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रविवार, 9 फ़रवरी 2025

ब्रह्म कमल

ब्रह्म कमल

ब्रह्म कमल (वानस्पतिक नाम : Saussurea obvallata) एस्टेरेसी कुल का पौधा है। सूर्यमुखी, गेंदा, डहलिया, कुसुम एवं भृंगराज इस कुल के अन्य प्रमुख पौधे हैं। भारत में Epiphyllum oxypetalum को भी 'ब्रह्म कमल' कहते हैं। उत्तराखंड में इसे कौल पद्म नाम से जानते हैं। उत्तराखंड में ब्रह्म कमल की 24 प्रजातियां मिलती हैं पूरे विश्व में इसकी 210 प्रजातियां पाई जाती है ब्रह्म कमल के खिलने का समय जुलाई से सितंबर है ब्रह्म कमल, फैनकमल कस्तूराकमल के पुष्प बैगनी रंग के होते हैं उत्तराखंड की फूलों की घाटी में केदारनाथ में पिंडारी ग्लेशियर में यह पुष्प बहुतायत पाया जाता है इस पुष्प का वर्णन वेदों में भी मिलता है महाभारत के वन पर्व में इसे सौगंधिक पुष्प कहा गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस पुस्तकों केदारनाथ स्थित भगवान शिव को अर्पित करने के बाद विशेष प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। ब्रह्म कमल के पौधों की ऊंचाई 70 से 80 सेंटीमीटर होती है जुलाई से सितंबर तक मात्र 3 माह तक फूल खिलते हैं बैगनी रंग का इसका पुष्प टहनियों में ही नहीं बल्कि पीले पत्तियों से निकले कमल पात के पुष्पगुच्छ के रूप मे खिलता है जिस समय यह पुष्प खिलता है उस समय वहां का वातावरण सुगंधित से भर जाता है।

ब्रह्म कमल ऊँचाई वाले क्षेत्रों का एक दुर्लभ पुष्प है जो कि सिर्फ हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण-पश्चिम चीन में पाया जाता है। धार्मिक और प्राचीन मान्यता के अनुसार ब्रह्म कमल को इसका नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा के नाम पर मिला है।  रहस्यपूर्ण सफेद ब्रह्म कमल हिमालय में 11 हजार से 17 हजार फुट की ऊंचाइयों पर पाया जाता है। उत्तराखंड में यह विशेषतौर पर पिण्डारी से लेकर चिफला, सप्तशृंग , रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ तक के आसपास के क्षेत्र में यह स्वाभाविक रूप से पाया जाता है। केदारनाथ और बद्रीनाथ के मंदिरों में ब्रह्म कमल चढ़ाने की परंपरा है। यह अत्यंत सुंदर चमकते सितारे जैसा आकार लिए मादक सुगंध वाला पुष्प है। ब्रह्म कमल को हिमालयी फूलों का सम्राट भी कहा गया है। यह कमल आधी रात के बाद खिलता है इसलिए इसे खिलते देखना स्वप्न समान ही है। एक विश्वास है कि अगर इसे खिलते समय देख कर कोई कामना की जाए तो अतिशीघ्र पूरी हो जाती है। ब्रह्मकमल के पौधे में एक साल में केवल एक बार ही फूल आता है जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है। दुर्लभता के इस गुण के कारण से ब्रह्म कमल को शुभ माना जाता है।

इस पुष्प की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जिसने द्रौपदी को इसे पाने के लिए व्याकुल कर दिया था। राज्य पुष्प ब्रह्म कमल बदरीनाथ, रुद्रनाथ, केदारनाथ, कल्पेश्वर आदि ऊच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। किवदंति है कि जब भगवान विष्णु हिमालय क्षेत्र में आए तो उन्होंने भोलेनाथ को 1000 ब्रह्म कमल चढ़ाए, जिनमें से एक पुष्प कम हो गया था। तब विष्णु भगवान ने पुष्प के रुप में अपनी एक आंख भोलेनाथ को समर्पित कर दी थी। तभी से भोलेनाथ का एक नाम कमलेश्वर और विष्णु भगवान का नाम कमल नयन पड़ा। हिमालय क्षेत्र में इन दिनों जगह-जगह ब्रह्म कमल खिलने शुरु हो गए हैं। ब्रह्म कमल पुष्प के पीछे हुआ था भीम का गर्व चूर - जब द्रोपदी ने भीम से हिमालय क्षेत्र से ब्रह्म कमल लाने की जिद्द की तो भीम बदरीकाश्रम पहुंचे। लेकिन बदरीनाथ से तीन किमी पीछे हनुमान चट्टी में हनुमान जी ने भीम को आगे जाने से रोक दिया। हनुमान ने अपनी पूंछ को रास्ते में फैला दिया था। जिसे उठाने में भीम असमर्थ रहा। यहीं पर हनुमान ने भीम का गर्व चूर किया था। बाद में भीम हनुमान जी से आज्ञा लेकर ही बदरीकाश्रम से ब्रह्म कमल लेकर गए।

ब्रह्म कमल के औषधीय गुण - ससोरिया ओबिलाटा वानस्पतिक नाम वाला ब्रह्म कमल औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है। साथ ही पुरानी खांसी भी काबू हो जाती है। भोटिया जनजाति के लोग गांव में रोग-व्याधि न हो, इसके लिए इस पुष्प को घर के दरवाजों पर लटका देते हैं। इस फूल की विशेषता यह है कि जब यह खिलता है तो इसमें ब्रह्म देव तथा त्रिशूल की आकृति बन कर उभर आती है। गौर हो कि इस फूल का वानस्पतिक नाम एपीथायलम ओक्सीपेटालम है तथा इस फूल का प्रयोग जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता है। ब्रह्म कमल न तो खरीदा जाना चाहिए और न ही इसे बेचा जाता है। हिमालय में खिलने वाला यह पुष्प देवताओं के आशीर्वाद सरीखा है । यह साल में एक ही बार जुलाई-सितंबर के बीच खिलता है और एक ही रात रहता है। इसका खिलना देर रात आरंभ होता है तथा दस से ग्यारह बजे तक यह पूरा खिल जाता है। मध्य रात्रि से इसका बंद होना शुरू हो जाता है और सुबह तक यह मुरझा चुका होता है। इसकी सुगंध प्रिय होती है और इसकी पंखुडियों से टपका जल अमृत समान होता है। भाग्यशाली व्यक्ति ही इसे खिलते हुए देखते हैं और यह उन्हें सुख-समृद्धि से भर देता है। ब्रह्म कमल का खिलना एक अनोखी घटना है।

यह अकेला ऐेसा कमल है जो रात में खिलता है और सुबह होते ही मुरझा जाता है। सुगंध आकार और रंग में यह अद्भुत है। भाग्योदय की सूचना देने वाला यह पुष्प पवित्रता और शुभता का प्रतीक माना जाता है। जिस तरह बर्फ से ढका हिमालयी क्षेत्र देवताओं का निवास माना जाता है उसी तरह बर्फीले क्षेत्र में खिलने वाले इस फूल को भी देवपुष्प मान लिया गया है। नंदा अष्टमी के दिन देवता पर चढ़े ये फूल प्रसाद रूप में बांटे जाते हैं। मानसून के मौसम में जब यह ऊंचाइयों पर खिलता है। नीय लोग चरागाहों में जाकर इन्हें बोरों में भर कर लाते हैं और मंदिरों में देते हैं। मंदिर में यही फूल चढ़ाने के बाद प्रसाद रूप में वितरित किए जाते हैं। गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ के क्षेत्र में मौसम के दौरान पूरे वैभव और गरिमा के साथ इन्हें खिले हुए देखा जा सकता है। वनस्पति विज्ञानियों ने ब्रह्मकमल की 31 प्रजातियां दर्ज की हैं। कहा जाता है कि आम तौर पर फूल सूर्यास्त के बाद नहीं खिलते, पर ब्रह्म कमल एक ऐसा फूल है जिसे खिलने के लिए सूर्य के अस्त होने का इंतजार करना पड़ता है। धार्मिक मान्यता - ब्रह्म कमल अर्थात ब्रह्मा का कमल, यह फूल माँ नन्दा का प्रिय पुष्प है, इसलिए इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोडने के भी सख्त नियम होते हैं।

जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। इससे बुरी आत्माओं को भगाया जाता है। ब्रह्मकमल को अलग-अगल जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तरखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितम्बर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है।

फरवरी ८, भोजपुरी, सॉनेट, दोहा, जाया, विद्या, दस मात्रिक, श्रृंगार, तुम, महाकुंभ, बुंदेली, चिरैया, क्रिकेट, सुग्गा

सलिल सृजन फरवरी ८ 
० 
अभिनव प्रयोग
हिंग्लिश ग़ज़ल
मन तब बोल
जब ले तोल।
Move ahead
With some Goal.
नफरत का विष
कभी न घोल।
Do not waste
Limited Coal.
नीयत में रख
कभी न झोल।
Act around
Principle pole.
ओढ़ न गर्दभ
सिंह का खोल।
Play sincerely
Every role.
बेच न ईमां
है अनमोल।
Travel safely
First pay tole.
बिसरा चिंता
खुश हो डोल।
८.२.२०२४

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प्रश्न- कैसे मालूम हो कि वेन्टीलेटर पर रह रहा मरीज जीवित है या नहीं?उत्तर- शरीर की ३ मुख्य प्रक्रियाएँ फेफड़ों द्वारा सांस लेना, हृदय द्वारा शरीर के सभी अंगों तक रक्त पहुँचाना और मस्तिष्क का काम करना हैं। इन तीनों मैं से एक भी रुक जाए तो एक तरह की मृत्यु ही है। वेंटिलेटर पर तभी रखा जाता है जब मरीज का हृदय और दिमाग का कर रहा हो। वेंटिलेटर से कार्डियक मॉनिटर जुड़ा रहता है। वेंटिलेटर फेफड़ों मैं हवा या ऑक्सिजन भरने का काम करता है। किसी रोगी की मृत्यु हो गई हो और उसका दिल भी रुक गया हो तो फेफड़ों मैं हवा या ऑक्सीजन भरना निरर्थक होगा क्योंकि खून तो जम चुका होगा, दिमाग भी ऑक्सिजन न मिलने से मृत हो चुका होगा। ऐसे मैं आप कितनी ऑक्सिजन देते रहो, शरीर सड़ने लगेगा। जब ब्रेन डेड हो और दिल चल रहा हो तब वेंटिलेटर शरीर के आंतरिक अंगों को प्रत्यारोपण के लिए जीवित रखने हेतु इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर मरीज वेंटिलेटर पर है तो मॉनिटर में दिल की धड़कनें और खून का ऑक्सिजन स्तर देखें। अगर यह दिख रहा है तो इसका मतलब दिल चल रहा है, अगर आँखों की पुतलियां फैली नहीं है तो इसका मतलब उसका ब्रेन काम कर रहा है।

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अमर शहीद सेठ रामदास गुड़वाले
सेठ रामदास जी गुड़वाले - 1857 के महान क्रांतिकारी, दानवीर जिन्हें फांसी पर चढ़ाने से पहले अंग्रेजों ने उनपर शिकारी कुत्ते छोड़े जिन्होंने जीवित ही उनके शरीर को नोच खाया
सेठ रामदास जी गुड़वाला (दिल्ली के अरबपति सेठ और बैंकर) अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के गहरे दोस्त थे। इनका जन्म दिल्ली में एक अग्रवाल परिवार में हुआ था। इनके परिवार ने दिल्ली में पहली कपड़े की मिल की स्थापना की थी। उनकी अमीरी की एक कहावत थी “रामदास जी गुड़वाले के पास इतना सोना, चाँदी जवाहरात है कि उनकी दीवारों से गंगा जी का पानी भी रोक सकते हैं”।
सन १८५७ में मेरठ से आरंभ क्रांति की चिंगारी दिल्ली पहुँची तो मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को क्रांति का नायक घोषित कर दिया गया। दिल्ली से अंग्रेजों की हार के बाद अनेक रियासतों की भारतीय सेनाओं ने दिल्ली में डेरा डाल दिया। उनके भोजन और वेतन की समस्या पैदा हो गई। बादशाह का खजाना खाली था। फिर एक दिन बादशाह ने अपनी रानियों के गहने, मंत्रियों के सामने रख दिए। रामजीदास गुड़वाले बादशाह के गहरे मित्र थे |
रामदास जी को बादशाह की यह अवस्था देखी नहीं गई। उन्होंने अपनी करोड़ों की सम्पत्ति बादशाह के हवाले कर दी कि "मातृभूमि की रक्षा होगी तो धन फिर कमा लिया जाएगा। रामजीदास ने केवल धन ही नहीं दिया, सैनिकों को सत्तू, आटा, अनाज, और बैलों, ऊँटों व घोड़ों के लिए चारे की व्यवस्था भी की। उन्होंने अभी तक केवल व्यापार ही किया था, सेना व खुफिया विभाग के संघठन का कार्य भी प्रारंभ कर दिया उनकी संगठन शक्ति को देखकर अंग्रेज़ सेनापति भी हैरान हो गए। सारे उत्तर भारत में सेठ जी ने जासूसों का जाल बिछा दिया, अनेक सैनिक छावनियों से गुप्त संपर्क किया। उन्होंने भीतर ही भीतर एक शक्तिशाली सेना व गुप्तचर संघठन का निर्माण किया। देश के कोने कोने में गुप्तचर भेजे व छोटे से छोटे मनसबदार और राजाओं से प्रार्थना की। इस संकट काल में बहादुर शाह जफर की मदद कर, देश को स्वतंत्र करवाने का बेमिसाल प्रयास किया।
रामदास जी की इस प्रकार की क्रांतिकारी गतिविधयिओं से अंग्रेज़ शासन व अधिकारी बहुत परेशान होने लगे। कुछ कारणों से दिल्ली पर अंग्रेजों का पुनः कब्जा होने लगा। दुखी होकर, एक दिन सेठ जी ने, चाँदनी चौक की दुकानों के आगे जगह-जगह ज़हर मिश्रित, शराब की बोतलों की पेटियाँ रखवा दीं, अंग्रेज सेना उनसे प्यास बुझाती और वही लेट जाती। अंग्रेजों को समझ आ गया कि भारत पर शासन करना है तो रामदास जी का अंत बहुत ज़रूरी है। सेठ रामदास जी गुड़वाले को धोखे से पकड़ लिया गया और जिस तरह से मारा गया, वो तो क्रूरता की जीती जागती मिसाल है।
सेठ रामदास जी को पहले रस्सियों से खम्बे के साथ बाँधा गया, फिर उन पर शिकारी कुत्ते छोड़कर कटवाया गया। उसके बाद उन्हें अधमरी अवस्था में दिल्ली के चांदनीचाँदनी चौक की कोतवाली के सामने फांसी पर लटका दिया गया। सुप्रसिद्ध इतिहासकार ताराचंद ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेंट' में लिखा है - "सेठ रामदास गुड़वाला उत्तर भारत के सबसे धनी सेठ थे।अंग्रेजों के विचार से उनके पास असंख्य मोती, हीरे व जवाहरात व अकूत संपत्ति थी। वह मुग़ल बादशाहों से भी अधिक धनी थे। यूरोप के बाजारों में भी उनकी अमीरी की चर्चा होती थी"।
भारत के इतिहास में उनका जो नाम है, वो उनकी अतुलनीय संपत्ति की वजह से नहीं बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व न्योछावर करने की वजह से है। क्या हम सेठ रामदास जी को याद कर श्रद्धा से सर नवाते हैं, यदि नहीं तो?
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सॉनेट
परापरा
*
सुमति-कुमति हर हृदय बसी हैं।
सुमति ज्ञान की राह दिखाती।
कुमति सत्य-पथ से भटकाती।।
अपरा-परा न दूर रही हैं।।
परा मूल है, छाया अपरा।
पुरुष-प्रकृति सम हैं यह मानो।
अपरा नश्वर है सच मानो।।
अविनाशी अक्षरा है परा।।
उपज परा से मिले परा में।
जीव न जाने जा अपरा में।
मिले परात्पर आप परा में।।
अपरा राह साध्य यह जानो।
परा लक्ष्य अक्षर पहचानो।
भूलो भेद, ऐक्य अनुमानो।।
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सॉनेट
ज्ञान
*
सुमति-कुमति हर हृदय बसी हैं।
सुमति ज्ञान की राह दिखाती।
कुमति सत्य-पथ से भटकाती।।
अपरा-परा न दूर रही हैं।।
परा मूल है, छाया अपरा।
पुरुष-प्रकृति सम हैं यह मानो।
अपरा नश्वर है सच मानो।।
अविनाशी अक्षरा है परा।।
उपज परा से मिले परा में।
जीव न जाने जा अपरा में।
मिले परात्पर आप परा में।।
अपरा राह साध्य यह जानो।
परा लक्ष्य अक्षर पहचानो।
भूलो भेद, ऐक्य अनुमानो।।
८-२-२०२२
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कार्यशाला
अंग्रेजी- हिंदी में समान उच्चारण, भिन्नार्थ वाले कुछ शब्द
१. गम / Gum = दुःख / adhesive, paste , fleshy tissue enveloping neck of teeth ( मसूड़ा)
२. दंग/Dung = हैरान/ Animal waste (गोबर)
३. सन /Son , Sun = पौधा जिसके रेशे से बोरे आदि बनते हैं/ Male offspring , Sol (सूरज )
४. हट /Hut = हटाना के अर्थ में / small house (झोपड़ी)
५. शोर/Shore = हल्ला / Beach (किनारा )
५. पट/ Putt = पेट के बल लेटना, तुरंत /Type of shot in golf
६. पेट/Pet= अंग / tamed animal for company (पालतू जानवर)
७. मिल / mill = भेंट होना / machine for crushing solid grains (आटा मिल )
८. हिल / hill हिलना के अर्थ में / elevation smaller than mountain (पहाड़ी )
९. मेल/Mail मैत्री / Postal mail or E mail
१०. रट/Rut : रटना के अर्थ में / furrow or track made on the ground especially by passing of vehicle (रेलवे को शुरू में रट वे भी कहा जाता था )
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स्वास्थ्य चर्चा
नमकीन पानी से स्नान के लाभ
*
बाथ सॉल्ट यानी एप्सम या सी साल्ट में २१ अलग-अलग तरह के मिनरल्स होते हैं जिनमें मैग्नीशियम, पोटैशियम, सोडियम, सल्फर, जिंक, कैल्शियम, क्लोराइड, आयोडाइड और ब्रोमाइड शामिल हैं जो शरीर को पोषण प्रदान करते हैं।
इसलिए थोड़ा सा नमक पानी में मिलाकर उसमें नहाने से शरीर को कई फायदे हो सकते हैं।खारे पानी से नहाने के अपने स्वास्थ्य लाभ हैं जो सामान्य पानी आपको प्रदान नहीं करते हैं।
नमक के पानी से स्नान करने के लाभ-।
उपचार और आराम:
हिमालयन बाथ सॉल्ट का उपयोग परिसंचरण को प्रोत्साहित करने, त्वचा को हाइड्रेट करने, नमी बनाए रखने को बढ़ाने और सेलुलर पुनर्जनन को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। इसके अलावा, वे त्वचा को डिटॉक्सीफाई और हीलिंग करने में भी सहायक होते हैं। नमक-पानी से नहाने से मांसपेशियों और जोड़ों की सूजन कम होती है, मांसपेशियों को आराम मिलता है और दर्द और खराश से राहत मिलती है।
त्वचा के लिए अच्छा:
नमक-पानी के स्नान अपने प्राकृतिक रूप में कई खनिज और पोषक तत्व होते हैं जो त्वचा को फिर से जीवंत करने में मदद करते हैं।
मैग्नीशियम, कैल्शियम, ब्रोमाइड, सोडियम और पोटेशियम जैसे खनिज त्वचा के छिद्रों में अवशोषित हो जाते हैं, त्वचा की सतह को साफ और शुद्ध करते हैं, जिससे त्वचा स्वस्थ और चमकती रहती है।
डिटॉक्सिफिकेशन:
बाथ सॉल्ट त्वचा को डिटॉक्सीफाई करने में भी मदद करते हैं।गर्म पानी त्वचा के छिद्रों को खोलता है जिससे नमक के खनिज त्वचा में गहराई से अवशोषित हो जाते हैं, जिससे पूरी सफाई सुनिश्चित हो जाती है।
ये लवण दिन भर त्वचा द्वारा अवशोषित हानिकारक विषाक्त पदार्थों और बैक्टीरिया को बाहर निकालने में मदद करते हैं, जिससे आपकी त्वचा स्वस्थ और साफ दिखती है।
युवा चमक:
जवान दिखना और महसूस करना कौन नहीं चाहता। चेहरे पर झुर्रियों और महीन रेखाओं की उपस्थिति को कम करने के लिए नियमित रूप से नहाने के नमक का प्रयोग करें। ये आपकी त्वचा को कोमल और कोमल बनाते हैं। स्नान नमक त्वचा को मोटा करके और त्वचा की नमी को संतुलित करके इसे प्राप्त करते हैं। वे त्वचा को वह प्राकृतिक चमक भी देते हैं जो नियमित जीवन में खो जाती है।
विभिन्न समस्याओं का उपचार:
स्नान नमक न केवल आपकी त्वचा के लिए फायदेमंद होते हैं बल्कि ऑस्टियोआर्थराइटिस और टेंडिनाइटिस जैसी कुछ गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों के इलाज में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, नहाने के नमक खुजली और अनिद्रा को कम करने में भी प्रभावी होते हैं।
८-२-२०२२
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दोहा सलिला
संग सलिल के तैरतीं, शशि किरणें चिद्रूप
जैसे ही होतीं बिदा, बाँह जकड़ती धूप
बाँह जकड़ती धूप, छाँह भी रहे न पीछे
अवसर पाकर स्नेह, उड़ेले भुज भर भींचे
रवि हेरे हो तप्त, ईर्ष्या लपट घेरतीं
शशि किरणें चिद्रूप, संग सलिल के तैरतीं
८-२-२०२०
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मुक्तिका
मिल गया
*
घर में आग लगानेवाला, आज मिल गया है बिन खोजे.
खुद को खुदी मिटानेवाला, हाय! मिल गया है बिन खोजे.
*
जयचंदों की गही विरासत, क्षत्रिय शकुनी दुर्योधन भी
बच्चों को धमकानेवाला, हाथ मिल गया है बिन खोजे.
*
'गोली' बना नारियाँ लूटीं, किसने यह भी तनिक बताओ?
निज मुँह कालिख मलनेवाला, वीर मिल गया है बिन खोजे.
*
सूर्य किरण से दूर रखा था, किसने शत-शत ललनाओं को?
पूछ रहे हैं किले पुराने, वक्त मिल गया है बिन खोजे.
*
मार मरों को वीर बन रहे, किंतु सत्य को पचा न पाते
अपने मुँह जो बनता मिट्ठू, मियाँ मिल गया है बिन खोजे.
*
सत्ता बाँट रही जन-जन को, जातिवाद का प्रेत पालकर
छद्म श्रेष्ठता प्रगट मूढ़ता, आज मिल गया है बिन खोजे.
*
अब तक दिखता जहाँ ढोल था, वहीं पोल सब देख हँस रहे
कायर से भी ज्यादा कायर, वीर मिल गया है बिन खोजे.
२५.१.२०१८
***
गीतः
सुग्गा बोलो
जय सिया राम...
*
सुग्गा बोलो
जय सिया राम...
*
काने कौए कुर्सी को
पकड़ सयाने बन बैठे
भूल गये रुकना-झुकना
देख आईना हँस एँठे
खिसकी पाँव तले धरती
नाम हुआ बेहद बदनाम...
*
मोहन ने फिर व्यूह रचा
किया पार्थ ने शर-सन्धान
कौरव हुए धराशायी
जनगण सिद्‍ध हुआ मतिमान
खुश मत हो, सच याद रखो
जन-हित बिन होगे गुमनाम...
*
हर चूल्हे में आग जले
गौ-भिक्षुक रोटी पाये
सांझ-सकारे गली-गली
दाता की जय-जय गाये
मौका पाये काबलियत
मेहनत पाये अपना दाम...
*
१३-७-२०१४
दोहा
बरगद पीपल कहें आ, आँख मिचौली खेल.
इमली नीम न मानतीं, हो न सका है मेल.
८-२-२०१८
एक मुक्तिका
छंद- यौगिक जातीय विद्या छंद
मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
बहर- फाइलातुन x ४
*
फूलने दो बाग़ में गुंचे मिलेगी खूब खुश्बू
गीत गायेंगे ख़ुशी से झूम भौंरे देख जादू
कौन बोलेगा न झूमो? कौन चाहेगा न गाओ?
राह में राही मिलेंगे, थाम लेना हाथ ही तू
उम्र का ही है तकाजा लोग मानें या न मानें
जोश में होता कहाँ है होश?, होता है न काबू
आप नेता हैं, नहीं तो आपका कोई न चर्चा
आपकी पीड़ा न पीड़ा, फेंक एसिड, मार चाकू
सांसदों को खूब भत्ते और भूखों को न दाना
वाह रे आजाद लोगो! है न आज़ादी गुड़ाखू
***
क्रिकेट के दोहे
*
चहल-पहल कर चहल ने, खड़ी करी है खाट
कम गेंदें ज्यादा विकेट, मारा धोबीपाट
*
धोनी ने धो ही दिया, सब अंग्रजी ठाठ
बल्ले-बल्ले कर रहा, बल्ला पढ़ लो पाठ
*
रैना चैना छीनकर, नैना रहा तरेर
ढेर हो गए सर झुका, सब अंग्रेजी शेर
*
है विराट के नाम की, है विराट ही धाक
कुक ने स्तीफा दिया, हाय कट गयी नाक
*
अंग्रेजों से छिन गया, ट्वंटी का भी ताज
गोरी बाला वर जयी, हुए विहँस युवराज
*
नेहरा गहरा वार कर, पहरा देता खूब
विकट नहीं या रन नहीं, गए विपक्षी डूब
***
दस मात्रिक छंद
९. पदांत यगण
मनुआ! जग गा रे!
प्राची रवि लाई
ऊषा मुसकाई
रहा टेर कागा
पहुना सुधि आई
विधना झट ला रे!
कुण्डी खटकाई
गोरी झट आई
अँखियाँ टकराईं
झुक-उठ शरमाईं
मुड़कर मात जारे!
हुई मन मिलाई
सुध-बुध बिसराई
गयी खनक चूड़ी
ननदी झट आई
चट-पट छिप जा रे!
*
१०. पदांत मगण
मन क्यों आवारा?
जैसे बंजारा
हर दम चाहे हो
केवल पौबारा
*
११. पदांत तगण
ख्वाब में हैं आप
साथ में हैं आप
हम जहाँ मौजूद
न हों पर हैं आप
*
१२. पदांत रगण
बात जब कीजिए
साथ चल दीजिए
सच नहीं भी रुचे
तो नहीं खीजिए
कर मिलें, ना मिलें
मन मिला लीजिए
आँख से भी कभी
कुछ लगा पीजिए
नेह के नीर में
सँग नहा भीजिए
*
१३. पदांत जगण ६+१२१
किसे कहें अनाथ?
सभी मनुज सनाथ
सबका ईश एक
झुकाएँ नित माथ
*
१४. पदांत भगण
लाया है सावन
त्यौहार सुपावन
मिल इसे मनायें
राखी मन भावन
.
सीमा पर दुर्जन
दें मार सैन्य जन
अरि के घर मातम
बोयेगा सावन
*
१५, पदांत नगण
जब से गए सजन
बेसुध सा तन-मन
दस दिश चहल-पहल
सूना मन-मधुवन
किया सतत सुमिरन
हर दिन, हर पल-छिन
पौधारोपण कर
जी पायें फिर वन
वह दिखता रहबर
हो न कहीं रहजन
*
१६. पदांत सगण
हमको है कहना
दूर नहीं रहना
चुप, कब तक पहनें
सुधियों का गहना?
मजबूरी अपनी
विरह व्यथा तहना
सलिला कब कहती
मुझे नहीं बहना?
मंगल मन रही
क्यों केवल बहना?
*
१७. २ यगण
निहारो-निहारो
सितारों निहारो
सदा भारती की
करो आरती ही
हसीं चाँदनी को
धरा पर उतारो
सँवारो-सँवारो
धरा को सँवारो
१८. २ तगण
सीता वरें राम
सीता तजें राम
छोड़ें नहीं राग
सीता भजें राम
१९. २ रगण
आपसे काम ना
हो, यही कामना
गर्व का वास ना
हो, नहीं वासना
स्वार्थ को साध ना
छंद को साधना
माप की नाप ना
नाप ही नापना
उच्च हो भाव ना
शुद्ध हो भावना
*
२०. यगण तगण
कहीं है नीलाभ
कहीं है पीताभ
कपासी भी मेघ
कहीं क्यों रक्ताभ?
कड़े हो या नर्म
रहो जैसे डाभ
सहेगा जो हानि
कमाएगा लाभ
२१. तगण यगण
वादा न निभाया
कर्जा न चुकाया
जोड़ा धन थोड़ा
मोहे मत माया
जो पुन्य कमाया
आ अंत भुनाया
ठानो न करोगे
जो काम न भाया
२१. यगण रगण
किये जाओ मजा
चली आती क़ज़ा
किया तो भोग भी
यही दैवी रजा
कहो तो स्वार्थ को
कभी क्या है तजा?
रही है सत्य की
सदा ऊँची ध्वजा
न बोले प्रेयसी
'मुझे क्या जा-न जा'
*
२२. रगण यगण
आपका सहारा
दे रहा इशारा
हैं यही मुरादें
साथ हो हमारा
दूर जा पुकारा
पास आ निहारा
याद है न वादा?
प्यार हो न कारा?
आँख में बसा है
रूप ये तुम्हारा
*
२३. तगण रगण २२१ २१२
आओ! कहीं चलें
बोलो कहाँ मिलें?
माँगें यही दुआ
कोई नहीं छले
*
२४. रगण तगण
आज का पैगाम
जीत पाए लाम
आपका सौभाग्य
आप आये काम
सोचते हैं लोग
है विधाता वाम
चाहिए क्यों पुण्य
कर्म है निष्काम
खूब पाया नाम
बात है ये ख़ास
प्रेरणा लें आम
*
दोहा
दिनकर प्रिय सुधि रश्मि से, करे प्रणय शुरुआत।
विरह तिमिर का अंत कर, जगा रहा जज्बात।।
*
रोज, प्रप्रोज पठा रहा, नाती कैसा काल।
पोता हो लव बर्ड तो, आ जाए भूचाल।।
***
मैथिली हाइकु
*
स्नेह करब
हमर मंत्र अछि
गरा लागब.
८-२-२०१७
***
बुंदेली गीत -
भुन्सारे चिरैया
*
नई आई,
बब्बा! नई आई
भुन्सारे चरैया नई आई
*
पीपर पै बैठत थी, काट दओ कैंने?
काट दओ कैंने? रे काट दओ कैंने?
डारी नें पाई तो भरमाई
भुन्सारे चरैया नई आई
नई आई,
सैयां! नई आई
*
टला में पीयत ती, घूँट-घूँट पानी
घूँट-घूँट पानी रे घूँट-घूँट पानी
टला खों पूरो तो रिरयाई
भुन्सारे चरैया नई आई
नई आई,
गुइयाँ! नई आई
*
फटकन सें टूंगत ती बेर-बेर दाना
बेर-बेर दाना रे बेर-बेर दाना
सूपा खों फेंका तो पछताई
भुन्सारे चरैया नई आई
नई आई,
लल्ला! नई आई
*
८-२-२०१६
***
नवगीत-
महाकुम्भ
*
मन प्राणों के
सेतुबन्ध का
महाकुंभ है।
*
आशाओं की
वल्लरियों पर
सुमन खिले हैं।
बिन श्रम, सीकर
बिंदु, वदन पर
आप सजे हैं।
पलक उठाने में
भारी श्रम
किया न जाए-
रूपगर्विता
सम्मुख अवनत
प्रणय-दंभ है।
मन प्राणों के
सेतुबन्ध का
महाकुंभ है।
*
रति से रति कर
बौराई हैं
केश लताएँ।
अलक-पलक पर
अंकित मादक
मिलन घटाएँ।
आती-जाती
श्वास और प्रश्वास
कहें चुप-
अनहोनी होनी
होते लख
जग अचंभ है।
मन प्राणों के
सेतुबन्ध का
महाकुंभ है।
*
एच ए ७ अमरकंटक एक्सप्रेस
३. ४२, ६-२-२०१६
***
श्रृंगार गीत -
ओ मेरी तुम
*
ओ मृगनयनी!
ओ पिकबयनी!
ओ मेरी तुम!!
*
भोर भयी
बाँके सूरज ने
अँखियाँ खोलीं।
बैठ मुँडेरे
चहक-चहक
गौरैया बोली।
बाहुबंध में
बँधी हुई श्लथ-
अलस देह पर-
शत-शत इंद्र-
धनुष अंकित
दमिनियाँ डोलीं।
सदा सुहागन
दृष्टि कह रही
कुछ अनकहनी।
ओ मृगनयनी!
ओ पिकबयनी!
ओ मेरी तुम!!
*
चिबुक निशानी
लिये, नेह की
इठलाया है।
बिखरी लट,
फैला काजल भी
इतराया है।
टूटा बाजूबंद
प्राण-पल
जोड़ गया रे!
कँगना खनका
प्रणय राग गा
मुस्काया है।
बुझी पिपासा
तनिक, देह भई
कुसुमित टहनी
ओ मृगनयनी!
ओ पिकबयनी!
ओ मेरी तुम!!
*
कुण्डी बैरन
ननदी सी खटके
कुछ मत कह।
पवैया सासू सी
बहके बहके
चुप रह।
दूध गिराकर
भगा बिलौटा
नटखट देवरा
सूरज ससुरा
दे आसीसें
दामन में गह
पटक न दे
बचना जेठानी
भैंस मरखनी
ओ मृगनयनी!
ओ पिकबयनी!
ओ मेरी तुम!!
*
५-२-२०१६
HA ७ अमरकंटक एक्सप्रेस
२१. १२
***
बुंदेली नवगीत -
*
हम का कर रए?
जे मत पूछो,
तुम का कर रए
जे बतलाओ?
*
हमरो स्याह सुफेद सरीखो
तुमरो धौला कारो दीखो
पंडज्जी ने नोंचो-खाओ
हेर सनिस्चर भी सरमाओ
घना बाज रओ थोथा दाना
ठोस पका
हिल-मिल खा जाओ
हम का कर रए?
जे मत पूछो,
तुम का कर रए
जे बतलाओ?
*
हमरो पाप पुन्न सें बेहतर
तुमरो पुन्न पाप सें बदतर
होते दिख रओ जा जादातर
ऊपर जा रो जो बो कमतर
रोन न दे मारे भी जबरा
खूं कहें आँसू
चुप पी जाओ
हम का कर रए?
जे मत पूछो,
तुम का कर रए
जे बतलाओ?
८-२-२०१६
***
नवगीत:
.
तह करके
रख दिये ख्वाब सब
धूप दिखाकर
मर्तबान में
.
कोशिश-फाँकें
बाधा-राई-नोन
समय ने रखा अथाना
धूप सफलता
मिल न सकी तो
कैसा गलना, किसे गलाना?
कल ही
कल को कल गिरवी रख
मोल पा रहा वर्तमान में
.
सत्ता सूप
उठाये घूमे
कह जनगण से 'करो सफाई'
पंजा-झाड़ू
संग नहीं तो
किसने बाती कहो मिलायी?
सबने चुना
हो गया दल का
पान गया ज्यों पीकदान में.
.
८-२-२०१५
***
छंद सलिला:
जाया छंद
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, एकावली, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, बाला, मधुभार, माया, माला, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
*
दो पदी, चार चरणीय, ४ वर्ण, ६९ मात्राओं के मात्रिक जाया छंद में प्रथम- द्वितीय-तृतीय चरण उपेन्द्र वज्रा छंद के तथा चतुर्थ चरण इंद्र वज्रा छंद के होते हैं.
उदाहरण:
१. अनाम नाता न निभा सकोगी, प्रणाम माता न डिगा सकोगी
दिया सहारा जिसने मुझे था, बोलो उसे भी अपना सकोगी?
२. कभी न कोई उपकार भूले, कहीं न कोई प्रतिकार यूँ ले
नदी तरंगोंवत झूल झूले, तौलो न बोलो कडुआ कभी भी
३. हमें लुभातीं छवियाँ तुम्हारी, प्रिये! न जाओ नज़दीक आओ
यही तुम्हारी मनकामना है, जानूं! हमीं से सच ना छिपाओ
८-२-२०१४
***
भोजपुरी दोहा सलिला :
*
रउआ आपन देस में, हँसल छाँव सँग धूप।
किस्सा आपन देस का, इत खाई उत कूप।।
*
रखि दिहली झकझोर के, नेता भाषण बाँच।
चमचे बदे बधाई बा, 'सलिल' न देखल साँच।।
*
चिउड़ा-लिट्टी ना रुचे, बिरयानी की चाह।
चली बहुरिया मेम बन, घर फूंकन की राह।।
*
रोटी की खातिर 'सलिल', जिनगी भयल रखैल।
कुर्सी के खातिर भइल, हाय! सियासत गैल।।
*
आजु-काल्हि के रीत बा, कर औसर से प्यार।
कौनौ आपन देस में, नहीं किसी का यार।।
*
खाली चउका देखि के, दिहले मूषक भागि।
चौंकि परा चूल्हा निरख, आपन मुँह में आगि।।
*
रउआ रख संसार में, सबकी खातिर प्रेम।
हर पियास हर किसी की, हर से चाहल छेम।।
८-२-२०१३
***
दोहा
उषा दुपहरी सांझ से, पाल रहा जो प्रीत.
छलिया सूरज को कहे, जग क्यों 'सलिल' पुनीत?.
मुक्तक
साहित्य की आराधना आनंद ही आनंद है.
काव्य-रस की साधना आनंद ही आनंद है.
'सलिल' सा बहते रहो, सच की शिला को फोड़कर.
रहे सुन्दर भावना आनंद ही आनंद है.
८-२-२०१०
***

फरवरी ९, हास्य, वैलेंटाइन, लालू, शे'र, दस मात्रिक छंद, सॉनेट, मुक्तक, नवगीत,कुंभ

सलिल सृजन फरवरी ९
कुंभ
तुम नहीं हो चाँद, तुम तो सूर्य हो।
श्वास है रणक्षेत्र, आशा-तूर्य हो।
मत चमकना दूसरों से ले उजास।
आत्म-दीपक ज्योति जग को दे प्रकाश।
ठोकरों से मिल गले पग हँस पड़े।
देख कोशिश शर्म से बाधा गड़े।
वास्तव में 'श्री' उसी के पास है
जिसे विष-अणु ग्राह्य, लब पर हास है।
नहीं तनुजा तन निबल, मन सबल है
कीच में भी मुस्कुराता कमल है।
धार दो हैं श्वास और प्रयास की
तीसरी दिखती नहीं जो आस की।
बहें तीनों अनवरत जहँ कुंभ हैं।
हैं हताशा-निराशा दो राक्षस
मारिए वे ही तो शुंभ-निशुंभ हैं।
याद कर रोना, न मानें प्यार है।
प्यार खोकर भी न खोना, प्यार है।
जो निरंतर बहे नर्मद-धार है।
जो न टूटे-ढहे वह पतवार है।
याद जो आए वही मझधार है।
बने संबल नाव जो वह प्यार है।
जय-पराजय दो तटों के मध्य में,
करे कोशिश स्नान धारा साध्य में।
देह तज संदेह, निष्ठा आत्म है।
धरा-नभ ही प्रकृति अरु परमात्म है।
कुंभ सारी सृष्टि है सच जान लो।
हो न पौरुष म्लान मन में ठान लो।
समुद मंथन हो रहा पल-पल सदा।
अमिय-विष दोनों मिलें जब जो बदा।
विकल्प अरु संकल्प छाया-धूप सम।
मिलें-बिछुड़ें पथिक मत कर आँख नम।
कहे कुंभज कुंभ हो जब लबालब।
मत भ्रमित हो, उसे देना उलट तब।
रहे रीता जो वही भरता रहे।
जो भरा उसको कदापि न कुछ मिले।
राय-गढ़ में स्नेह का हो द्वार जब
कल्पतरु विश्वास का दे छाँव जब
वृत्ति सरला करे संगम स्नान तब
सफल हो हर साधना-अरमान तब।
कुंभ पल-पल ज़िंदगी में हो रहा।
त्रास अमृत-स्नान का सुख खो रहा।
आस सह विश्वास को ले साथ जो
वही मन में नवाना नित बो रहा।
९.२.२०२५
०००
सॉनेट
क्यों?
*
अघटित क्यों नित घटता हे प्रभु?
कैसे हो तुम पर विश्वास?
सज्जन क्यों पाते हैं त्रास?
अनाचार क्यों बढ़ता हे विभु?
कालजयी क्यों असत्-तिमिर है?
क्यों क्षणभंगुर सत्य प्रकाश?
क्यों बाँधे मोहों के पाश?
क्यों स्वार्थों हित श्वास-समर है?
क्यों माया की छाया भाती?
क्यों काया सज सजा लुभाती?
क्यों भाती है ठकुरसुहाती?
क्यों करते नित मन की बातें?
क्यों न सुन रहे जन की बातें?
क्यों पाते-दे मातें-घातें?
९-२-२०२२
***
मुक्तक
हमें ही है आना
हमें ही है छाना
बताता है नेता
सताता है नेता
मुक्त मन से लिखें मुक्तक
सुप्त को दें जगा मुक्तक
तप्त को शीतल करेंगे
लुप्त को लें बुला मुक्तक
९.२.२०१७

***
दस मात्रिक छंद
२५. १० लघु मात्रा
हर दम छल मत कर
शुभ तज, अशुभ न वर
पथ पर बढ़, मत रुक
नित नव करतब कर
.
'सलिल' प्रवह कलकल
सुख गहकर पल-पल
रुक मत कल रख चल
मनुज न बन अब कल
*
२६. ८ लघु, १ गुरु
नित नर्तित नटवर
गुरु गर्वित गिरिधर
चिर चर्चित चंचल
मन हरकर मनहर
*
२७. ६ लघु, २ गुरु
नित महकती कली
खिल चहकती भली
ललच भँवरे मिले
हँस, बहकती कली
राह फिसलन भरी
झट सँभलती कली
प्रीत कर मत अभी
बहुत सँकरी गली
संयमित रह सदा
सुरभि देकर ढली
*
२८. ४ लघु, ३ गुरु
धन्य-धन्य शंकर
वन्दन संकर्षण
भोले प्रलयंकर
दृढ़ हो आकर्षण
आओ! डमरूधर
शाश्वत संघर्षण
प्रगटे गुप्तेश्वर
करें कृपा-वर्षण
.
हमें साथ रहना
मिला हाथ रहना
सुख-दुःख हैं सांझा
उठा माथ कहना
*
२९. २ लघु, ४ गुरु
बोलो, सच बोलो
पोल नहीं खोलो
सँग तुम्हारे जो
तुम भी तो हो लो
.
तू क्यों है बेबस?
जागो-भागो हँस
कोई देगा न साथ
सोते-रोते नाथ?
*
३०. ५ गुरु
जो चाहो बोलो
बातों को तोलो
झूठों को छोड़ा
सच्चे तो हो लो
.
जो होना है हो
रोकोगे? रोको
पाया खो दोगे
खोया पा लोगे
९.२.२०१७
***
द्विपदियाँ (अश'आर)
*
बना-बना बाहर हुआ, घर बेघर इंसान
मस्जिद-मंदिर में किये, कब्जा रब-भगवान
*
मुझे इंग्लिश नहीं आती, मुझे उर्दू नहीं आती
महज इंसान हूँ, मुझको रुलाई या हँसी आती
*
खुदा ने खूब सूरत दी, दिया सौंदर्य ईश्वर ने
बनें हम खूबसूरत, क्या अधिक चाहा है इश्वर ने?
*
न नातों से रखा नाता, न बोले बोल ही कड़वे
किया निज काम हो निष्काम, हूँ बेकाम युग-युग से
९.२.२०१६
***
दोहा सलिला:
वैलेंटाइन
*
उषा न संध्या-वंदना, करें खाप-चौपाल
मौसम का विक्षेप ही, बजा रहा करताल
*
लेन-देन ही प्रेम का मानक मानें आप
किसको कितना प्रेम है?, रहे गिफ्ट से नाप
*
बेलन टाइम आगया, हेलमेट धर शीश
घर में घुसिए मित्रवर, रहें सहायक ईश
*
पर्व स्वदेशी बिसरकर, मना विदेशी पर्व
नकद संस्कृति त्याग दी, है उधार पर गर्व
*
उषा गुलाबी गाल पर, लेकर आई गुलाब
प्रेमी सूरज कह रहा, प्रोमिस कर तत्काल
*
धूप गिफ्ट दे धरा को, दिनकर करे प्रपोज
देख रहा नभ मन रहा, वैलेंटाइन रोज
*
रवि-शशि से उपहार ले, संध्या दोनों हाथ
मिले गगन से चाहती, बादल का भी साथ
*
चंदा रजनी-चाँदनी, को भेजे पैगाम
मैंने दिल कर दिया है, दिलवर तेरे नाम
*
पुरवैया-पछुआ कहें, चखो प्रेम का डोज
मौसम करवट बदलता, जब-जब करे प्रपोज
*
भेंट पुष्प टॉफी वादा आलिंगन भालू फिर प्रस्ताव
लला-लली को हुआ पालना घर से 'प्रेम करें' शुभ चाव
कोई बाँह में, कोई चाह में और राह में कोई और
वे लें टाई न, ये लें फ्राईम, सुबह-शाम बदलें का दौर
***
लाल गुलाब
लालू जब घर में घुसे, लेकर लाल गुलाब
लाली जी का हो गया, पल में मूड ख़राब
'झाड़ू बर्तन किये बिन, नाहक लाये फूल
सोचा, पाकर फूल मैं जाऊंगी सच भूल
लेकिन मुझको याद है ए लाली के बाप!
फूल शूल के हाथ में देख हुआ संताप
फूल न चौका सम्हालो, मैं जाऊं बाज़ार
सैंडल लाकर पोंछ दो जल्दी मैली कार.'
***
मुक्तक :
जो हुआ अनमोल है बहुमूल्य, कैसे मोल दूँ मैं ?
प्रेम नद में वासना-विषज्वाल कैसे घोल दूँ मैं?
तान सकता हूँ नहीं मैं तार, संयम भंग होगा-
बजाना वीणा मुझे है कहो कैसे झोल दूँ मैं ??
.
मानकर पूजा कलम उठायी है
मंत्र गायन की तरह चलायी है
कुछ न बोले मौन हैं गोपाल मगर
जानता हूँ कविता उन्हें भायी है
.
बेरुखी ज्यों-ज्यों बढ़ी ज़माने की
करी हिम्मत मैंने आजमाने की
मिटेंगे वे सब मुझे भरोसा है-
करें जो कोशिश मुझे मिटाने की
.
सर्द रातें भी कहीं सोती हैं?
हार वो जान नहीं खोती हैं
गर्म जो जेब उसे क्या मालुम
जाग ऊसर में बीज बोती हैं
.
बताओ तो कौन है वह, कहो मैं किस सा नहीं हूँ?
खोजता हूँ मैं उसे, मैं तनिक भी जिस सा नहीं हूँ
हर किसी से कुछ न कुछ मिल साम्यता जाती है मुझको-
इसलिए हूँ सत्य, माने झूठ मैं उस सा नहीं हूँ
.
राह कितनी भी कठिन हो, पग न रुकना अग्रसर हो
लाख ठोकर लगें, काँटें चुभें, ना तुझ पर असर हो
स्वेद से श्लथ गात होगा तर-ब-तर लेकिन न रुकना
सफल-असफल छोड़ चिंता श्वास से जब भी समर हो
***
आये कविता करें: ११
पर्ण छोड़ पागल हुए, लहराते तरु केश ।
आदिवासी रूप धरे, जंगल का परिवेश ।। - संदीप सृजन
- सलिल सर! आपने मेरे दोहे पर टीप दी धन्यवाद .... मुझे पता है तीसरे चरण में जगण ऽ।ऽ हो रहा है इसे आप सुधार कर भेजने का कष्ट करें।
= यहाँ एक बात और विचारणीय है। वृक्ष पत्ते अर्थात वस्त्र छोड़ पागल की तरह केश या डालियाँ लहरा रहे हैं। इसे आदिवासी रूप कैसे कहा जा सकता है? आदिवासी होने और पागल होने में क्या समानता है?
- क्या नग्न शब्द का उपयोग किया जाए?
= नंगेपन और अदिवासियों में भी कोई सम्बन्ध नहीं है। उनसे अधिक नग्न नायिकाएँ दूर दर्शन पर निकट दर्शन कराती रहती हैं।
- आदिवासी शब्द प्रतीक है .... जैसे अंधे को सूरदास कहा जाता है।
= लेकिन यह एक समूचा संवर्ग भी है। क्या वह आहत न होगा? यदि आप एक आदिवासी होते तो क्या इस शब्द का प्रयोग इस सन्दर्भ में करते?
पर्ण छोड़ पागल हुए, तरु लहराते केश
शहर लीलता जा रहा, जंगल का परिवेश. -यह कैसा रहेगा?
-बिम्ब के प्रयोग में क्या आपत्ति? ... कई लोगो ने ये प्रयोग किया है
= मुझे कोई आपत्ति नहीं। यदि आप वही कहना चाहते हैं जो व्यक्त हो रहा है तो अवश्य कहें। यदि अनजाने में वह व्यक्त हो रहा है जो मंतव्य नहीं है तो परिवर्तन को सोचें। दोहा आपका है. जैसा चाहें कहें। मैं अपना सुझाव वापिस लेता हूँ।आपको हुई असुविधा हेतु खेद है।
- शहरी परिवेश का पत्ते त्यागने से कोई संबध नहीं होता ..... पेड़ कही भी हो स्वभाविक प्रक्रिया मे वसंत मे पत्ते त्याग देते हैं. सर! कोई असुविधा या खेद की बात नहीं .... मै जानता हूँ आप छंद के विद्वान है... मेरे प्रश्न पर आप मुझे संतुष्ट करे तो कृपा होगी .. मै तो लिखना सीख रहा हूँ।मुझे समाधान नही संतुष्टि चाहिए ... जो आप दे सकते हैं।
= साहित्य सबके हितार्थ रचा जाता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता रचनाकार को होती ही है। मुझे ऐसा लगता है कि अनावश्यक किसी को मानसिक चोट क्यों पहुँचे ? उक्ति है: 'सत्यम ब्रूयात प्रियं ब्रूयात मा ब्रूयात सत्यम अप्रियम' अर्थात जब सच बोलो तो प्रिय बोलो / अप्रिय सच को मत ही बोलो'.
- नीलू मेघ जी का एक दोहा देखें
महुआ भी गदरा गया , बौराया है आम
मौसम ने है काम किया मदन हुआ बदनाम...
यहाँ 'मौसम ने है काम किया' १३ के स्थान पर १४ मात्राएँ हैं. कुछ परिवर्तन ' मौसम ने गुल खिलाया' करने से मात्रिक संतुलन स्थापित हो जाता है, 'गुल खिलाना' मुहावरे का प्रयोग दोहे के चारुत्व में वृद्धि करता है।
९.२.२०१५
***
नवगीत:
.
गयी भैंस
पानी में भाई!
गयी भैंस पानी में
.
पद-मद छोड़ त्याग दी कुर्सी
महादलित ने की मनमर्जी
दाँव मुलायम समझा-मारा
लालू खुश चार पायें चारा
शरद-नितिश जब पीछे पलटे
पाँसे पलट हो गये उलटे
माँझी ने ही
नाव डुबोई
लगी सेंध सानी में
.
गाँधी की दी खूब दुहाई
कहा: 'सादगी है अपनाई'
सत्तर लाखी सूट हँस रहा
फेंक लँगोटी तंज कस रहा
'सब का नेता' बदले पाला
कहे: 'चुनो दल मेरा वाला'
जनगण ने
जब भौंहें तानीं
गया तेल घानी में
८-२-२०१५
...
सामयिक कविता:
*
हर चेहरे की अलग कहानी, अलग रंग है.
अलग तरीका, अलग सलीका, अलग ढंग है...
*
भगवा कमल चढ़ा सत्ता पर जिसको लेकर
गया पाक बस में, आया हो बेबस होकर.
भाषण लच्छेदार सुनाये, सबको भये.
धोती कुरता गमछा धारे सबको भाये.
बरस-बरस उसकी छवि हमने विहँस निहारी.
ताली पीटो, नाम बताओ- ......................
*
गोरी परदेसिन की महिमा कही न जाए.
सास और पति के पथ पर चल सत्ता पाए.
बिखर गया परिवार मगर क्या खूब सम्हाला?
देवरानी से मन न मिला यह गड़बड़ झाला.
इटली में जन्मी, भारत का ढंग ले लिया.
बहुत दुलारी भारत माँ की नाम? .........
*
यह नेता भैंसों को ब्लैक बोर्ड बनवाता.
कुर्सी पड़े छोड़ना, बीबी को बैठाता.
घर में रबड़ी रखे मगर खाता था चारा.
जनता ने ठुकराया अब तडपे बेचारा.
मोटा-ताज़ा लगे, अँधेरे में वह भालू.
जल्द पहेली बूझो नाम बताओ........?
*
माया की माया न छोड़ती है माया को.
बना रही निज मूर्ति, तको बेढब काया को.
सत्ता प्रेमी, कांसी-चेली, दलित नायिका.
नचा रही है एक इशारे पर विधायिका.
गुर्राना-गरियाना ही इसके मन भाया.
चलो पहेली बूझो, नाम बताओ........
*
छोटी दाढीवाला यह नेता तेजस्वी.
कम बोले करता ज्यादा है श्रमी-मनस्वी.
नष्ट प्रान्त को पुनः बनाया, जन-मन जीता.
मरू-गुर्जर प्रदेश सिंचित कर दिया सुभीता.
गोली को गोली दे, हिंसा की जड़ खोदी.
कर्मवीर नेता है भैया ..............
*
बंगालिन बिल्ली जाने क्या सोच रही है?
भय से हँसिया पार्टी खम्बा नोच रही है.
हाथ लिए तृण-मूल, करारी दी है टक्कर.
दिल्ली-सत्ताधारी काटें इसके चक्कर.
दूर-दूर तक देखो इसका हुआ असर जी.
पहचानो तो कौन? नाम .....................
*
तेजस्वी वाचाल साध्वी पथ भटकी है.
कौन बताये किस मरीचिका में अटकी है?
ढाँचा गिरा अवध में उसने नाम काया.
बनी मुख्य मंत्री, सत्ता सुख अधिक न भाया.
बडबोलापन ले डूबा, अब है गुहारती.
शिव-संगिनी का नाम मिला, है ...............
*
मध्य प्रदेशी जनता के मन को जो भाया.
दोबारा सत्ता पाकर भी ना इतराया.
जिसे लाडली बेटी पर आता दुलार है.
करता नव निर्माण, कर रहा नित सुधार है.
दुपहर भोजन बाँट, बना जन-मन का तारा.
जल्दी नाम बताओ वह ............. हमारा.
*
डर से डरकर बैठना सही न लगती राह.
हिम्मत गजब जवान की, मुँह से निकले वाह.
घूम रहा है प्रान्त-प्रान्त में नाम कमाता.
गाँधी कुल का दीपक, नव पीढी को भाता.
जन मत परिवर्तन करने की लाता आँधी.
बूझो-बूझो नाम बताओ ......................
*
बूढा शेर बैठ मुम्बई में चीख रहा है.
देश बाँटता, हाय! भतीजा दीख रहा है.
पहलवान है नहीं मुलायम अब कठोर है.
धनपति नेता डूब गया है, कटी डोर है
शुगर किंग मँहगाई अब तक रोक न पाया.
रबर किंग पगड़ी बाँधे, पहचानो भाया.
*
रंग-बिरंगे नेता करते बात चटपटी.
ठगते सबके सब जनता को बात अटपटी.
लोकतन्त्र को लोभतंत्र में बदल हँस रहे.
कभी फांसते हैं औरों को कभी फँस रहे.
ढंग कहो, बेढंग कहो चल रही जंग है.
हर चहरे की अलग कहानी, अलग रंग है.
***

सोमवार, 27 जनवरी 2025

कावेरी संगम धार्मिक पर्यटन स्थल

विशेष लेख
विकास की प्रतीक्षा में कावेरी संगम
उत्तर कावेरी, दक्षिण कावेरी तथा हेमावती नदियों के संगम स्थल 'कावेरी संगम' एक रमणीय धार्मिक पर्यटन स्थल है। इसका विकास किया जाना आवश्यक है। कावेरी संगम पर कावेरी कुंभ का आयोजन किया जाए।
विकास हेतु सुझाव
केवल अस्थि विसर्जन हेतु एक कुंड अलग हो। स्नान घाट पर किसी तरह की सामग्री का विसर्जन न हो। पूजन घाट की ऊपरी हिस्से में हो। 
पंडित-पुजारियों की सूची बनाकर स्थानीय प्रशासन हर वर्ष नीलामी द्वारा स्थल किराए पर दे तथा पूजन हेतु दक्षिणा निर्धारित करें। आगंतुकों से निर्धारित प्रवेश शुल्क लिया जाता है। व्यापारियों/दूकानदारों तथा नाव चला रहे नाविकों से वृत्ति कर लिया जाए। यह सभी आय विकास कार्यों पर व्यय की जाए। बोटिंग (नौकायन) की दर तथा सुरक्षित परिपथ निर्धारित किया जाए। स्विमिंग हेतु सुरक्षित घाट विकसित किया जाए तथा प्रति व्यक्ति प्रति घंटा शुल्क हो।
स्नान घाट के निकट धर्मशाला,सुलभ शौचालय, स्नानागार तथा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हेतु स्थानीय जन प्रतिनिधि प्रशासनिक अधिकारियों से योजना बनवाकर राज्य शासन से आर्थिक सहायता प्राप्त करें।
नदी में भस्म,राख,कपड़ों, पालिथीन थैलियों, मूर्तियों फेंकना प्रतिबंधित हो। इसके लिए अलग स्थान निर्धारित हो। नदियों की स्वच्छता, जलजीवों, पक्षियों तथा अन्य जंतुओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। 
महत्वपूर्ण धार्मिक तिथियों पर मेले आयोजित कराए जाएँ। स्थानीय उत्पादों, हस्तकलाओं, कारीगरों को प्रोत्साहित किया जाए।
कावेरी संगम, नदियों तथा निकटस्थ पर्यटन स्थलों की पुरातत्विक जानकारी, धार्मिक कथाओं, प्रसंगों आदि प्रकाशित कर सुलभ कराई जाए। बस अड्डों, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डे,बाजारों आदि में कावेरी संगम के चित्र, दूरी, आवागमन साधनों की जानकारी के पोस्टर लगाए जाएँ। 
पर्यटकों के प्रवास को रोमांचक बनाने के लिए नदी के दूसरे तट पर मचान, काटेज आदि बनाए जा सकते हैं। 
- इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल', ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, मोबाइल९४२५१८३२
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२१.१.२०२४

शुक्रवार, 24 जनवरी 2025

जनवरी २४,अदालत, चित्रगुप्त, हास्य, सोरठा, सॉनेट, नवगीत और देश, मुक्तिका, लघुकथा, बसंत पंचमी,

सलिल सृजन जनवरी २४
*
आज अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस
० 
प्रश्न- अदालत झूठ-सच को कैसे पहचाने?
उत्तर-
हुई अदा लत झूठ की, सच से है परहेज।
क्यों न अदालत झूठ को, सच कह रखे सहेज।।
*
प्रश्न- अगला प्रधान मंत्री कौन? मोदी या योगी?
उत्तर-
मोदी-योगी भुलाकर, अपनी करिए फिक्र।
कुछ तो ऐसा कीजिए, सदियों तक हो जिक्र।।
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सोरठा सलिला
कंठ करोड़ों वास, हिंदी जगवाणी नमन।
हर मन भरे उजास, हर जन हरि जन हो विहँस।।
हिंदी है रसवान, जी भरकर रस-पान कर।
हो रसनिधि रसलीन, बन रसज्ञ रसखान भी।।
हिंदी प्राची लाल, कर प्रकाश कहती उठो।
कलरव करे निहाल, नभ नापो आगे बढ़ो।।
नेह नर्मदा धार, हिंदी कलकल कर बहे।
बाँटे पाया प्यार, कभी नहीं कुछ भी गहे।।
सरला तरला वाक्, बोलें-सुनिए मुग्ध हों।
मौन न रहें अवाक्, गले मिलें मत दग्ध हों।।
२४-१-२०२३
•••
सॉनेट
शुभ प्रभात
*
सबका शुभ-मंगल करिए प्रभु!
हर चेहरे पर हो प्रसन्नता।
हृदय हृदय से मिले, खिले विभु!
कहीं न किंचित् हो विपन्नता।।
शरणागत हम राह दिखाओ।
मति दो सबके काम आ सकें।
भूल-चूक हर हँस बिसराओ।।
सबसे शुभ आशीष पा सकें।।
अहंकार हर, हर लो, हे हर!
डमडम डमरू नाद सुनाओ।
कार्य सधे सब हे अभ्यंकर!
गणपति-कार्तिक मंगल गाओ।
जगजननी ममता बरसाओ।
मन मंदिर से कहीं न जाओ।।
२४-१-२०२२
***
सोरठा सलिला
*
गुमी स्नेह की छाँव, नदिया रूठी गाँव से।
घायल युग के पाँव, छेद हुआ है नाव में।।
*
फूलों की मुस्कान, शूलों से है प्रताड़ित।
कली हुई बेजान, कभी रही जो सुवासित।।
*
हैं जिज्ञासु न आज, नादां दाना बन रहे।
राज न हो नाराज, कवि भी मुँह देखी कहे।।
*
देखें भ्रमित विकास, सिसकती अमराइयाँ।
पैर झेलते त्रास, एड़ी लिए बिमाइयाँ।।
*
जो नाजुक बेजान, जा बैठी शोकेस में।
थामे रही कमान, जो वह जीती रेस में।।
***
कृति चर्चा-
रस सागर - फागों ३३७ फागों की गागर
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कृति विवरण - रस सागर, फाग संग्रह, संकलक-संपादक : भगीरथ शुक्ल 'योगी', तृतीय संस्करण, आवरण पेपरबैक बहुरंगी, पृष्ठ १६४, मूल्य ६०/-, प्रकाशक- खेमराज श्रीकृष्ण दास, श्री वैंकटेश्वर प्रेस, खेमराज श्रीकृष्ण दास मार्ग, मुंबई ४००००४।
*
भारत का तंत्र भले ही लोक को महत्व न दे किंतु भारत की संस्कृति लोक को ही प्रधानता देती है। लोक गाँवों में बसता है। 'भारत माता ग्रामवासिनी है। मानव सभ्यता के बढ़ते चरणों के साथ लोक जैसे-जैसे अस्तित्व में आता गया वैसे-वैसे लोक गीत, लोक संगीत और लोक नृत्य का उद्भव और विकास होता गया। भारतीय लोक मानस ने गीत-संगीत-नृत्य को केवल मनरंजन या बौद्धिक विलास का साधन नहीं माना अपितु इसे सामाजिक समरसता, सद्भाव, सहकार और आध्यात्मिक उन्नयन का स्रोत भी माना। ऋतुराज बसंत के आगमन के साथ विंध्याटवी ही नहीं समस्त भारत के ग्राम्यांचलों में लघ्वाकारी पदों की स्वर लहरी गूँजने लगती है। विविध अंचलों में भिन्न-भिन्न भाषाओँ में इन पदों के नाम भले ही अलग-अलग हों, उनमें लालित्य, चारुत्व, उत्साह, उल्लास और जीवंतता भरपूर होती है। मध्य और उत्तर भारत में ऐसे पदों में 'फाग' का स्थान अनन्य है।
विवेचय कृति हिंदी का प्रथम काव्य संग्रह है जिसमें ३३७ फागों का प्रकाशन हुआ है। फाग हमारी गौरवपूर्ण सांस्कृतिक लोक संस्कृति की अनमोल धरोहर है। फाग केवल मनबहलाव का साधन नहीं है, यह समस्या ग्रस्त जीवन में संघर्ष कर थके-हारे-टूटे जन-मन में नव चेतना, नव जागरण, उमंग और सामाजिक सहकार बढ़ानेवाला अमृत है। फाग सकल मनोमालिन्य को लोपकर जन-मन को निर्मल कर देता है। फाग के अनुष्ठान में गति-यति, स्वर-ताल और नाद की त्रिवेणी प्रवाहित होती है। फाग नर-नारी, संपन्न-विपणन, शिक्षित-अशिक्षित, उच्च-निम्न माँ भेद-भाव मिटाकर समानता और सद्भाव की नेह नर्मदा बहा देती है। फाग शब्द सुनते ही मन में फगुहारों की टोली, ढोलक पर पड़ती लयबद्ध थाप, मंजीरों को कारण प्रिय झंकार, गायकों की मधुर वाणी और नर्तकों के थिरकते पदों की स्मृति मन को प्रमुदित कर बरबस गुनगुनाने के लिए प्रवृत्त कर देती है।
शास्त्रीय संगीत के विपरीत लोक श्रेष्ठि वर्ग पर संगीत जन सामान्य को वरीयता देता है। फाग रचयिता कालजयी कवियों ने फागों में श्रृंगार (संयोग-वियोग), हास्य-व्यंग्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत, शांत, वात्सल्य आदि रसों का सम्यक समावेशन कर फागों को अमर कर दिया है। सूर, कबीर, तुलसी, मीरा, ईसुरी आदि ने फागों को रस सागर बना दिया। संभवत:, पहली बार ३३७ फागों का संकलन-संपादन कर भगीरथ शुक्ल 'योगी' ने 'रस सागर' संकलन का प्रकाशन किया है। इस संकलन का वैशिष्ट्य केवल धमार फागों का संकलन किया जाना है। जिन फागों में अश्लीलता या असमाजिकता मिली उन्हें संकलन में नहीं लिया गया है। इस नीति ने संकलन को स्तरीय तथा सुरुचिपूर्ण बनाया है।
संपादक ने शंकर, राम तथा कृष्ण विषयक फागों को पृथक-पृथक वर्गीकृत किया है। परस्पर जुड़े हुए, प्रश्नोत्तरी अथवा एक साथ गाए जानेवाले फाग एक साथ रखकर सुसंगति स्थापित की गई है। संकलन में सम्मिलित फागों की वर्ण माला क्रमानुसार सूची ने इच्छित फाग की तलाश को सुगम बना दिया है। फाग गेयता (लय) पर आधारित पद्य रचना हैं। संपादक ने फागों का पाठ देते समय अर्थ-बोध पर गेयता को वरीयता दी है। अन्य लोक गीतों की तरह फागों के भी भिन्न-भिन्न रूप भिन्न-भिन्न भागों में प्रचलित हैं। फागों में प्रक्षिप्त पंक्तियाँ भी पाई जाती हैं, इसलिए कुशल संपादन आवश्यक है। योगी जी ने अप्रचलित तथा स्वरचित फागों को भी संकलन में स्थान दिया है।
संकलन के द्वितीय विभाग श्रीकृष्ण चरित्र में १४९ (क्रमांक ६९ से क्रमांक २१८ तक) फागें हैं। इनमें कृष्ण जन्म, बाल लीला, वृंदावन का प्राकृतिक वैभव, बसंत, गोपियों के संग फाग, होरी, यमुना किनारे बाल लीला, दधि लूटना, कृष्ण वंदना, कृष्ण महिमा, मुरली वादन, वर्षा, पुष्प-सौंदर्य, कंदुक क्रीड़ा, अबीर क्रीड़ा, रंग वृष्टि, कृष्ण सौंदर्य, राधा महिमा, राधा सौंदर्य, बृज की होली, विष्णु अवतार, राधा की होरी क्रीड़ा, गोपियों द्वारा छेड़, सावन वर्णन, इंद्र प्रकरण, बरसाने में होरी, कुञ्ज क्रीड़ा, रास लीला, कृष्ण द्वारा बिसाती रूप रख राधा से मिलना, मोर मुकुट, गैल छेकना, द्वारकाधीश, ऊधौ प्रकरण, कुब्जा प्रकरण, बृज से बिदाई, बृज वनिताओं की व्याकुलता, सुदामा प्रसंग, कृष्ण द्वारा वैद्य रूप, दधि गगरिया भंग, गाय दुहना, गौ पालन, यशोदा का दाढ़ी मंथन, मधुबन लीला, गेंद चोरी, वंशी चोरी, नटवर वेश, शिव द्वारा कृष्ण दर्शन, चंद्र खिलौना, वेणु वादन, वस्त्र हरण,भजन, कृष्ण प्रेम आदि सभी महत्वपूर्ण प्रसंग हैं।
उल्लेखनीय है कि फागों में राक्षस वध, कंस वध, कृष्ण-पांडव, कृष्ण-द्रौपदी, कृष्ण-कौरव, कृष्ण-कुरुक्षेत्र, गीता, द्वारक विवाद, महाप्रस्थान जैसे प्रसंग नहीं है। स्पष्ट है कि फागकारों ने लोक मंगल और रसानंद को लक्ष्य माना है और नकारात्मक, हिंसा प्रधान घटनाओं को अनदेखा किया है। रचनाकर्म में सकारात्मकता और शुभता के प्रति आग्रह तथाकथित प्रगतिवादियों के लिए ग्रहणीय है। दूसरी और फागकारों ने वर्ण विभाजन, उंच-नीच, छूआछूत, विप्र माहात्म्य, अंध श्रद्धा, पूजाडंबर आदि से भी परहेज किया है। संकीर्ण अंधविश्वासियों को फाग से औदार्य तथा समानता का पाठ ग्रहण करना चाहिए। संकलन में शैव-वैष्णव विभाजन को शिव फागों का सम्मिलन कर अमान्य किया गया है। एक भी फाग में अन्य धर्मावलंबियों यहाँ तक कि असुरों आदि की भी निन्दा नहीं है। स्पष्ट है की कृष लीलाओं और फागों का लक्ष्य सामाजिक समरसता, लोक मांगल्य और शुभता का प्रसार ही है।
२४-१-२०२२
***
विशेष लेख
नवगीत और देश
आचार्य संजीव 'सलिल'
*
विश्व की पुरातनतम संस्कृति, मानव सभ्यता के उत्कृष्टतम मानव मूल्यों, समृद्धतम जनमानस, श्रेष्ठतम साहित्य तथा उदात्ततम दर्शन के धनी देश भारत वर्तमान में संक्रमणकाल से गुजर रहा है।पुरातन श्रेष्ठता, विगत पराधीनता, स्वतंत्रता पश्चात संघर्ष और विकास के चरण, सामयिक भूमंडलीकरण, उदारीकरण, उपभोक्तावाद, बाजारवाद, दिशाहीन मीडिया के वर्चस्व, विदेशों के प्रभाव, सत्तोन्मुख दलवादी राजनैतिक टकराव, आतंकी गतिविधियों, प्रदूषित होते पर्यावरण, विरूपित होते लोकतंत्र, प्रशासनिक विफलताओं तथा घटती आस्थाओं के इस दौर में साहित्य भी सतत परिवर्तित हुआ।छायावाद के अंतिम चरण के साथ ही साम्यवाद-समाजवाद प्रणीत नयी कविता ने पारम्परिक गीत के समक्ष जो चुनौती प्रस्तुत की उसका मुकाबला करते हुए गीत ने खुद को कलेवर और शिल्प में समुचित परिवर्तन कर नवगीत के रूप में ढालकर जनता जनार्दन की आवाज़ बनकर खुद को सार्थक किया ।
किसी देश को उसकी सभ्यता, संस्कृति, लोकमूल्यों, धन-धान्य, जनसामान्य, शिक्षा स्तर, आर्थिक ढाँचे, सैन्यशक्ति, धार्मिक-राजनैतिक-सामाजिक संरचना से जाना जाता है। अपने उद्भव से ही नवगीत ने सामयिक समस्याओं से दो-चार होते हुए, आम आदमी के दर्द, संघर्ष, हौसले और संकल्पों को वाणी दी। कथ्य और शिल्प दोनों स्तर पर नवगीत ने वैशिष्ट्य पर सामान्यता को वरीयता देते हुए खुद को साग्रह जमीन से जोड़े रखा प्रेम, सौंदर्य, श्रृंगार, ममता, करुणा, सामाजिक टकराव, चेतना, दलित-नारी विमर्श, सांप्रदायिक सद्भाव, राजनैतिक सामंजस्य, पीढ़ी के अंतर, राजनैतिक विसंगति, प्रशासनिक अन्याय आदि सब कुछ को समेटते हुइ नवगीत ने नयी पीढ़ी के लिये आशा, आस्था, विश्वास और सपने सुरक्षित रखने में सफलता पायी है।
पुरातन विरासत:
किसी देश की नींव उसके अतीत में होती है। नवगीत ने भारत के वैदिक, पौराणिक, औपनिषदिक काल से लेकर अधिक समय तक के कालक्रम, घटना चक्र और मिथकों को अपनी ताकत बनाये रखा है। वर्तमान परिस्थितियों और विसंगतियों का विश्लेषण और समाधान करता नवगीत पुरातन चरित्रों और मिथकों का उपयोग करते नहीं हिचकता। (जागकर करेंगे हम क्या? / सोना भी हो गया हराम / रावण को सौंपकर सिया / जपता मारीच राम-राम - मधुकर अष्ठाना, वक़्त आदमखोर), अंधों के आदेश / रात-दिन ढोता राजमहल / मिला हस्तिनापुर को / जाने किस करनी का फल (जय चक्रवर्ती, थोड़ा लिखा समझना ज्यादा) में देश की पुरातन विरासत पर गर्वित नवगीत सहज दृष्टव्य है।
संवैधानिक अधिकार:
भारत का संविधान देश के नागरिकों को अधिकार देता है किन्तु यथार्थ इसके विपरीत है- मौलिक अधिकारों से वंचित है / भारत यह स्वतंत्र नागरिक / वैचारिक क्रांति अगर आये तो / ढल सकती दोपहरी कारुणिक (आनंद तिवारी, धरती तपती है), क्यों व्यवस्था / अनसुना करते हुए यों / एकलव्यों को / नहीं अपना रही है? (जगदीश पंकज, सुनो मुझे भी), तंत्र घुमाता लाठियाँ / जन खाता है मार / उजियारे की हो रही अन्धकार से हार / सरहद पर बम फट रहे / सैनिक हैं निरुपाय / रण जीतें तो सियासत / हारें, भूल बताँय / बाँट रहे हैं रेवाड़ी / अंधे तनिक न गम / क्या सचमुच स्वाधीन हम? (आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', सड़क पर) आदि में नवगीत देश के आम नागरिक के प्रति चिंतित है।
गणतंत्र:
देश के संविधान, ध्वज हर नागरिक के लिये बहुमूल्य हैं। गणतंत्र की महिमा गायन कर हर नागरिक का सर गर्व से उठ जाता है - गणतंत्र हर तूफ़ान से गुजर हुआ है / पर प्यार से फहरा हुआ है ताल दो मिलकर / की कलियुग में / नया भारत बनाना है (पूर्णिमा बर्मन, चोंच में आकाश)। नवगीत केवक विसंकटी और विडम्बना का चित्रण नहीं है, वह देश के प्रति गर्वानुभूति भी करता है - पेट से बटुए तलक का / सफर तय करते मुसाफिर / बात तू माने न माने / देश पर अभिमान करने / के अभी लाखों बहाने (रामशंकर वर्मा, चार दिन फागुन के), मुक्ति-गान गूँजे, जब / मातृ-चरण पूजें जब / मुक्त धरा-अम्बर से / चिर कृतज्ञ अंतर से / बरबस हिल्लोल उठें / भावाकुल बोल उठें / स्वतंत्रता- संगरो नमन / हुंकृत मन्वन्तरों नमन (जवाहर लाल चौरसिया 'तरुण', तमसा के दिन करो नमन) आदि में देश के गणतंत्र और शहीदों को नमन कर रहा है नवगीत।
वर्ग संघर्ष-शोषण:
कोई देश जब परिवर्तन और विकास की राह पर चलता है तो वर्ग संघर्ष होना स्वाभाविक है. नवगीत ने इस टकराव को मुखर होकर बयान किया है- हम हैं खर-पतवार / सड़कर खाद बनते हैं / हम जले / ईंटे पकाने / महल तनते हैं (आचार्य भगवत दुबे, हिरन सुगंधों के), धूप का रथ / दूर आगे बढ़ गया / सिर्फ पहियों की / लकीरें रह गयीं (प्रो. देवेंद्र शर्मा 'इंद्र'), सड़क-दर-सड़क / भटक रहे तुम / लोग चकित हैं / सधे हुए जो अस्त्र-शास्त्र / वे अभिमंत्रित हैं (कुमार रवीन्द्र), व्यर्थ निष्फल / तीर और कमान / राजा रामजी / क्या करे लक्षमण बड़ा हैरान / राजा राम जी (स्व. डॉ. विष्णु विराट) आदि में नवगीत देश में स्थापित होते दो वर्गों का स्पष्ट संकेत करता है।
विकासशील देश में बदलते जीवन मूल्य शोषण के विविध आयामों को जन्म देता है. स्त्री शोषण के लिए सहज-सुलभ है. नवगीत इस शोषण के विरुद्ध बार-बार खड़ा होता है- विधवा हुई रमोली की भी / किस्मत कैसी फूटी / जेठ-ससुर की मैली नजरें / अब टूटीं, तब टूटीं (राजा अवस्थी, जिस जगह यह नाव है), कहीं खड़ी चौराहे कोई / कृष्ण नहीं आया / बनी अहल्या लेकिन कोई राम नहीं पाया / कहीं मांडवी थी लाचार घुटने टेक पड़ी (गीता पंडित, अब और नहीं बस), होरी दिन भर बोझ ढोता / एक तगाड़ी से / पत्नी भूखी, बच्चे भूखे / जब सो जाते हैं / पत्थर की दुनिया में आँसू तक खो जाते हैं (जगदीश श्रीवास्तव) कहते हुए नवगीत देश में बढ़ रहे शोषण के प्रति सचेत करता है।
परिवर्तन-विस्थापन:
देश के नवनिर्माण की कीमत विस्थापित को चुकानी पड़ती है. विकास के साथ सुरसाकार होते शहर गाँवों को निगलते जाते हैं- खेतों को मुखिया ने लूटा / काका लुटे कचहरी में / चौका सूना भूखी गैया / प्यासी खड़ी दुपहरी में (राधेश्याम /बंधु', एक गुमसुम धूप), सन्नाटों में गाँव / छिपी-छिपी सी छाँव / तपते सारे खेत / भट्टी बनी है रेत / नदियां हैं बेहाल / लू-लपटों के जाल (अशोक गीते, धुप है मुंडेर की), अंतहीन जलने की पीड़ा / मैं बिन तेल दिया की बाती / मन भीतर जलप्रपात है / धुआँधार की मोहक वादी / सलिल कणों में दिन उगते ही / माचिस की तीली टपका दी (रामकिशोर दाहिया, अल्लाखोह मची), प्रतिद्वंदी हो रहे शहर के / आसपास के गाँव / गाये गीत गये ठूंठों के / जीत गये कंटक / ज़हर नदी अपना उद्भव / कह रही अमरकंटक / मुझे नर्मदा कहो कह रहा / एक सूखा तालाब (गिरिमोहन गुरु, मुझे नर्मदा कहो), बने बाँध / नदियों पर / उजड़े हैं गाँव / विस्थापित हुए / और मिट्टी से कटे / बच रहे तन / पर अभागे मन बँटे / पथरीली राहों पर / फिसले हैं पाँव (जयप्रकाश श्रीवास्तव, परिंदे संवेदना के) आदि भाव मुद्राओं में देश विकास के की कीमत चुकाते वर्ग को व्यथा-कथा शब्दित कर उनके साथ खड़ा है नवगीत।
पर्यावरण प्रदूषण:
देश के विकास साथ-साथ की समस्या सिर उठाने लगाती है। नवगीत ने पर्यावरण असंतुलन को अपना कथ्य बनाने से गुरेज नहीं किया- इस पृथ्वी ने पहन लिए क्यों / विष डूबे परिधान? / धुआँ मंत्र सा उगल रही है / चिमनी पीकर आग / भटक गया है चौराहे पर / प्राणवायु का राग / रहे खाँसते ऋतुएँ, मौसम / दमा करे हलकान (निर्मल शुक्ल, एक और अरण्य काल), पेड़ कब से तक रहा / पंछी घरों को लौट आएं / और फिर / अपनी उड़ानों की खबर / हमको सुनाएँ / अनकहे से शब्द में / फिर कर रही आगाह / क्या सारी दिशाएँ (रोहित रूसिया, नदी की धार सी संवेदनाएँ) कहते हुए नवगीत देश ही नहीं विश्व के लिए खतरा बन रहे पर्यावरण प्रदूषण को काम करने के प्रति अपनी चिंता व्यक्त करता है।
भ्रष्टाचार:
देश में पदों और अधिकारों का का दुरुपयोग करनेवाले काम नहीं हैं। नवगीत उनकी पोल खोलने में पीछे नहीं रहता- लोकतंत्र में / गाली देना / है अपना अधिकार / अपना काम पड़े तो देना / टेबिल के नीचे से लेना (ओमप्रकाश तिवारी, खिड़कियाँ खोलो) स्वर्णाक्षर सम्मान पत्र / नकली गुलदस्ते हैं / चतुराई के मोल ख़रीदे / कितने सस्ते हैं (महेश अनघ), आत्माएँ गिरवी रख / सुविधाएँ ले आये / लोथड़ा कलेजे का, वनबिलाव चीलों में / गंगा की गोदी में या की ताल-झीलों में / क्वाँरी माँ जैसे, अपना बच्चा दे आये (नईम), अंधी नगरी चौपट राजा / शासन सिक्के का / हर बाज़ी पर कब्जा दिखता / जालिम इक्के का (शीलेन्द्र सिंह चौहान) आदि में नवगीत देश में शिष्टाचार बन चुके भ्रष्टाचार को उद्घाटित कर समाप्ति हेतु प्रेरणा देता है।
उन्नति और विकास:
नवगीत विसंगति और विडम्बनाओं तक सीमित नहीं रहता, वह आशा-विश्वास और विकास की गाथा भी कहता है- देखते ही देखते बिटिया / सयानी हो गयी / उच्च शिक्षा प्राप्त कर वह नौकरी करने चली / कल तलक थी साथ में / अब कर्म पथ वरने चली (ब्रजेश श्रीवास्तव, बाँसों के झुरमुट से), मुश्किलों को मीत मानो / जीत तय होगी / हौसलों के पंख हों तो।/ चिर विजय होगी (कल्पना रामानी, हौसलों के पंख) कहते हुए नवगीत देश की युवा पीढ़ी को आश्वस्त करता है की विसंगतियों और विडम्बनाओं की काली रात के बाद उन्नति और विकास का स्वर्णिम विहान निकट है।
प्यार :
किसी देश का निर्माण सहयोग, सद्भाव और प्यार से हो होता है. टकराव से सिर्फ बिखराव होता है. नवगीत ने प्यार की महत्ता को भी स्वर दिया है- प्यार है / तो ज़िंदगी महका / हुआ एक फूल है / अन्यथा हर क्षण / ह्रदय में / तीव्र चुभता शूल है / ज़िंदगी में / प्यार से दुष्कर / कहीं कुछ भी नहीं (महेंद्र भटनागर, दृष्टि और सृष्टि), रातरानी से मधुर / उन्वान हम / फिर से लिखेंगे / बस चलो उस और सँग तुम / प्रीत बंधन है जहाँ (सीमा अग्रवाल, खुशबू सीली गलियों की) में नवगीत जीवन में प्यार और श्रृंगार की महक बिखेरता है।
आव्हान :
सपनों से नाता जोड़ो पर / जाग्रति से नाता मत तोड़ो तथा यह जीवन / कितना सुन्दर है / जी कर देखो... शिव समान / संसार हेतु / विष पीकर देखो (राजेंद्र वर्मा, कागज़ की नाव), सबके हाथ / बराबर रोटी बाँटो मेरे भाई (जयकृष्ण तुषार), गूंज रहा मेरे अंतर में / ऋषियों का यह गान / अपनी धरती, अपना अम्बर / अपना देश महान (मधु प्रसाद, साँस-साँस वृन्दावन) आदि अभिव्यक्तियाँ नवगीत के अंतर में देश के नव निर्माण की आकुलता की अभव्यक्ति करते हुई आश्वस्त करती हैं की देश का भविष्य उज्जवल है और युवाओं को विषमता का अंत कर समता-ममता के बीज बोने होंगे।
***
मुक्तिका
*
ये राजनीति लोक को छलती चली गई
ऊषा उदित हुई ही कि ढलती चली गई
रोटी बना रही थी मगर देख कर उसे
अनजाने ही पूड़ियाँ तलती चली गई
कोशिश बहुत की उसने मुझे कर सके निराश
आशा मनस में आप ही पलती चली गई
आभा का राज दूनवी घाटी ने कह दिया
छाया तिमिर घना मिटे, जलती चली गई
हिंदी गजल है, बर्फ की सिल्ली न मानना
जो हार कर तपिश से पिघलती चली गई
है जिंदगी या नाजनीं कोई कहे सलिल
संजीव होके हँसती मचलती चली गई
*
२४-१-२०२०
***
मुक्तिका :
*
तुममें मैं हूँ , मुझमें तुम हो
खोज न बाहर, मिलकर हम हो
*
ईश-देश या नियति-प्रकृति सँग
रहो प्रकाशित, शेष न तम हो
*
पीर तुझे हो, दर्द मुझे हो
सुख-दुःख में मिल अँखियाँ नम हो
*
संबंधों के अनुबंधों में
साधक संयम और नियम हो
*
मंतर मार सकें कुछ ऐसा
अंतर से ही अंतर गुम हो
*
मन-प्राणों को देह टेरती
हो विदेह सुख वही परम हो
*
देना-पाना, मिल-खो जाना
आना-जाना संग धरम हो
***
लघुकथा-
स्थानांतरण
*
चाची! जमाना खराब है, सुना है बहू अकेली बाहर गाँव जा रही है। कैसे और कहाँ रहेगी? समय खराब है।
भतीज बहू की बात सुनकर चाची ने कहा 'तुम चिंता मत करो, बहू के साथ पढ़ा एक दोस्त वही परिवार सहित रहता है। उसके घर कुछ दिन रहेगी, फिर मकान खोजकर यहाँ से सामान बुला लेगी। बीच-बीच में आती-जाती रहेगी। बेटा बिस्तर से न लगा होता तो साथ जाता। उसके पैर का प्लास्टर एक माह बाद खुलेगा, फिर २-३ माह में चलने लायक होगा।'
'ज़माने का क्या है? भला कहता नहीं, बुरा कहने से चूकता नहीं। समय नहीं मनुष्य भले-बुरे होते हैं। अपन भले तो जग भला.… बहू पढ़ी-लिखी समझदार है। हम सबको एक-दूसरे का भरोसा है, फिर फ़िक्र क्यों?
माँ की बात सुनकर स्थानांतरण आदेश पाकर परेशान श्रीमती जी के अधरों पर मुस्कान झलकी, अभी तक मैं उन्हें हिम्मत बँधा रहा था कि किसी न किसी प्रकार साथ जाऊँगा। अब वे बोल रही थीं आपके जाने की जरूरत नहीं, आप सब यहाँ रहेंगे तो बच्चों को स्कूल नहीं छोड़ना होगा। वहाँ अच्छे स्कूल नहीं हैं। मैं सब कर लूँगी। आप अपना और बच्चों का ध्यान रखना, समय पर दवाई लेना। माँ ने साथ चलने को कहा तो बोलीं आप यहाँ रहेंगी तो मुझे इन सबकी चिंता न होगी। मैं आपकी बहू हूँ, सब सम्हाल लूँगी।
मैं अवाक देख रहा था विचारों का स्थानान्तरण।
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मुक्तक
काश! आँखो में नींद आ जाए
तू जो सपनों में आके छा जाए
फिर मुझे जागने की चाह नहीं
तू जो लोरी मुझे सुना जाए
२४.१.२०१६
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बसंत पंचमी
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महत्व
भारत में जीवन के हर पहलू को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है | और इसी आधार पर पूजा - उपासना की व्यवस्था की गयी है | अगर धन के लिए दीपावली पर माता लक्ष्मी की उपासना की जाती है तो नेघा और बुद्धि के लिए माघ शुक्ल पंचमी को माता सरस्वती की भी उपासना की जाती है | धार्मिक और प्राकृतिक पक्ष को देखे तो इस समय व्यक्ति का मन अत्यधिक चंचल होता है | और भटकाव बड़ता है | इसीलिए इस समय विद्याऔर बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की उपासना से हम अपने मन को नियंत्रित और बुद्धि को कुशाग्र करते है | वर्तमान संदर्भो की बात करे तो आजकल विधार्थी भटकाव से परेशान है | पढाई में एकाग्रता की समस्या है | और चीजो को लम्बे समय तक याद नहीं रख सकते है , इस दशा में बसंत पंचमी को की गयी माँ सरस्वती की पूजा से न केवल एकाग्रता में सुधार होगा बल्कि बेहतर यादाश्त और बुद्धि की बदोलत विधार्थी परीक्षा में बेहतरीन सफलता भी पायेंगे | विधार्थियों के आलावा बुद्धि का कार्य करने वाले तमाम लोग जैसे पत्रकार , वकील , शिक्षक आदि भी इस दिन का विशेष लाभ ले सकते है |
राशी अनुसार पूजन विधान :-
मेष :- स्वभावत: चंचल राशी होती है | इसीलिए अक्सर इस राशी के लोगो को एकाग्रता की समस्या परेशान करती है | बसंत पंचमी को सरस्वती को लाल गुलाब का पुष्प और सफ़ेद तिल चढ़ा दे | इससे चंचलता और भटकाव से मुक्ति मिलेगी |
वृष:- गंभीर और लक्ष के प्रति एकाग्र होते है परन्तु कभी कभी जिद और कठोरता उनकी शिक्षा और करियर में बाधा उत्पन्न कर देती है | चूँकि इनका कार्य ही आम तौर पर बुद्धि से सम्बन्ध रखने वाला होता है , अत : इनको नीली स्याही वाली कलम और अक्षत सरस्वती को समर्पित करना चाहिए | ताकि बुद्धि सदेव नियंत्रित रहती है |
मिथुन : - बहुत बुद्धिमान होने के बावजूद भ्रम की समस्या परेशान करती है | इसीलिए ये अक्सर समय पर सही निर्णय नहीं ले पाते | बसंत पंचमी के दिन सरस्वती को सफ़ेद पुष्प और पुस्तक अर्पित करने से भ्रम समाप्त हो जाता है एवं बुद्धि प्रखर होती है |
कर्क : - इन पर ज्यादातर भावनाए हावी हो जाती है | यही समस्या इनको मुश्किल में डाले रखती है | अगर बसंत पंचमी के दिन सरस्वती को पीले फूल और सफ़ेद चन्दन अर्पित करे तो भावनाए नियंत्रित कर सफलता पाई जा सकती है |
सिंह : - अक्सर शिक्षा में बदलाव व् बाधाओ का सामना करना पड़ता है | ये योग्यता के अनुसार सही जगह नहीं पहुच पाते है शिक्षा और विधा की बाधाओ से निपटने के लिए सरस्वती को पीले फूल विशेष कर कनेर और धान का लावा अर्पित करना चाहिए |
कन्या : - अक्सर धन कमाने व् स्वार्थ पूर्ति के चक्कर में पड़ जाते है | कभी कभी बुद्धि सही दिशा में नहीं चलती है | बुद्धि सही दिशा में रहे इसके लिए सरस्वती को कलम और दावत के साथ सफ़ेद फूल अर्पित करना चाहिए |
तुला :- जीवन में भटकाव के मौको पर सबसे जल्दी भटकने वाले होते है | चकाचोंध और शीघ्र धन कमाने की चाहत इसकी शिक्षा और करियर में अक्सर बाधा ड़ाल देती है | भटकाव और आकर्षण से निकल कर सही दिशा पर चले इसके लिए नीली कमल और शहद सरस्वती को अर्पित करे |
वृश्चिक : - ये बुद्धिमान होते है | लेकिन कभी कभार अहंकार इनको मुश्किल में ड़ाल देता है | अहंकार और अति आत्म विश्वास के कारण ये परीक्षा और प्रतियोगिता में अक्सर कुछ ही अंको से सफलता पाने से चुक जाते है | इस स्थिति को बेहतर करने के लिए सरस्वती को हल्दी और सफ़ेद वस्त्र अर्पित करना चाहिए |
धनु : - इस राशी के लोग भी बुद्धिमान होते है | कभी कभी परिस्थितिया इनकी शिक्षा में बाधा पहुचाती है | और शिक्षा बीच में रुक जाती है | जिस कारण इन्हें जीवन में अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है | इस संघर्ष को कम करने के लिए इनको सरस्वती को रोली और नारियल अर्पित करना चाहिए |
मकर : - अत्यधिक मेहनती होते है | पर कभी कभी शिक्षा में बाधाओ का सामना करना पड़ता है | और उच्च शिक्षा पाना कठिन होता है | शिक्षा की बाधाओ को दूर करके उच्च शिक्षा प्राप्ति और सफलता प्राप्त करने के लिए इनको सरस्वती को चावल की खीर अर्पित करनी चाहिए |
कुम्भ :- अत्यधिक बुद्धिमान होते है | पर लक्ष के निर्धारण की समस्या इनको असफलता तक पंहुचा देती है | इस समस्या से बचने के लिए और लक्ष पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए इसको बसंत पंचमी के दिन सरस्वती को मिश्री का भोग चडाना चाहिए |
मीन : - इस राशी के लोग सामान्यत : ज्ञानी और बुद्धिमान होते है | पर इनको अपने ज्ञान का बड़ा अहंकार होता है | और यही अहंकार इनकी प्रगति में बाधक बनता है | अहंकार दूर करके जीवन में विनम्रता से सफलता प्राप्त करने के लिए इनको बसंत पंचमी के दिन सरस्वती को पंचामृत समर्पित करना चाहिए |
बसंत पंचमी के दिन अगर हर राशी के जातक इन सरल उपायों को अपनाये तो उनको बागिस्वरी , सरस्वती से नि: संदेह विधा और बुद्धि का वरदान मिलेगा |
कैसे करे सरस्वती आराधना : -
बसंत पंचमी के दिन प्रात: कल स्नान करके पीले वस्त्र धारण करे | सरस्वती का चित्र स्थापित करे यदि उनका चित्र सफ़ेद वस्त्रो में हो तो सर्वोत्तम होगा | माँ के चित्र के सामने घी का दीपक जलाए और उनको विशेष रूप से सफ़ेद फूल अर्पित करे | सरस्वती के सामने बैठ " ऍ सरस्वतये नम : " का कम से कम १०८ बार जप करे | एसा करने से विधा और बुद्धि का वरदान मिलेगा तथा मन की चंचलता दूर होगी |
पूजा अर्चना और उसके लाभ : -
लाल गुलाब , सफ़ेद तिल अर्पित करे तथा अक्षत चढाए |
सफ़ेद पुष्प , पुस्तक अर्पित करे |
पीले फूल , सफ़ेद चन्दन अर्पित करे |
पीले पुष्प , धान का लावा चढाए |
कलम - दवात , सफ़ेद फूल अर्पित करे |
नीली कलम , शहद अर्पित करे |
हल्दी और सफ़ेद वस्त्र अर्पित कर रोली , नारियल अर्पित करे |
चावल की खीर और मिश्री का भोग अर्पित करे |
लाभ : -
मन की स्थिरता और ताजगी महसूस होगी तथा बुद्धि विवेक नियंत्रित होंगे |
मन की कशमकश ख़त्म होगी बुद्धि प्रखर होगी |
भावनाए काबू में रहेगी , सफलता मिलेगी |
शिक्षा में सफलता , बुद्धि में वृद्धि होगी |
बुद्धि तेज , सोच सकारात्मक होगी |
सही दिशा मिलेगी |
अहंकार से मुक्ति मिलेगी |
संघर्ष और बाधाऍ कम होगी |
एकाग्रचित्तता में बढ़ोतरी होगी |
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स्तवन:
शरणागत हम
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शरणागत हम
चित्रगुप्त प्रभु!
हाथ पसारे आये
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अनहद अक्षय अजर अमर हे!
अमित अभय अविजित अविनाशी
निराकार-साकार तुम्हीं हो
निर्गुण-सगुण देव आकाशी
पथ-पग लक्ष्य विजय यश तुम हो
तुम मत मतदाता प्रत्याशी
तिमिर मिटाने
अरुणागत हम
द्वार तिहारे आये
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वर्ण जात भू भाषा सागर
सुर नर असुर समुद नद गागर
ताण्डवरत नटराज ब्रम्ह तुम
तुम ही बृजरज के नटनागर
पैगंबर ईसा गुरु बनकर
तारो अंश 'सलिल' हे भास्वर!
आत्म जगा दो
चरणागत हम
झलक निहारें आये
२४-१-२०१५
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हास्य सलिला:
प्यार
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चौराहे पर खड़े हुए थे लालू हो ग़मगीन
कालू पूछे: 'का हुआ?, काहे लागत दीन??
' का बतलाऊँ तोहरी भउजी का परताप?
चाह करूँ वरदान की, बे देतीं अभिशाप'
'वर तुम, वधु बे किस तरह फिर देंगी वरदान?
बतलाओ काहे किया भउजी का गुणगान?'
लालू बोले: 'रूप का मैंने किया बखान'
फिर बोला: 'प्रिय! प्यार का प्यासा हूँ मैं खूब.'
मेरे मुँह पर डालकर पानी बोलीं: 'डूब"
'दाँत निपोर मजाक कह लेते तुम आनंद
निकट न आ ठेंगा दिखा बे करती हैं तंग'

२४.१.२०१४