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गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

नवगीत आओ! तनिक बदलें

नवगीत 
आओ! तनिक बदलें
*
प्रिय! मिलन, सहकार के
नवगीत कुछ रच लें।
*
सिर्फ स्यापा ही नहीं,
मुस्कान भी सच है।
दर्द-पीड़ा है अगर, मृदु
हास भी सच है।।
है विसंगति अगर तो
संगति छिपी उसमें-
सम्हल कर चलते चलें,
लड़कर नहीं फसलें।।
समय है बदलाव का,
आओ! तनिक बदलें।
प्रिय! मिलन, सहकार के
नवगीत कुछ रच लें।
*
बैठ ए. सी. में अगर
लू लिख रहे झूठी।
समझ लें हिम्मत किसी की
पढ़ इसे टूटी।
कौन दोषी कवि कहो
पूछे कलम तुझसे?
रोकते क्यों हौसले
नव गीत में मचलें?
पार कर सरहद न ग़ज़लें
गीत में धँस लें।।
प्रिय! मिलन, सहकार के
नवगीत कुछ रच लें।
*
व्यंग्य में, लघुकथा में,
क्यों सच न भाता है?
हो रुदाली मात्र कविता,
क्यों सुहाता है?
मनुज के उत्थान का सुख
भोगते हो तुम-
चाहते दुःख मात्र लिखकर
देश को ठग लें।
हैं न काबिल जो वही
हर बात का यश लें।
प्रिय! मिलन, सहकार के
नवगीत कुछ रच लें।
*
१६-१२-२०१८

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