मतगयंद सवैया
[विधान: ७ भगण + २ गुरु = ७ (२११) २२]
२३ वर्णिक
३२ मात्रिक
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लाल गुलाल मलें न मलें, शिव सोच रहे लख गौर उमा को।
रंग-बिरंग करें न करें, बिन सोच भीगा ।
भव्य लगे मधुमास विभो! मधु लेकर मूर्त बहार चली है।
मूर्त बनी जिमि काम रति!सब अंग अनंग बिसार चली है।
मतगयंद सवैया
काम कमान लिए उर में रतिके! करने अभिसार चली है।
सिक्त हुआ रस से मदने!रति लेकर काम कटार चली है।
भव्य लगे मधुमास विभो! मधु लेकर मूर्त बहार चली है।
मूर्त बनी जिमि काम रति!सब अंग अनंग बिसार चली है।
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