramdhari singh 'dinkar'

विरासत:
द्वन्द्वगीत / 
रामधारी सिंह
"दिनकर" / पृष्ठ - १
*
(१)
चाहे जो भी फसल उगा ले,
तू जलधार बहाता चल।
जिसका भी घर चमक उठे,
तू मुक्त प्रकाश लुटाता चल।
रोक नहीं अपने अन्तर का
वेग किसी आशंका से,
मन में उठें भाव जो, उनको
गीत बना कर गाता चल।
(२)
तुझे फिक्र क्या, खेती को
प्रस्तुत है कौन किसान नहीं?
जोत चुका है कौन खेत?
किसको मौसम का ध्यान नहीं?
कौन समेटेगा, किसके
खेतों से जल बह जाएगा?
इस चिन्ता में पड़ा अगर
तो बाकी फिर ईमान नहीं।
(३)
तू जीवन का कंठ, भंग
इसका कोई उत्साह न कर,
रोक नहीं आवेग प्राण के,
सँभल-सँभल कर आह न कर।
उठने दे हुंकार हृदय से,
जैसे वह उठना चाहे;
किसका, कहाँ वक्ष फटता है,
तू इसकी परवाह न कर।
(४)
हम पर्वत पर की पुकार हैं,
वे घाटी के वासी हैं;
वन में ही वे गृही और
हम गृह में भी संन्यासी हैं।
वे लेते कर बन्द खिड़कियाँ
डर कर तेज हवाओं से;
झंझाओं में पंख खोल
उड़ने के हम अभ्यासी हैं।

(५)
जब - तब मैं सोचता कि क्यों
छन्दों के जाल बिछाता हूँ,
सुनता भी कोई कि शून्य में
मैं झंझा - सा गाता हूँ।
आयेगा वह कभी पियासे
गीतों को शीतल करने,
जीवन के सपने बिखेर कर
जिसका पन्थ सजाता हूँ?
(६)
रोक हॄदय में उसे, अतल से
मेघ उठा जो आता है।
घिरती है जो सुधा, बोलकर
तू क्यों उसे गँवाता है?
कलम उठा मत दौड़ प्राण के
कंपन पर प्रत्येक घड़ी।
नहीं जानता, गीत लेख
बनते-बनते मर जाता है?
(७)
छिप कर मन में बैठ और
सुन तो नीरव झंकारो को।
अन्तर्नभ पर देख, ज्योति में
छिटके हुए सितारों को।
बड़े भाग्य से ये खिलते हैं
कभी चेतना के वन में।
यों बिखेरता मत चल सड़कों
पर अनमोल विचारों को।
(८)
तू जो कहना चाह रहा,
वह भेद कौन जन जानेगा?
कौन तुझे तेरी आँखों से
बन्धु! यहाँ पहचानेगा?
जैसा तू, वैसे ही तो
ये सभी दिखाई पड़ते हैं;
तू इन सबसे भिन्न ज्योति है,
कौन बात यह मानेगा?
(९)
जादू की ओढ़नी ओढ़ जो
परी प्राण में जागी है;
उसकी सुन्दरता के आगे
क्या यह कीर्ति अभागी है?
पचा सकेगा नहीं स्वाद क्या
इस रहस्य का भी मन में?
तब तो तू, सत्य ही, अभी तक
भी अपूर्ण अनुरागी है।
(१०)
बहुत चला तू केन्द्र छोड़ कर
दूर स्वयं से जाने को;
अब तो कुछ दिन पन्थ मोड़
पन्थी! अपने को पाने को।
जला आग कोई जिससे तू
स्वयं ज्योति साकार बने,
दर्द बसाना भी यह क्या
गीतों का ताप बढ़ाने को!
(११)
कौन वीर है, एक बार व्रत
लेकर कभी न डोलेगा?
कौन संयमी है, रस पीकर
स्वाद नहीं फिर बोलेगा?
यों तो फूल सभी पाते हैं,
पायेगा फल, किन्तु, वही,
मन में जन्मे हुए वृक्ष का
भेद नहीं जो खोलेगा।
 

(१२)
तारे लेकर जलन, मेघ
आँसू का पारावार लिए,
संध्या लिए विषाद, पुजारिन
उषा विफल उपहार लिये,
हँसे कौन? तुझको तजकर जो
चला वही हैरान चला,
रोती चली बयार, हृदय में
मैं भी हाहाकार लिये।
(१३)
देखें तुझे किधर से आकर?
नहीं पन्थ का ज्ञान हमें।
बजती कहीं बाँसुरी तेरी,
बस, इतना ही भान हमें।
शिखरों से ऊपर उठने
देती न हाय, लघुता अपनी;
मिट्टी पर झुकने देता है
देव, नहीं अभिमान हमें।
(१४)
एक चाह है, जान सकूँ, यह
छिपा हुआ दिल में क्या है।
सुनकर भी न समझ पाया
इस आखर अनमिल में क्या है।
ऊँचे-टीले पन्थ सामने,
अब तक तो विश्रान नहीं,
यही सोच बढ़ता जाता हूँ,
देखूँ, मंजिल में क्या है।
(१५)
चलने दे रेती खराद की,
रुके नहीं यह क्रम तेरा।
अभी फूल मोती पर गढ़ दे,
अभी वृत्त का दे घेरा।
जीवन का यह दर्द मधुर है,
तू न व्यर्थ उपचार करे।
किसी तरह ऊषा तक टिमटिम
जलने दे दीपक मेरा।
(१६)
क्या पूछूँ खद्योत, कौन सुख
चमक - चमक छिप जाने में?
सोच रहा कैसी उमंग है
जलते - से परवाने में।
हाँ, स्वाधीन सुखी हैं, लेकिन,
ओ व्याधा के कीर, बता,
कैसा है आनन्द जाल में
तड़प - तड़प रह जाने में?
(१७)
छूकर परिधि-बन्ध फिर आते
विफल खोज आह्वान तुम्हें।
सुरभि-सुमन के बीच देव,
कैसे भाता व्यवधान तुम्हें?
छिपकर किसी पर्ण-झुरमुट में
कभी - कभी कुछ बोलो तो;
कब से रहे पुकार सत्य के
पथ पर आकुल गान तुम्हें!
(१८)
देख न पाया प्रथम चित्र, त्यों
अन्तिम दृश्य न पहचाना,
आदि-अन्त के बीच सुना
मैंने जीवन का अफसाना।
मंजिल थी मालूम न मुझको
और पन्थ का ज्ञान नहीं,
जाना था निश्चय, इससे
चुपचाप पड़ा मुझको जाना।
(१९)
चलना पड़ा बहुत, देखा था
जबतक यह संसार नहीं,
इस घाटी में भी रुक पाया
मेरा यह व्यापार नहीं।
कूदूँगा निर्वाण - जलधि में
कभी पार कर इस जग को,
जब तक शेष पन्थ, तब तक
विश्राम नहीं, उद्धार नहीं।
(२०)
दिये नयन में अश्रु, हॄदय में
भला किया जो प्यार दिया,
मुझमें मुझे मग्न करने को
स्वप्नों का संसार दिया।
सब-कुछ दिया मूक प्राणों की
वंशी में वाणी देकर,
पर क्यों हाय, तृषा दी, उर में
भीषण हाहाकार दिया?
(२१)
कितनों की लोलुप आँखों ने
बार - बार प्याली हेरी।
पर, साकी अल्हड़ अपनी ही
इच्छा पर देता फेरी।
हो अधीर मैंने प्याली को
थाम मधुर रस पान किया,
फिर देखा, साकी मेरा था,
प्याली औ’ दुनिया मेरी।
(२२)
विभा, विभा, ओ विभा हमें दे,
किरण! सूर्य! दे उजियाली।
आह! युगों से घेर रही
मानव-शिशु को रजनी काली।
प्रभो! रिक्त यदि कोष विभा का
तो फिर इतना ही कर दे;
दे जगती को फूँक, तनिक
झिलमिला उठे यह अँधियाली।
(२३)
तू, वह, सब एकाकी आये,
मैं भी चला अकेला था;
कहते जिसे विश्व, वह तो
इन असहायों का मेला था।
पर, कैसा बाजार? विदा-दिन
हम क्यों इतना लाद चले?
सच कहता हूँ, जब आया
तब पास न एक अधेला था।
(२४)
मेरे उर की कसक हाय,
तेरे मन का आनन्द हुई।
इन आँखों की अश्रुधार ही
तेरे हित मकरन्द हुई।
तू कहता ’कवि’ मुझे, किन्तु,
आहत मन यह कैसे माने?
इतना ही है ज्ञात कि मेरी
व्यथा उमड़कर छन्द हुई।

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chhand salila: prema chhand -sanjiv

छंद सलिला :
प्रेमा छंद
संजीव
*
इस द्विपदीय, चार चरणीय छंद में प्रथम, द्वितीय तथा चतुर्थ चरण उपेन्द्र वज्रा (१२१ २२१ १२१ २२) तथा तृतीय चरण इंद्रा वज्रा (२२१ २२१ १२१ २२) छंद में होते हैं. ४४ वर्ण वृत्त के इस छंद में ६९ मात्राएँ होती हैं.

उदाहरण:
१. मिलो-जुलो तो हमको तुम्हारे, हसीन वादे-कसमें लुभायें
   देखो नज़ारे चुप हो सितारों, हमें बहारें नगमे सुनायें

२. कहो कहानी कविता रुबाई, लिखो वही जो दिल से कहा हो
   देना हमेशा प्रिय को सलाहें, सदा वही जो खुद भी सहा हो

३. खिला कचौड़ी चटनी मिठाई, मुझे दिला दे कुछ तो खिलौने
   मेला लगा है चल घूम आयें, बना न बातें भरमा नहीं रे!

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बुधवार, 20 नवंबर 2013

rani laxami bal

Original Rani Laxmi Bai picture​रानी लक्ष्मी बाई का मूल चित्र 

झाँसी कि रानी का वास्तविक  चित्र देखिये. बेलगाम के ८८ वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विट्ठल राव यलगी के पास रानी लक्ष्मीबाई का १५ वर्ष की  अवस्था का मूल चित्र कि प्रति है जो जर्मन छायाकार जॉनस्टोन हॉफमैन ने उतारा था. १८३५ में जन्मी रानी का यह चित्र १८५० में झाँसी के महल में लिया गया था जिसमें रानी नाना साहब द्वारा भेंट किये गए परंपरागत मराठी गहने, शाही पोशाक और अपनी ऐतिहासिक तलवार धारण किये हैं. इस चित्र में जो रंग और टोन है वही उस समय के अन्य चित्रों में मिलती है. इसे १९६८ में जयपुर के अम्बर लाल ने १.५ लाख रुपयों में जर्मनी में खरीदा तथा इसकी प्रति अपने मित्र यलगी को दी. 


   न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने १८ - ११ २००९ को यह चित्र रानी लक्ष्मीबाई का असली चित्र बताते हुई छापा। इस चित्र में चेहरे पर प्रकाश का जो छायांकन है वह १८ वीं सदी के कैमरों से सम्भव नहीं था. रानी का ऐसा चित्र लिया जाना उस समय में सम्भव नहीं था. रानी कभी स्टूडियो गयी नहीं और  महल में किसी अंग्रेज छायाकार के सामने इस मुद्रा में आना उनके पद के मर्यादा के विरुद्ध था. 




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मंगलवार, 19 नवंबर 2013

Indian manual lift: sanjiv

भारतीय यांत्रिक लिफ्ट व्यवस्था                   
अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
वाराणसी. आधुनिक बहुमंज़िला इमारतों में बिजली चालित लिफ्ट की परिकल्पना भले ही पश्चिमी देशों ने की हो भारत में भी 18वीं शताब्दी के आखिर में दरभंगा नरेश ने यांत्रिक लिफ्ट की परिकल्पना ही नहीं निर्माणकर उपयोग भी किया था।

राजमाता और रानी के गंगा स्नान के लिए नरेश ने उस समय चक्र (पुली) पर चलने वाली लिफ्ट दरभंगा के राजमहल में लगवा यी थी। रानी और राजमाता को नित्य प्रातः गंगा स्नान के लिए महल से गंगा जी तक सकरी गलियों से होकर आना-जाना पड़ता था जो सुरक्षा की दृष्टि से चिन्ताजनक तथा आम लोगों के लिये असुविधा का कारण था. इसलिए महराजा रामेश्वर सिंह ने 50 फुट ऊंचे दरभंगा महल के ठीक सामने की ओर मीनार में हाथ से चलाई जा सकनेवाली यांत्रिक लिफ्ट बनवायी थी।
गंगा के पश्चिमी तट पर बसी अस्सी और वरुणा के बीच का भूगोल वाराणसी के नाम से विश्वविख्यात है। प्राचीन लोकभाषा "पाली" में वाराणसी को ढाई हजार साल पहले से आमलोग "बनारस" कहा करते थे। भारत के हर प्रदेश के प्रमुख राजघरानों और जमीदारों ने बनारस में आकर बसने का सपना देखा और शायद उसी का परिणाम हैं कि हर घाट के निर्माण में या घाट के ऊपर महलों या भवनों ने अलग-अलग प्रदेश की पहचान और छाप छोड़ी। 100 के ऊपर वाराणसी के घाटो के बीच घाट है 'दरभंगा घाट'। दरभंगा नरेश ने 18वीं शताब्दी के अंतिम दशक में दरभंगा महल का निर्माण कराया था। यह आज भी अपनी मनमोहक नक्काशी और रूप के लिए जाना जाता है।
महल के बाशिंदों में राजमाता या नरेश की पत्नी (रानी) पर्दानशीं हुआ करती थीं। शायद इसलिए घाट से 50 फीट ऊपर महल से गंगा स्नान हेतु आने के लिए दरभंगा नरेश ने काशी के इतिहास में पहली 'लिफ्ट' लगायी। आधुनिक विद्युत् चालित लिफ्ट की परिकल्पना भले ही पश्चिमी देशों ने की हो परन्तु भारत में कुंए से पानी निकालने की विधा बहुत प्राचीन है। चक्र यानी पुली के सहारे भारी वस्तु ऊपर भी जा सकती हैं और नीचे भी आ सकती हैं। कुओं से पानी निकलने के लिए मोट का सञ्चालन बैलों से किया जाता था. इसी विधा पर दरभंगा नरेश ने 18वीं शताब्दी के अंतिम दशक में रानी और राजमाता के लिए हाथ से चलनेवाली लिफ्ट को महल में बनवाया था।

रानी और राजमाता गंगा स्नान के लिए घाट पर आने के लिए महल के बाहरी हिस्से में बनी मीनार में लगी लिफ्ट की मदद से सीधे घाट पर उतर आती थीं। दासियाँ साड़ी का घेरा बनाती थी और स्नान के पहले व बाद रानी और राजमाता पुनः लिफ्ट के माध्यम से महल में वापस चली जाती थी। रख-रखाव न किये जेन के कारण हाथों से चलायी जा सकनेवाली लिफ्ट काल के गर्त में समा चुकी है। जानकार पर्यटक इसके बारे में जानते हैं वह दरभंगा घाट पर बने इस महल को जरूर देखने आते हैं। दरभंगा महल की यह मानवचालित यांत्रिक लिफ्ट इतिहास की एक धरोहर है। बहुत कम लोग जानते हैं कि 18वीं शताब्दी के अंतिम दशक में ही हमारे देश में लोग लिफ्ट का इस्तेमाल करने लगे थे। विज्ञान का अद्भुत समन्वय दरभंगा महल की लिफ्ट थी जो आज इतिहास के पन्नों में रह गई है। इस तकनीकमें सुधर कर आज भी मानवचालित लिफ्ट कम ऊंची इमारतों में उपयोग कर बिजली बचाई जा सकती है तथा अल्पशिक्षित श्रमिकों के लिए रोजगार का सृजन किया जा सकता है.

chhand salila: ardra chhand -sanjiv


छंद सलिला
आर्द्रा छंद
संजीव
*

द्विपदीय, चतुश्चरणी, मात्रिक आर्द्रा छंद के दोनों पदों पदों में समान २२-२२ वर्ण तथा ३५-३५ मात्राएँ होती हैं. प्रथम पद के २ चरण उपेन्द्र वज्रा-इंद्र वज्रा (जगण तगण तगण २ गुरु-तगण तगण जगण २ गुरु = १७ + १८ = ३५ मात्राएँ) तथा द्वितीय पद के २ चरण इंद्र वज्रा-उपेन्द्र वज्रा (तगण तगण जगण २ गुरु-जगण तगण तगण २ गुरु = १८ + १७ = ३५ मात्राएँ) छंदों के सम्मिलन से बनते हैं.
उपेन्द्र वज्रा फिर इंद्र वज्रा, प्रथम पंक्ति में रखें सजाकर
द्वितीय पद में सह इंद्र वज्रा, उपेन्द्र वज्रा कहे हँसाकर
उदाहरण:
१. कहें सदा ही सच ज़िंदगी में, पूजा यही है प्रभु जी! हमारी
   रहें हमेशा रत बंदगी में, हे भारती माँ! हम भी तुम्हारी
२. बसंत फूलों कलियों बगीचों, में झूम नाचा महका सवेरा
   सुवास फ़ैली वधु ज्यों नवेली, बोले अबोले- बस में चितेरा
३. स्वराज पाया अब भारतीयों, सुराज पाने बलिदान दोगे?
    पालो निभाओ नित नेह-नाते, पड़ोसियों से निज भूमि लोगे?
    कहो करोगे मिल देश-सेवा, सियासतों से मिल पार होगे?
    नेता न चाहें फिर भी दलों में, सुधार लाने फटकार दोगे?
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सोमवार, 18 नवंबर 2013

chhand salila: vani chhand -sanjiv

छंद सलिला:
वाणी छंद
संजीव
*
रचना विधान
द्विपदिक, चतुश्चरणी, मात्रिक, ४४ वर्ण, ७१ मात्राएँ
पहला, तीसरा, चौथा चरण
इंद्रा वज्रा, दूसरा चरण उपेन्द्र वज्रा
१, ३, ४ चरण: तगण तगण जगण २ गुरु / २ चरण: जगण तगण जगण २ गुरु
१, ३, ४: २२१-२२१-१२१-२२ २: १२१-२२१-१२१-२२
*
उदाहरण:
१. बोलो न बोलो सुन लो विधाता / अनामनामी वरदानदाता
   मोड़ो न तोड़ो वर दो प्रदाता / जोड़ें न- छोड़ें वह जो सुहाता

२. लोकोपयोगी परियोजनाएँ / विकासवाही सुविकास लायें
   रोकें अँधेरे फिर रौशनी दें / बाधा हटायें पग भी बढ़ायें

३. छोडो न पर्दा प्रिय! लाज क्यों है? / मुझे न रोको अब पास आओ
   रोके न टोके हमको जमाना / बाँहें न छोडो दिल में समाओ

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kavita: karm yogi sachin -dr. kamla jauhari dogra


कर्मयोगी सचिन
डॉ. कमला जौहरी डोगरा
*
(सचिन के पिता श्री के निधन पश्चात् दिनांक २३.३.१९९९ को भोपाल में लिखी गयी रचना, काव्य संग्रह उदगार से)
कर्मयोगी हो सचिन तुम
विश्व के श्रेष्ठतम खिलाड़ी
तुम्हारा धर्म-कर्म-कर्त्तव्य
सब कुछ रहा क्रिकेट ही
उसके उपासक बनकर रहे.
पत्नी का प्रेम हो या कि
बेटी का वात्सल्य-स्नेह
पिता का शोकमय विछोह
विरत न कर पाया तुम्हें
इस कर्म से, इस धर्म से.
शोकाकुल, परिवार से अतिदूर
दिल  संजोये पिता की याद
उड़ गए तुम मुक्ताकाश में यान से
देश की डूबती नैया बचाने को
विश्व कप क्रिकेट के मैदान में.
धन्य है साहसी माता तुम्हारी
दे सकी जो दुःख में भी कर्तव्यबोध
शतक की श्रृद्धांजलि दी-
तुमने पिता को यथायोग्य,
राष्ट्र को सर्वोच्च समझा।
हे गीता के देश के प्यारे!
सच्चे कर्मयोगी खिलाडी
कर्म करो, फल विधाता पर छोड़ दो
कृष्ण का संदेश तो था यही
तुमने सच करके दिखाया।
यह राष्ट्र तुम्हें देता दुआएं अनेक
साथ ही कर्मयोगी की उपाधि।
**********

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kavita: sada rahogi -naren kumar panchbhaya

प्रवेश:
सदा रहोगी
नरेन् कुमार पंचभाया
*
मुझे पता नहीं तुम्हें तोहफे में
एक ताजमहल देने की
क़ाबलियत मुझमें है या नहीं,
पर वादा कर चुका हूँ
तुम्हें देने का

वादा टूटेगा या
सलामत रहेगा
यह तो मेरी किस्मत की
लकीरों को ही पता होगा,
पर मुझे इतना पता है कि
तुम सदा रहोगी
मेरे दिल की धड़कनों में
मुमताज़ बनकर।
*
(ओडिया में काव्य रचना करनेवाले नरेन् जी द्वारा लिखित प्रथम हिंदी कविता)

रविवार, 17 नवंबर 2013

chhand salila: kirti chhand -sanjiv

छंद सलिला :
संजीव
*
कीर्ति छंद
छंद विधान:

द्विपदिक, चतुश्चरणिक, मात्रिक कीर्ति छंद इंद्रा वज्रा तथा उपेन्द्र वज्रा के संयोग से बनता है. इसका प्रथम चरण उपेन्द्र वज्रा (जगण तगण जगण दो गुरु / १२१-२२१-१२१-२२) तथा शेष तीन दूसरे, तीसरे और चौथे चरण इंद्रा वज्रा (तगण तगण जगण दो गुरु / २२१-२२१-१२१-२२) इस छंद में ४४ वर्ण तथा ७१ मात्राएँ होती हैं.
उदाहरण:
१. मिटा न क्यों दें मतभेद भाई, आओ! मिलाएं हम हाथ आओ
   आओ, न जाओ, न उदास ही हो, भाई! दिलों में समभाव भी हो.

२. शराब पीना तज आज प्यारे!, होता नहीं है कुछ लाभ सोचो
   माया मिटा नष्ट करे सुकाया, खोता सदा मान, सुनाम भी तो.

३. नसीहतों से दम नाक में है, पीछा छुड़ाएं हम आज कैसे?
   कोई बताये कुछ तो तरीका, रोके न टोके परवाज़ ऐसे.

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muktak : sanjiv

​श्री कीर्तिवर्धन अगरवाल के प्रति:
मुक्तक सलिला:
संजीव
*
कीर्ति वर्धन हो सभीकी चाह है यही
चुप करते चलो काम शुभ की राह है यही
आलस न करो, परिश्रम से हाथ मिला लो-
'संजीव' ज़िन्दगी की परवाह है यही.
*
सीधी सरल शख्सियत है मित्र आपकी
शालीनता ही खासियत है मित्र आपकी
हँसकर गले मिले तो अपना बना लिया-
मुस्कान में रूमानियत है मित्र आपकी
*
साथ लक्ष्मी के शारदा की साधना
पवन बहुत है साथ निभाने की भावना
है साथ जवानों के सारा जहाँ 'सलिल'
दें साथ बुजुर्गों का सदा मनोकामना
*
नम आँख देखकर हमारी आँख नम हुई
दिल से करी तारीफ मगर वह भी कम हुई
हमने जलाई फुलझड़ी 'सलिल' ये क्या हुआ
दीवाला हो गया है वो जैसे ही बम हुई.
*
संजीव वर्मा 'सलिल'
२०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन
जबलपुर ४८२००१
०७६१ २४१११३१ / ९४२५१ ८३२४४

शनिवार, 16 नवंबर 2013

geet: baad deepawali ke... sanjiv

गीति रचना :
बाद दीपावली के...
संजीव
*
बाद दीपावली के दिए ये बुझे
कह रहे 'अंत भी एक प्रारम्भ है.
खेलकर अपनी पारी सचिन की तरह-
मैं सुखी हूँ, न कहिये उपालम्भ है.
कौन शाश्वत यहाँ?, क्या सनातन यहाँ?
आना-जाना प्रकृति का नियम मानिए.
लाये क्या?, जाए क्या? साथ किसके कभी
कौन जाता मुझे मीत बतलाइए?
ज्यों की त्यों क्यों रखूँ निज चदरिया कहें?
क्या बुरा तेल-कालिख अगर कुछ गहें?
श्वास सार्थक अगर कुछ उजाला दिया,
है निरर्थक न किंचित अगर तम पिया.
*
जानता-मानता कण ही संसार है,

सार किसमें नहीं?, कुछ न बेकार है.

वीतरागी मृदा - राग पानी मिले

बीज श्रम के पड़े, दीप बन, उग खिले.

ज्योत आशा की बाली गयी उम्र भर.

तब प्रफुल्लित उजाला सकी लख नज़र.

लग न पाये नज़र, सोच कर-ले नज़र

नोन-राई उतारे नज़र की नज़र.

दीप को झालरों की लगी है नज़र

दीप की हो सके ना गुजर, ना बसर.

जो भी जैसा यहाँ उसको स्वीकार कर

कर नमन मैं हुआ हूँ पुनः अग्रसर.
*

बाद दीपावली के सहेजो नहीं,

तोड़ फेंकों, दिए तब नये आयेंगे.

तुम विदा गर प्रभाकर को दोगे नहीं

चाँद-तारे कहो कैसे मुस्कायेंगे?

दे उजाला चला, जन्म सार्थक हुआ.

दुख मिटे सुख बढ़े, गर न खेलो जुआ.

मत प्रदूषण करो धूम्र-ध्वनि का, रुको-

वृक्ष हत्या करे अब न मानव मुआ.

तीर्थ पर जा, मनाओ हनीमून मत.
​​

मुक्ति केदार प्रभु से मिलेगी 'सलिल'

पर तभी जब विरागी रहो राग में
और रागी नहीं हो विरागी मनस।
इसलिए हैं विकल मानवों के हिये।​
चल न पाये समय पर रुके भी नहीं
अलविदा कह चले, हरने तम आयें फिर 
बाद दीपावली के दिए जो बुझे.
*

hindi chhand: upendra vajra -sanjiv

छंद सलिला:
उपेन्द्र वज्रा
संजीव
*
इस द्विपदिक मात्रिक छंद के हर पद में क्रमश: जगण तगण जगण २ गुरु अर्थात ११ वर्ण और १७ मात्राएँ होती हैं.
उपेन्द्रवज्रा एक पद = जगण तगण जगण गुरु गुरु = १२१ / २२१ / १२१ / २२
उदाहरण:
१. सरोज तालाब गया नहाया
   सरोद सायास गया बजाया
   न हाथ रोका नत माथ बोला
   तड़ाग झूमा नभ मुस्कुराया
२. हथेलियों ने जुड़ना न सीखा
   हवेलियों ने झुकना न सीखा।
   मिटा दिया है सहसा हवा ने-
   फरेबियों से बचना न सीखा
३. जहाँ-जहाँ फूल खिलें वहाँ ही,
    जहाँ-जहाँ शूल, चुभें वहाँ भी,
   रखें जमा पैर हटा न पाये-
   भले महाकाल हमें मनायें।

chhand salila: indra vajraa


छंद सलिला:
इंद्रा वज्रा छंद
सलिल
*
इस द्विपदिक मात्रिक चतुःश्चरणी छंद के हर पद में २ तगण, १ जगण तथा २ गुरु मात्राएँ होती हैं. इस छंद का प्रयोग मुक्तक हेतु भी किया ज सकता है.
इन्द्रवज्रा एक पद = २२१ / २२१ / १२१ / २२ = ११ वर्ण तथा १८ मात्राएँ
उदाहरण:
१. तोड़ो न वादे जनता पुकारे
   बेचो-खरीदो मत धर्म प्यारे
   लूटो तिजोरी मत देश की रे!
   चेतो न रूठे, जनता न मारे
२. नाचो-नचाओ मत भूलना रे!
   आओ! न जाओ, कह चूमना रे!
   माशूक अपनी जब साथ में हो-
   झूमो, न भूले हँस झूलना रे!
३. पाया न / खोया न / रखा न / रोका
   बोला न / डोला न / कहा न / टोंका
   खेला न / झेला न / तजा न / हारा
   तोडा न / फोड़ा न / पिटा न / मारा
४. आराम / ही राम / हराम / क्यों हो?
   माशूक / के नाम / पयाम / क्यों हो?
   विश्वास / प्रश्वास / नि:श्वास टूटा-
   सायास / आभास / हुलास /  झूठा
                     ***
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