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बुधवार, 31 जुलाई 2019

प्रेमचन्द

मुंशी प्रेमचन्द (1923) कहिन 
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"खेल के मैदान में वही शख्स तारीफ का मुस्तहक ( अधिकारी )होता है जो जीत से फूलता नहीं, हार से रोता नहीं, जीते तब भी खेलता है, हारे तब भी खेलता है।------हमारा काम तो सिर्फ खेलना है, खूब दिल लगाकर खेलना, खूब जी तोड़ कर खेलना, अपने को हार से इस प्रकार बचाना कि हम कोनैन ( इहलोक -परलोक )की दौलत खो बैठेंगे, लेकिन हारने के बाद गर्द झाड़कर खड़े हो जाना चाहिए और फिर खम ठोककर हरीफ से कहना चाहिए कि एक बार और ।"

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