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सोमवार, 21 सितंबर 2020

नवगीत मेघ बजे

नवगीत

मेघ बजे....

संजीव 'सलिल'

*

मेघ बजे, मेघ बजे,

मेघ बजे रे!

धरती की आँखों में,

स्वप्न सजे रे...

*

सोई थी सलिला.

अंगड़ाई ले जगी.

दादुर की टेर सुनी-

प्रीत में पगी..

मन-मयूर नाचता,

न वर्जना सुने.

मुरझाये पत्तों को,

मिली ज़िंदगी..

झूम-झूम झर झरने,

करें मजे रे.

धरती की आँखों में,

स्वप्न सजे रे...

*

कागज़ की नौका,

पतवार बिन बही.

पनघट-खलिहानों की-

कथा अनकही..

नुक्कड़, अमराई,

खेत, चौपालें तर.

बरखा से विरह-अगन,

तपन मिट रही..

 

सजनी पथ हेर-हेर,

धीर तजे रे!

धरती की आँखों में,

स्वप्न सजे रे...

*

मेंहदी उपवास रखे,

तीजा का मौन.

सातें-संतान व्रत,

बिसरे माँ कौन?

छत्ता-बरसाती से,

मिल रहा गले.

सीतता रसोई में,

शक्कर संग नौन.

खों-खों कर बऊ-दद्दा,

राम भजे रे!

धरती की आँखों में,

स्वप्न सजे रे...

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