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रविवार, 20 सितंबर 2020

ग़ज़ल : माँ शारदे - आभा सक्सेना

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ग़ज़ल
माँ शारदे
दीप मन में इक जला माँ शारदे!
ज्ञान की गंगा बहा माँ शारदे.!!
मोर वाहन है तुझी पर सज रहा!
हस्त वीणा लेकर आ माँ शारदे!!
भावनाओं की उंचाई है बहुत!
करदे मुझको सब अता माँ शारदे!!
कर मधुर झंकार वीणा की तू अब!
नेह का दीपक जला माँ शारदे!!
जिन्दगी के दिन तो बस दो चार हैं!
हूँ मैं केवल बुलबुला माँ शारदे!!
छत्र छाया माँ तेरी मुझ पर रहे!
प्यार दे अब दो गुना माँ शारदे!!
देश की खातिर कभी तो कुछ लिखूं!
ऐसी मेरी मति बना माँ शारदे!!
सांस ‘आभा’ चल रहीं है आखिरी!
कर सफ़र छोटा मेरा माँ शारदे!!
...आभा सक्सेना दूनवी

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