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शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

दोहा चंचरीक पर

 चंचरीक - चरित दोहावली

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल
*
'चंचरीक' प्रभु चरण के, दैव कृपा के पात्र
काव्य सृजन सामर्थ्य के, नित्य-सनातन पात्र
*
'नारायण' सा 'रूप' पा, 'जगमोहन' शुभ नाम
कर्म कुशल कायस्थ हो, हरि को हुए प्रणाम
*
'नारायण' ने 'सूर्य' हो, प्रगटाया निज अंश
कुक्षि 'वासुदेवी' विमल, प्रमुदित पा अवतंश
*
सात नवंबर का दिवस, उन्निस-तेइस वर्ष
पुत्र-रुदन का स्वर सुना, खूब मनाया हर्ष
*
बैठे चौथे भाव में, रवि शशि बुध शनि साथ
भक्ति-सृजन पथ-पथिक से, कहें न नत हो माथ
*
रवि उजास, शशि विमलता, बुध दे भक्ति प्रणम्य
शनि बाधा-संकट हरे, लक्ष्य न रहे अगम्य
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'विष्णु-प्रकाश-स्वरूप' से, अनुज हो गए धन्य
राखी बाँधें 'बसन्ती, तुलसी' स्नेह अनन्य
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विद्या गुरु भवदत्त से, मिली एक ही सीख
कीचड में भी कमलवत, निर्मल ही तू दीख
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रथखाना में प्राथमिक, शिक्षा के पढ़ पाठ
दरबार हाइ स्कूल में, पढ़े हो सकें ठाठ
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भक्तरत्न 'मथुरा' मुदित, पाया पुत्र विनीत
भक्ति-भाव स्वाध्याय में, लीन निभाई रीत
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'मन्दिर डिग्गी कल्याण' में, जमकर बँटा प्रसाद
भोज सहस्त्रों ने किया, पा श्री फल उपहार
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'गोविंदी' विधवा बहिन, भुला सकें निज शोक
'जगमोहन' ने भक्ति का, फैलाया आलोक
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पाठक सोहनलाल से, ली दीक्षा सविवेक
धीरज से संकट सहो, तजना मूल्य न नेक
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चित्र गुप्त है ईश का, निराकार सच मान
हो साकार जगत रचे, निर्विकार ले जान
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काया स्थित ब्रम्ह ही, है कायस्थ सुजान
माया की छाया गहे, लेकिन नहीं अजान
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पूज किसी भी रूप में, परमशक्ति है एक
भक्ति-भाव, व्रत-कथाएँ, कहें राह चल नेक
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'रामकिशोरी' चंद दिन, ही दे पायीं साथ
दे पुत्री इहलोक से, गईं थामकर हाथ
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महाराज कॉलेज से, इंटर-बी. ए. पास
किया, मिले आजीविका, पूरी हो हर आस
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धर्म-पिता भव त्याग कर, चले गए सुर लोक
धैर्य-मूर्ति बन दुःख सहा, कोई सका न टोंक
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रचा पिता की याद में, 'मथुरेश जीवनी' ग्रन्थ
'गोविंदी' ने साथ दे, गह सृजन का पंथ
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'विद्यावती' सुसंगिनी, दो सुत पुत्री एक
दे, असमय सुरपुर गयीं, खोया नहीं विवेक
*
महाराजा कॉलेज से, एल-एल. बी. उत्तीर्ण
कर आभा करने लगे, अपनी आप विकीर्ण
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मिली नौकरी किन्तु वह, तनिक न आयी रास
जुड़े वकालत से किये, अनथक सतत प्रयास
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प्रगटीं माता शारदा, स्वप्न दिखाया एक
करो काव्य रचना सतत, कर्म यही है नेक
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'एकादशी महात्म्य' रच, किया पत्नि को याद
व्यथा-कथा मन में राखी, भंग न हो मर्याद
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रच कर 'माधव-माधवी', 'रुक्मिणी मंगल' काव्य
बता दिया था कलम ने, क्या भावी संभाव्य
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सन्तानों-हित तीसरा, करना पड़ा विवाह
संस्कार शुभ दे सकें, निज दायित्व निबाह
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पा 'शकुंतला' हो गया, घर ममता-भंडार
पाँच सुताएँ चार सुत, जुड़े हँसा परिवार
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सावित्री सी सुता पा, पितृ-ह्रदय था मुग्ध
पाप-ताप सब हो गए, अगले पल ही दग्ध
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अधिवक्ता के रूप में, अपराधी का साथ
नहीं दिया, सच्चाई हित, लड़े उठाकर माथ
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दर्शन 'गलता तीर्थ' के, कर भूले निज राह
'पयहारी' ने हो प्रगट, राह दिखाई चाह
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'सन्तदास'-संपर्क से, पा आध्यात्म रुझान
मन वृंदावन हो चला, भरकर भक्ति-उड़ान
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'पुरुषोत्तम श्री राम चरित', रामायण-अनुवाद
कर 'श्री कृष्ण चरित' रचा, सुना अनाहद नाद
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'कल्कि विष्णु के चरित' को, किया कलम ने व्यक्त
पुलकित थे मन-प्राण-चित, आत्मोल्लास अव्यक्त
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चंचरीक मधुरेश थे, मंजुल मृदुल मराल
शंकर सम अमृत लुटा। पिया गरल विकराल
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मोहन सोहन विमल या, वृन्दावन रत्नेश
मधुकर सरस उमेश या , थे मुचुकुन्द उमेश
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प्रेमी गुरु प्रणयी वही, अम्बु सुनहरी लाल
थे भगवती प्रसाद वे, भगवद्भक्त रसाल
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सत्ताईस तारीख थी, और दिसंबर माह
दो हजार तेरह बरस, त्यागा श्वास-प्रवाह
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चंचरीक भू लोक तज, चित्रगुप्त के धाम
जा बैठे दे विरासत, अभिनव ललित ललाम
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उन प्रभु संजीव थे, भक्ति-सलिल में डूब
सफल साधना कर तजा, जग दे रचना खूब
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निर्मल तुहिना दूब पर, मुक्तामणि सी देख
मन्वन्तर कर कल्पना, करे आपका लेख
*
जगमोहन काया नहीं, हैं हरि के वरदान
कलम और कवि धन्य हो, करें कीर्ति का गान ४२
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-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
समन्वयम २०४ विजय अपार्टमेंट,
नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१
०७६१ २४१११३१, ९४२५१ ८३२४४
salil.sanjiv@gmail.com

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