कुल पेज दृश्य

रविवार, 13 सितंबर 2020

मुक्तक

मुक्तक
*
काश! कभी हम भी सुधीर हो पाते
संघर्षों में जीवन-जय गुंजाते
गगन नापते, बूझ दिशा अनबूझी
लौट नीड पर ग़ज़लें-नगमे गाते
*
माँ मरती ही नही, जिया करती है संतानों में
श्वास-आस अपने -सपने कब उसे भूल पाते हैं
हो विदेह वह साथ सदा, संकट में संबल देती-
धन्य वही सुत जो मैया के गुण आजीवन गाते
*
सुर जीत रहे तो अ-सुर हार कर खुद बाहर हो जायेंगे
गीत-गुहा में स-सुर साधना कर नवगीत सुनाएँगे
हर दिन होता जन्म दिवस है, नींद मरण जो मान रहे
वे सूरज सँग जाग, करें श्रम, अपनी मन्ज़िल पाएँगे
*
सुर जीत रहे तो अ-सुर हार कर खुद बाहर हो जायेंगे
गीत-गुहा में स-सुर साधना कर नवगीत सुनाएँगे
हर दिन होता जन्म दिवस है, नींद मरण जो मान रहे
वे सूरज सँग जाग, करें श्रम, अपनी मन्ज़िल पाएँगे

कोई टिप्पणी नहीं: