कार्यशाला : घनाक्षरी
माँ कोख में न मारिए, गोद में ले दुलारिए, प्यार से पुचकारिए, बेटी उपहार है। सजाती घर आँगन, बहाती रस पावन, लगती मनभावन, घर की शृंगार है। तपस्वी साधिका वह, श्याम की राधिका वह ब्रज की वाटिका वह, बरसाती प्यार है दो कुल की शान बेटी, देश की गुमान बेटी, माँ की अभिमान बेटी अमि रसधार है।
माँ कोख में न मारिए, गोद में ले दुलारिए, प्यार से पुचकारिए, बेटी उपहार है। सजाती घर आँगन, बहाती रस पावन, लगती मनभावन, घर की शृंगार है। तपस्वी साधिका वह, श्याम की राधिका वह ब्रज की वाटिका वह, बरसाती प्यार है दो कुल की शान बेटी, देश की गुमान बेटी, माँ की अभिमान बेटी अमि रसधार है।
*
विमर्श: सरस्वती कुमारी रचित उक्त मनहरण
घनाक्षरी में ८-८-८-७ का वर्ण संतुलन होते हुए
भी लय का अभाव है। उनकर आग्रह पर कुछ
बदलाव के साथ इसे पढ़िए और परिवर्तनों का
कारण व प्रभाव समझिये।
कोख में न मारिए माँ, गोद में दुलारिए भी,
प्यार से पुकार कहें, बेटी उपहार है।
शोभा घर-अँगना की, बहे स्नेह सलिला सी,
लगे मनभावन, ये घर का शृंगार है।
तापसी है साधिका है, गोकुल की राधिका है,
शिवानी भवानी भी है, बरसाती प्यार है।
दो कुलों की शान बेटी, देश का गुमान बेटी,
माँ की अभिमान बेटी, अमि रसधार है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें