दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु
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बुधवार, 2 दिसंबर 2020
कार्यशाला- एक मुक्तक
कार्यशाला- एक मुक्तक * तुम एक सुरीला मधुर गीत, मैं अनगढ़ लोकगीत सा हूँ तुम कुशल कलात्मक अभिव्यंजन, मैं अटपट बातचीत सा हूँ - फौजी तुम वादों को जुमला कहतीं, मैं जी भर उन्हें निभाता हूँ तुम नेताओं सी अदामयी, मैं निश्छल बाल मीत सा हूँ . - सलिल ****
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