कुल पेज दृश्य

रविवार, 27 सितंबर 2020

कार्यशाला : सिगरेट

कार्यशाला :
सिगरेट 
संजीव 
*
ज़िंदगी सिगरेट सी जलती रही 
ऐश ट्रे में उमीदों की राख है। 
दिलजले ने दाह दी हर आह
जला कर सिगरेट, पाया चैन कुछ।  
*
राह उसकी रात तक देखा किया 
थाम कर सिगरेट, बेबस मौन दिल। 
*
धौंककर सिगरेट छलनी ज़िंदगी 
बंदगी की राख ले ले ऐ खुदा!
*
अधरों पे रखा, फेंक दिया, सिगरेट की तरह। 
न उसकी कोई वज़ह रही, न इसकी है वजह। 

कोई टिप्पणी नहीं: