कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

दोहा सलिला

दोहा सलिला
आभा जब आ भा कहे, तितली रंग बिखेर
कहे कली से खिल सखी, अब न अधिक कर देर
*
कमलमुखी ने हुलसकर, जब देखा निज रूप
लहरें संजीवित हुई,  सलिल हो गया भूप 
*
अंजुरी में ले सलिल को, लिया अधर ने चूम
हम भी कह मचले नयन, लगे मचाने धूम
*
चरण चम्पई सलिल छू, सिहरे ठिठके तीर
रतनारे नयना उठे, मिले चुभ गया तीर
*
सलिल संग संजीव हो, पुलकित हुई तरंग
उछल-कूद अल्हड करें मानों पी ली भंग
*
संजीव
२६-७-२०१९
७९९९५५९६१८     

कोई टिप्पणी नहीं: