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मंगलवार, 22 सितंबर 2020

बालकवि बैरागी

मालवा के गौरव बालकवि बैरागी

हिंदी-सेनानी, श्रेष्ठ साहित्यकार-राजनेता   












चाहे सभी सुमन बिक जाएँ

चाहे ये उपवन बिक जाएँ
चाहे सौ फागुन बिक जाएँ
पर मैं गंध नहीं बेचूँगा, अपनी गंध नहीं बेचूँगा

जिस डाली ने गोद खिलाया जिस कोंपल ने दी अरुणाई
लक्षमन जैसी चौकी देकर जिन काँटों ने जान बचाई
इनको पहिला हक आता है चाहे मुझको नोचें-तोड़ें
चाहे जिस मालिन से मेरी पाँखुरियों के रिश्ते जोड़ें

ओ मुझ पर मंडरानेवालो!
मेरा मोल लगानेवालो!!
जो मेरा संस्कार बन गई वो सौगंध नहीं बेचूँगा
अपनी गंध नहीं बेचूँगा- चाहे सभी सुमन बिक जाएँ

मौसम से क्या लेना मुझको? ये तो आएगा-जाएगा
दाता होगा तो दे देगा, खाता होगा तो खाएगा
कोमल भँवरों के सुर-सरगम, पतझारों का रोना-धोना
मुझ पर क्या अंतर लाएगा पिचकारी का जादू-टोना?
ओ नीलम लगानेवालों!
पल-पल दाम बढ़ानेवालों!!
मैंने जो कर लिया स्वयं से वो अनुबंध नहीं बेचूँगा
अपनी गंध नहीं बेचूँगा, चाहे सभी सुमन बिक जाएँ

मुझको मेरा अंत पता है, पँखुरी-पँखुरी झर जाऊँगा
लेकिन पहिले पवन-परी संग एक-एक के घर जाऊँगा
भूल-चूक की माफी लेगी, सबसे मेरी गंध कुमारी
उस दिन ये मंडी समझेगी, किसको कहते हैं खुद्दारी
बिकने से बेहतर मर जाऊं अपनी माटी में झर जाऊं
मन ने तन पर लगा दिया जो वो प्रतिबंध नहीं बेचूँगा
अपनी गंध नहीं बेचूँगा, चाहे सभी सुमन बिक जाएँ

मुझसे ज्यादा अहं भरी है, ये मेरी सौरभ अलबेली
नहीं छूटती इस पगली से, नीलगगन की खुली हवेली
सूरज जिसका सर सहलाए, उसके सर को नीचा कर दूँ?
ओ प्रबंध के विक्रेताओं!
महाकाव्य के ओ क्रेताओं!!
ये व्यापार तुम्हीं को शुभ हो मुक्तक छंद नहीं बेचूँगा
अपनी गंध नहीं बेचूँगा, चाहे सभी सुमन बिक जाएँ



प्रसिद्ध गीतकार बलकवि बैरागी जी (नंदराम दास बैरागी) का जन्म अत्यंत निर्धन परिवार में १० फरवरी १९३१ को रामपुर गाँव, मनासा तहसील, जिला मंदसौर मध्य प्रदेश में हुआ। उन्होंने १३ मई २०१८ को अंतिम श्वास ली। वे न केवल संवेदनशील इंसान अपितु सह्रदय, उदार और लोकहितग्राही भी थे। उन जैसा विराट व्यक्तित्व, बेलौस हँसी, फक्कड़पन, आवारगी, यायावरी, याराना, निडरपन अब दुर्लभ है। उन्होंने जो जिया वह अत्यंत सार्थक जिया एवं सबको निबाहा। उनका गीत “अपनी गंध नहीं बेचूंगा” और 'मालवी गीत 'पनिहारिन उनकी पहचान बन गए। विद्यालयीन जीवन कष्टों में गुज़ारते हुए उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. किया। 

बचपन की दुखद अवस्था ने बैरागी जी के मन को कभी थकने न देने की प्रेरणा प्रदान की और उनका दारिद्र्य ही उनके गीतों की शक्ति बनाकर उभरा। वे अपने युवाकाल से ही एक गीतकार के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे। उनके व्यक्तित्व में जो गरिमा और सादगी थी वह अब के मंत्री और लोकसभा सदस्यों में दुर्लभ है। वे फिल्मों में गीत लिख चुके हैं। उनकी बातों में मधुरता के साथ साथ विनम्रता का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता रहा। बालकवि वैरागी अपनी रचनाओं में जीवन दर्शन के साथ-साथ समाज की विडंबनात्मक, असंतुलित वस्तुस्थिति का भी चित्रण करते हैं। उनके गीतों में समाज की रूढ़िगत मान्यताओं के प्रति विद्रोह होने के साथ-साथ भविष्य की सुंदर योजना भी दिखाई देती है। वह लगातार अपने गीतों में मानवीय संवेदनाओ को प्रकट करते हुए मानव जीवन को उच्चतर सोपानों पर ले जाने का प्रयास करते रहे। उनके गीत संघर्ष के गीत हैं, अमित जीजीविषा के गीत हैं। 

वह अपने गीतों में आम आदमी की बात करते हैं, जो खेतीहर है, जो मजदूर है, जो दिन रात मेहनत मशक्कत कर रहा है। इसके अतिरिक्त उनके गीतों में सात्विक सौंदर्य के जीवंत शब्द-चित्र हैं, यौवन का उल्लास है । उनके गीत विभिन्न भाव संवेदनाओं से संपन्न हैं, जिसको सुनने और पढ़ने पर हम भिन्न भाव लोक की सैर करने लगते हैं। उनकी ओजगुण सम्पन्न कविता अंतर्मन के सबल भावों को पुष्ट करती है।उनका कार्यक्षेत्र राजनीति, साहित्य एवं कृषिकर्म रहा। मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री, लोकसभा के सदस्य तथा हिन्दी काव्य-मंचों के सरताज होते हुए भी सर्वोपरि और सर्व प्रथम एक सहृदय मानव थे। 'गौरव-गीत, 'दरद दीवानी, 'दो टूक, 'भावी रक्षक देश के', 'प्रतिनिधि रचनाएँ', 'बाल कविताएँ', फिल्मों के लिए लिखे प्रसिद्ध गीत लिखे आदि उनकी कीर्तिध्वज वाहक कृतियाँ हैं।

बालकवि बेरागी जी का गीत “अपनी गंध नहीं बेचूंगा” प्रतिबद्धता के दायरे में लिखा हुआ एक सरल, सहज किंतु गहरी जन संवेदनाओं से युक्त गीत है। बाल कवि बैरागी इस गीत के माध्यम से अपनी अनुभूतियों को आम आदमी तक पहुंचाते हुए स्पष्ट करना चाहते हैं कि इस संसार की सब चीजें बिक सकती हैं परंतु मैं अपने अंतःकरण में उपजी चीजों को नहीं बेज सकता हूँ। सारा संसार समझौते करने पर आमादा है, परंतु मैं समझौतावादी व्यक्ति नहीं हूँ। समझौतावादी और अवसरवादी व्यक्तित्व के व्यवहार से ऊपर उठते हुए वे जनवादी रूप में खड़े हुए दिखाई देते हैं। उनके सामने कई प्रकार की कठिनाइयों की दीवारें खड़ी हुई है, परंतु वे अपने गीत में बार-बार उन दीवारों से टकराते हैं, उन्हें तोड़ने की कोशिश करते हैं; इस बात का स्पष्ट संकेत देते हैं कि जीवन में सब कुछ खो दिया जाए परंतु भीतर का आत्म-सम्मान कभी नहीं खोना चाहिए। वे अपने गीत में बराबर उस स्थिति को याद करते हैं, जिनके कारण उनका जीवन निर्मित होता है और वह इस निर्माण में यह संकल्प लेते हैं कि मुझे चाहे कितनी कठिनाइयों से गुजरना पड़े, लेकिन मैं दूसरों के दबाव में स्वयं बदल नहीं सकता। मैं उन लोगों के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दूंगा जो मुझसे आशा लगाए हुए हैं। इसलिए वह सौगंध उठाते हैं और दर्शाते हैं कि- “चाहे जिस मालिन से मेरी पांखुरियों से रिश्ते जोड़ें, ओ मुझ पर मंडराने वालों, मेरा मोल लगाने वालों, जो मेरा संस्कार बन गई वह सौगंध नहीं बेचूंगा।” वे गीत में दर्शाते हैं कि जीवन परिवर्तित है और बहुत कुछ नया आता है और पुराना छूट जाता है, इस आने-जाने के संघर्ष में व्यक्ति को जिजीविषा से काम लेते हुए आशावादी भावना भरते हुए आगे ही आगे बढ़ते चले जाना चाहिए। लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं, इसकी परवाह किए बिना व्यक्ति को निरंतर प्रगति के पथ पर बढ़ते चले जाना चाहिए, जिस प्रकार से मौसम आते-जाते हैं वह कभी तो अपना अच्छा रूप लाते हैं कभी भयानक रूप लाते हैं, परंतु मनुष्य को इन मौसमों की परवाह न करते हुए जीवन यात्रा को जारी रखना चाहिए। व्यक्ति का जीवन ऊंच-नीच, अच्छाई-बुराई, सुख-दुख से बना हुआ है, इस जीवन में बहुत सारे प्रकार के कष्ट आते हैं, परंतु उन कष्टों को पार करना है। मनुष्य जीवन ही सफलता का प्रमाण है और बाल कवि बैरागी इस गीत में इसी बात का संदेश प्रदान करते हैं। उनका यह गीत संकल्पवादी गीत है, वह अपने संकल्पों के माध्यम से दर्शाना चाहते हैं कि मैं किसी भी प्रकार की स्थितियों का सामना करने को तैयार हूँ, मुझे कभी किसी से कोई शंका या डर नहीं है। परिस्थितियाँ कितनी ही विकट, प्रतिगामी और भीषण हों, हर हाल में व्यक्ति को अपने आप पर भरोसा रखना चाहिए, क्योंकि उसका भरोसा ही उसे बहुत दूर तक ले जाता है। गीत के माध्यम से स्पष्ट करना चाहते हैं कि जीवन में खुद्दारी का होना बहुत आवश्यक है, व्यक्ति मर जाए लेकिन अपनी खुद्दारी नहीं छोड़ना चाहिए।

एक सांसद के रूप में संसदीय राजभाषा समिति के सदस्य रहकर संसदीय समिति के निरीक्षणों में वे नौकरशाहों को राजभाषा नीति का उल्लंघन करने और ठीक से पालन न करने के लिए हड़काते और राजभाषा नीति का पालन करने के लिए दबाव बनाते रहे।बालकवि बैरागी राजभाषा निरीक्षणों में पूरी गंभीरता और बारीकी से निरीक्षण करते हुए अधिकारियों को हिंदी में कार्य करने के लिए विवश करते थे। इससे केंद्रीय कार्यालयों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ाने में काफी मदद मिली। एक सांसद के तौर पर भी वे सदैव एक मजबूत स्तंभ की तरह हिंदी के साथ खड़े रहे।यह उनका हिंदी के प्रति एक महत्वपूर्ण योगदान है।
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