कुल पेज दृश्य

रविवार, 27 सितंबर 2020

कविता: शेर और आदमी

कविता:
शेर और आदमी 
*
शेर के बाड़े में
कूदा आदमी
शेर था खुश
कोई तो है जो
न घूरे दूर से
मुझसे मिलेगा
भाई बनकर.
निकट जा देखा
बँधी घिघ्घी
थी उसकी
हाथ जोड़े
गिड़गिड़ाता:
'छोड़ दो'
दया आयी
फेरकर मुख
चल पड़ा
नरसिंह नहीं
नरमेमने
जा छोड़ता हूँ
तब ही लगा
पत्थर अचानक
हुआ हमला
क्यों सहूँ मैं?
आत्मरक्षा
है सदा
अधिकार मेरा
सोच मारा
एक थप्पड़
उठा गर्दन
तोड़ डाली
दोष केवल
मनुज का है
***

कोई टिप्पणी नहीं: