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शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

मुक्तिका: शतदल खिले..


मुक्तिका:
शतदल खिले..
संजीव 'सलिल'
* *
प्रियतम मिले.
शतदल खिले..

खंडहर हुए
संयम किले..

बिसरे सभी
शिकवे-गिले..

जनतंत्र के
लब क्यों सिले?

भटके हुए
हैं काफिले..

कस्बे कहें
खुद को जिले..

छूने चले
पग मंजिलें..

तन तो कुशल
पर मन छिले..
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२५-९-२०१० 

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