द्विपदी / दोहे
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गौर गुरु! मीत की बातों पे करो
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गौर गुरु! मीत की बातों पे करो
दिल किसी का दुखाना ठीक नहीं
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श्री वास्तव में हो वहीं, जहां रहे श्रम साथ
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श्री वास्तव में हो वहीं, जहां रहे श्रम साथ
जीवन में ऊन्चा रखे श्रम ही हरदम माथ
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खरे खरा व्यव्हार कर, लेते हैं मन जीत
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खरे खरा व्यव्हार कर, लेते हैं मन जीत
जो इन्सान न हो खरे, उनसे करें न प्रीत.
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गौर करें मन में नहीं, 'सलिल' तनिक हो मैल
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गौर करें मन में नहीं, 'सलिल' तनिक हो मैल
कोल्हू खीन्चे द्वेष का, इन्सां बनकर बैल
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काया की माया नहीं जिसको पाती मोह,
वही सही कायस्थ है, करे गलत से द्रोह.
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