कार्यशाला
सुनीता शानू
वो मुझे इस तरह मनाता है
रूठ जाऊँ तो रूठ जाता है
संजीव सलिल
मैं अगर झट न मान जाऊँ तो
काँच जैसे वो टूट जाता है
२.६.२०१६
***
सुनीता शानू
वो मुझे इस तरह मनाता है
रूठ जाऊँ तो रूठ जाता है
संजीव सलिल
मैं अगर झट न मान जाऊँ तो
काँच जैसे वो टूट जाता है
२.६.२०१६
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