जगदीश किंजल्क
जन्म- २५ नवंबर १९४८ टीकमगढ़, मध्य प्रदेश। निधन- २४ जनवरी २०२३ भोपाल।
आत्मज- अंबिका प्रसाद वर्मा 'दिव्य', (१६ मार्च १९०७- ५ सितंबर ) राष्ट्रपति पुरस्कृत शिक्षक, कवि, उपन्यासकार, नाटककार, चित्रकार, क्रांतिकारी, समाज सेवी, ६० पुस्तकें, महाकाव्य गाँधी पारायण । उन्होंने शिक्षा विभाग में रहते हुये अपनी बेहतरीन शिक्षा पद्धति , बेहतरीन व्यवस्था और बेहतरीन कार्य शैली के लिये तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम डॉ .राजेन्द्र प्रसाद जी से आज की तिथि पांच सितम्बर को ही राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया था । उन्होंने पांच सितम्बर को ही सेवा काल से अवकाश ग्रहण किया था और स्मरणीय है कि पांच सितम्बर शिक्षक दिवस पर ही वे संसार को अलविदा कह गये ।
शिक्षा- एम. ए. (अंग्रेजी, हिंदी), बी.एड., डिप्लोमा पत्रकारिता।
संप्रति- कार्यक्रम अधिकारी आकाशवाणी टीकमगढ़, जबलपुर, सागर, भोपाल।
परिचर्चा सम्राट, कहानीकार, व्यंग्यकार, धर्मयुग से लंबा जुड़ाव।
संपादक- दिव्यालोक।
संयोजक- अखिल भारतीय अंबिका प्रसाद दिव्य स्मृति प्रतिष्ठा पुरस्कार।
शिक्षक मॉडल स्कूल भोपाल।
पुस्तकें- ९ सुकूने-जिगर, हम तो परनिंदा करिवे, जिंदगी कुछ पृष्ठों की आदि।
विशेष- एक हजार से अधिक परिचर्चाएँ।
उपलब्धि- जिंदगी कुछ पृष्ठों की पर द्वितीय पुरस्कार मध्य प्रदेश युवक कल्याण संचालनालय भोपाल द्वारा।
संचालनालय पंचायत एवं समाज सेवा भोपाल द्वारा अखिल भारतीय लोक कथा प्रतियोगिता १९७६-७७ में दो बार पुरस्कृत।
संस्कृति-साहित्य-कला विद्यापीठ मथुरा द्वारा साहित्यलंकार १९७७।
प्रेमचंद जन्म शताब्दी समारोह समिति जबलपुर द्वारा १९८२- उत्कृष्ट लेखक सम्मान।
प्रगतिशील लेखक संघ टीकमगढ़ द्वारा बसंत पंचमी पर अभिनंदन।
केशव जयंती समिति ओरछा द्वारा अभिनंदन १९८९।
अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन भोपाल द्वारा साहित्य श्री १९९२।
मध्य प्रदेश कला संगम पन्ना द्वारा अभिनंदन १९९३।
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My View : God is life and Life is God...!
----------------- Jagdish Kinjalk -----------
First priority of Man is to love his Life. Other priorities may be his Wife, Children,Health, Wealth etc.Question is - Why a man loves his life so much..? Where as he has no control on his Life. Life is given by the God. God has scheduled every moment of man's Life.
I think, Life is the man's Identity, that is why he loves it in priority. Much has been written by the Authors on Life. This is not the end of writing. Much more will be written on life in future. Still, no fully accepted definition is on the platform.
The biggest creation of God is Man. Second biggest creation is Life. Both are essential parts of each other. Some times I think - God is Life and Life is God. If you think some thing otherwise, please express your view also. Life may be explained in many ways. As many men so many definitions of Life may be.
Can you come forward with a new view about Life..?
@ Jagdish Kinjalk @
Email-- jagdishkinjalk@gmail.com
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My View : Never smile in front of weeping eyes...!
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We have no control on tears. They may come out any where, any time on any occasion. Tears and Smile, both are powerful expressions of human being. Both these expressions may give opposite, and inhuman results, if they are expressed in different situations. We are not supposed to smile on the occasion of sorrow, likewise weep on the occasion of happiness.
Some times we commit mistakes, without caring for other's emotions. Our smallest mistakes may deeply heart other's feelings. To hurt the feelings of others, is an act of inhumanity. We should be very much causes and should escape ourselves from this penetrating act. Here I remember a line of a poem of famous Poetess Smt. Vijai lakshmi Vibha. She writes...
" Jinki aankhon mai ask dikh jayan,
Unke aage na muskara dena... "
It means, " Never smile in front of persons, whose eyes may have tears..." This is a small saying with big message, and big humanity. Can we keep this thing in our minds always..to save the humanity...? Pl. go deep and deep to understand the feeling , which is hidden in this line...!
@ Jagdish Kinjalk @
My View : The Speed of Bad Name is much more than Good Name..!
---------------------------- Jagdish Kinjalk ----------------------------
We know well that Bad Name and Good Name, both are Names, but Bad Name runs very faster than Good Name. Not only this, the stability of Bad Name , is also much more than Good Name.
A Man has two choices only. Either he can earn Good Name or Bad Name. There is no mid way. I have heard some Politicians saying, " Name is Name, weather it is Good or Bad, Both give Publicity ...."
I think, No Name is also a silent Name. It has also potentiality . Let us do our work silently. Let the Name do it's work. Silent Name will walk slowly and will reach to it's destination in his own Time.
We should not run behind the Name . We should do our work silently and honestly. One day the Name itself decide the future of the Worker.
Let us leave this responsibility on the Name.We should do our work silently and honestly.
@ Jagdish Kinjalk @
भोपाल : मंगलवार, जनवरी 24, 2023,
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने वरिष्ठ लेखक और आकाशवाणी के सेवानिवृत्त अधिकारी श्री जगदीश किंजल्क के निधन पर दुख व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि श्री किंजल्क एक आदर्श शिक्षक, लेखक और एक अच्छे मनुष्य के रूप में सदैव याद किए जाएंगे। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि स्व. किंजल्क जीवनभर साहित्य सृजन से जुड़े रहे, लेखन उन्हें विरासत में मिला था। किंजल्क जी ने परिचर्चा लेखन जैसी विधा को हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रतिष्ठा दिलवाई।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि स्व. श्री किंजल्क नए लेखकों को प्रोत्साहित करते थे। उन्होंने साहित्य कर्मियों को पुरस्कार प्रदान करने का सेवा कार्य किया। उनकी सेवाओं को याद रखा जाएगा। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति और उनके परिजन को यह दुख सहन करने की शक्ति देने की प्रार्थना की है।
उल्लेखनीय है कि स्व. श्री किंजल्क ने भोपाल के एक निजी अस्पताल में अंतिम साँस ली। वे कुछ दिन से अस्वस्थ चल रहे थे। उनका अंतिम संस्कार बुधवार को भोपाल में होगा। स्व. श्री किंजल्क आकाशवाणी से लंबे समय तक जुड़े रहे। उन्होंने आकाशवाणी छतरपुर, भोपाल, जबलपुर, सागर, शिवपुरी को सेवाएँ दी। वे राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित हुए थे। उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं में परिचर्चा की विधा इजाद की। पत्रिका धर्मयुग से लंबे समय तक जुड़े रहे। देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे। स्व. श्री जगदीश किंजल्क ने मॉडल स्कूल भोपाल में शिक्षक के तौर पर भी सेवाएँ दी।
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परिचर्चा - सम्राट को श्रद्धांजलि
गंभीर सिंह पलानी
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हिंदी में परिचर्चा विधा को ऊँचाईयों पर ले जाने वाले श्री जगदीश किंजल्क का दिनाँक २४ जनवरी २०२३ को भोपाल में निधन हो गया. आज भोपाल में साईंनाथ नगर स्थित उनके आवास पर उन की तेरहवीं का आयोजन किया गया है. इस अवसर पर मैं उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ.
मैं उन के नाम से पहली बार तब परिचित हुआ जब मैं कक्षा ७-८ में पढ़ता था. प्रतिष्ठित पत्रिका 'धर्मयुग' में उनके द्वारा आयोजित परिचर्चायें प्रायः पढ़ने को मिलती. यह १९६७-६८ के दिनों की बात है . ज्यों - ज्यों मैं बड़ा होता गया और अन्य पत्रिकाओं के संपर्क में आया, उनमें भी किंजल्क जी द्वारा आयोजित सैंकड़ों परिचर्चायें पढ़ीं. कुछ लोगों ने तो उन्हें 'परिचर्चा सम्राट ' की उपाधि भी दे दी थी .
वर्ष १९९७ से उन्होंने प्रतिवर्ष अपने पिता सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यासकार व नाटककार श्री अंबिका प्रसाद 'दिव्य ' की स्मृति में अंबिका प्रसाद 'दिव्य ' साहित्य सम्मान की घोषणा करना भी शुरु किया था. इस सम्मान से सम्मानित सारे लेखकों के नाम तो अभी मुझे याद नहीं आ रहे पर जो याद आ रहे हैं, वे हैं : मीरा कांत, सुधा ओम ढींगरा, उर्मिला शिरीष, शरद सिंह, बल्ली सिंह चीमा, पवन चौधरी 'मनमौजी ', शैलेय, शम्भू दत्त सती आदि.( जो - जो नाम मुझे याद आते जायेंगे, इस पोस्ट में बाद में जोड़ता जाऊँगा.)
वर्ष २००१ या २००२ में किंजल्क जी से मेरी पहली मुलाकात बड़े ही नाटकीय ढंग से नैनीताल बैंक, भीमताल (नैनीताल ) के बाहर एक रविवार को हुई जिसे एक दुर्लभ संयोग ही कहा जायेगा. उन दिनों मैं उक्त बैंक शाखा में प्रबंधक के पद पर कार्यरत था और वे आकाशवाणी : सागर में कार्यरत थे. हमारे बैंक के चेयरमैन श्री वी. के. वर्मा उन्हें अपने साथ भीमताल घुमाने लाये थे.
प्रख्यात व्यंग्य लेखक श्री अरविन्द तिवारी का एक उपन्यास है, 'हैड ऑफिस के गिरगिट.' उन दिनों वर्मा जी से मेरे संबंध अच्छे नहीं चल रहे थे चूँकि ऐसे गिरगिट मेरे खिलाफ भी सक्रिय थे और उन्होंने मेरे विरुद्ध वर्मा जी के कान भर रखे थे.
बैंक के बाहर जब कार रुकी तो श्री वर्मा ने किंजल्क जी से मेरा परिचय यह बतलाते हुए कराया,"ये जगदीश किंजल्क जी हैं, मेरे होने वाले समधी. आकाशवाणी : सागर में प्रोग्राम एग्जिक्यूटिव हैं. "
विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित किंजल्क जी का फोटो तो मैं पहचानता ही था. परिचर्चा में शामिल होने वाली उनकी पत्नी श्रीमती राजो किंजल्क के नाम से भी मैं परिचित था ही . मेरे मुँह से एकाएक निकल पड़ा, " किंजल्क जी, कैसे हैं आप? राजो किंजल्क जी कैसी हैं? मेरी जानकारी में तो आप आकाशवाणी : छतरपुर में कार्यरत थे. सागर कब पहुँच गये….. मैं गंभीर सिंह पालनी हूँ."
" अर् रे 'मेंढक' कहानी वाले गंभीर सिंह पालनी हैं आप? आपसे एकाएक इस तरह मुलाक़ात होगी – यह तो मैंने कभी सोचा न था."-- किंजल्क जी के मुँह से यह सब सुनकर वर्मा जी हतप्रभ रह गये.
उनके होने वाले समधी किंजल्क जी उनके बैंक में कार्यरत गंभीर सिंह पालनी को लेखक के रूप में पहचानते हैं – यह जानना उन्हें आश्चर्य में डाल गया था.
उस दिन भीमताल से लौटते हुए वर्मा जी मेरा कहानी - संग्रह 'मेंढक ' भी अपने साथ ले गये. उस दिन के बाद वर्मा जी की नजर में मेरा कद बढ़ गया था. मैं उन की 'गुड बुक्स ' में शामिल हो गया था. इसका दूरगामी परिणाम यह भी हुआ कि वर्मा जी के बैंक से चले जाने के बाद नये चेयरमैन मिस्टर ए. के. गर्ग के आने के कुछ दिनों बाद गिरगिट मेरे ट्रांसफर का ऑर्डर भीमताल से दिल्ली के लिये करवाने में कामयाब हो गये तो वर्मा जी ने नये चेयरमैन को फोन कर के मेरा ट्रांसफर रातों-रात कैंसिल करवा दिया. ( उन दिनों मेरे बच्चे बहुत छोटे थे और मैं दिल्ली नहीं जाना चाहता था.)
वर्मा जी को जब मैंने इस विषय में फोन पर धन्यवाद देना चाहा तो बोले, " यह काम कुछ खास भी तो नहीं था. यह समझ लो कि 'मेंढक ' कहानी की रायल्टी तुम्हें मिल गयी." यही नहीं, उसके बाद यह भी हुआ कि जब गर्ग साहब से मैंने कहा कि मेरी इच्छा है कि मेरी बेटी कक्षा छः से नैनीताल के प्रसिद्ध सेंट मैरीज कान्वेंट में पढ़े तो उन्होंने मेरी इस इच्छा का मान रखते हुए मेरा ट्रांसफर नैनीताल कर दिया जिसका दूरगामी परिणाम यह रहा कि वहाँ के शैक्षिक माहौल में उसकी नींव मज़बूत हो जाने के कारण आजकल वह ब्रिटेन में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है.
किंजल्क जी की भीमताल यात्रा का प्रसंग तो बीच में ही छूट गया. उन दोनों के भीमताल से जाने के कुछ दिनों बाद हतप्रभ होने की बारी मेरी थी. 'मेंढक' के लिये मुझे 'अंबिका प्रसाद दिव्य सम्मान ' दिये जाने की घोषणा की जा चुकी थी. यह सम्मान मुझे आदरणीय श्री अमृत लाल बेगड़ जी ,प्रभाकर श्रोत्रिय जी , कांति कुमार जैन जी व किंजल्क जी के कर कमलों द्वारा प्रदान किया गया.
इस प्रकार अनायास हुई यह मुलाकात मेरे जीवन में नये चटक रंग लाई. बाद में हम लोग पारिवारिक मित्र भी हो गये थे.हाँ, यह बताना तो मैं भूल ही गया कि नैनीताल में वर्मा जी के बेटे के साथ हुए उनकी बेटी अनन्या के विवाह में मैं कन्या पक्ष की ओर से घराती के रूप में शामिल हुआ था. बैंक - स्टाफ के बीच होने वाली चर्चा का एक विषय यह भी रहा कि पालनी की जेब में इस शादी के दोनों पक्षों की तरफ के निमंत्रण कार्ड हैं.
किंजल्क जी से मेरी आखिरी मुलाक़ात भोपाल स्थित उनके आवास पर सवा तीन वर्ष पूर्व हुई थी जब मैं टैगोर विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक आयोजन 'विश्वरंग' में भाग लेने भोपाल गया था. उनका मुस्कराता हुआ चेहरा आज भी मेरी स्मृति में है. उन्हें सादर नमन.
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सौरभ भारत- बचपन में जब पहली बार कोई कहानी लिखी थी तो मौका मिलते ही, Jagdish Kinjalk दादाजी को सुनाई। कहानी तो कुछ खास याद नही पर दादाजी ने जो कहा वो याद रहा हमेशा, कहानी सुनने और सुनाने वाले दोनो को मजा आना चाहिए! तभी कहानी दिल को छूती है। उसके बाद अनेको मौकों पर दादा जी जाने अंजाने मुझे प्रेरणा देते रहे! कभी दाऊजी ( अंबिका प्रसाद दिव्य जी ) की कहानियों और किस्से सुना कर और कभी यूंही किवदंतियों के सहारे। हमेशा चेहरे पे मुस्कान और हमेशा कुछ न कुछ नया परिपेक्ष्य देते हुए, दादाजी ने हमेशा मुझे लिखने और लिखते रहने के लिए प्रोत्साहित किया। जिस तरह से आपने दाऊजी को जिंदा रखा, आपको भी हमेशा जिंदा रखेंगे, यादों में!
ओम शांति !
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प्रीत व्यास- विदा परिचर्चा सम्राट
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अभी अभी रजनी सक्सेना दी की पोस्ट से पता चला कि छतरपुर (म. प्र.) शहर की एक और विभूति प्रस्थान कर गई. जगदीश किंजल्क अंकल नहीं रहे. सालों पुराना नाता. उनके पिता अम्बिकाप्रसाद 'दिव्य' जी मेरे दादाजी श्री विंध्य कोकिल भैयालाल जी व्यास के साथ रह चुके थे और इसी नाते उन्हें अंकल कहा करती थी.
दिव्य जी के स्वर्गवास के बाद जगदीश अंकल ने उनके साहित्यिक पक्ष को जीवित रखने के लिए बहुत काम किया और इस बात पर हमेशां दादाजी कहते कि ये योग्य उत्तराधिकारी है, इसने अपना साहित्यिक विरसा संभाला. उन्होंने ना सिर्फ दिव्य जी के अप्रकाशित लेखन को प्रकाशित करवाया बल्कि उनके नाम से एक पुरस्कार भी आरंभ किया.
वे आकाशवाणी छतरपुर में कार्यक्रम अधिकारी थे और मैं भी तब अपनी पढाई के साथ-साथ कैजुअल एनाउंसर के तौर पर जाया करती थी. उन्होंने उस समय कम प्रचलित विधा "परिचर्चा" को अपनाया और बहुत काम किया. ये वो समय था जब धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान आदि हर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका में उनकीपरिचर्चाएं छपा करती थीं और जब सौ छप चुकीं तो वे परिचर्चा सम्राट कहे जाने लगे.
जब भी हम उनके घर जाते वे अपनी परिचर्चाओं की कटिंग्स की व्यवस्थित फ़ाइल्स दिखाया करते.उनकी बीसियों परिचर्चाओं में मैंने भी कुछ अपनी बाल- बुद्धि अनुरुप लिखा था. उनकी पत्नी राजो, बहन विभा सभी साहित्य से संगीत से जुड़े हुए.
अपने शहर के हर परिचित की विदा अंदर से मुझे थोड़ा सा खाली कर जाती है. नमन. श्रद्धांजलि.
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गिरीश पंकजJagdish Kinjalk
गिरीश पंकजJagdish Kinjalk
24 जनवरी 2023
नहीं रहे परिचर्चा सम्राट !
जगदीश किंजल्क जी के निधन की खबर से मन विचलित हो गया । मेरा उनसे बहुत पुराना परिचय था। तब वे छतरपुर आकाशवाणी में काम करते थे। सन १९९० से पहले की बात है। तब एक साहित्यिक सम्मेलन में जगदीश जी अपने पिता अम्बिकाप्रसाद 'दिव्य' जी के साथ रायपुर पधारे थे। तब मैंने उनके पिताजी का एक साक्षात्कार भी लिया था, जो नवभारत में प्रकाशित हुआ था। तब मैं नवभारत का साहित्यिक पर देखा करता था जो मध्य प्रदेश ,महाराष्ट्र तक जाया करता था । किंजल्क जी से लगातार संवाद कायम रहा। यह वह दौर था जब धर्मयुग जैसी महत्वपूर्ण पत्रिका में उनके द्वारा ली गई परिचर्चाएँ खूब छपा करती थी। लोग उन्हें परिचर्चा सम्राट के रूप में जानते थे। एक-दो परिचर्चा ओं में उन्होंने मेरे विचार भी लिए थे। अपने पिताजी के नाम से उन्होंने दिव्य सम्मान भी शुरू किया था, जो वर्षों तक चला । एक बार अतिथि के रूप में उन्होंने मुझे भी आमंत्रित किया था। किसी कारणवश मैं उसमें शामिल नहीं हो सका था। किंजल्क जी का परिवार साहित्यिक था। सबका अपना अपना नाम था ।जगदीश जी से भोपाल में भी मेरी मुलाकाते समय-समय पर भी होती रहीं। आज उनके निधन की खबर सुनकर पीड़ा पहुंची। उन्हें शत-शत नमन
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