ध्वनि और भाषा :
सृष्टि की उत्पत्ति नाद अथवा ध्वनि से, सूर्य से नि:सृत ध्वनि तरंगों का रेखांकन कर उसे ॐ के आकार का,
व्याकरण और पिंगल का विकास
गीति काव्य में छंद-
गणित के समुच्चय सिद्धांत (सेट थ्योरी) तथा क्रमचय और समुच्चय (परमुटेशन-कॉम्बिनेशन) का प्रयोग कर दोनों वर्गों में छंदों की संख्या का निर्धारण
वैदिक साहित्य में ऋग्वेद एवं सामवेद की ऋचाएँ गीत का आदि रूप हैं। गीत की दो अनिवार्य शर्तें विशिष्ट सांगीतिक लय तथा आरोह-अवरोह अथवा गायन शैली हैं। कालांतर में 'लय' के निर्वहन हेतु छंद विधान और अंत्यानुप्रास (तुकांत-पदांत) का अनुपालन संस्कृत काव्य की वार्णिक छंद परंपरा
वैदिक साहित्य में ऋग्वेद एवं सामवेद की ऋचाएँ गीत का आदि रूप हैं। गीत की दो अनिवार्य शर्तें विशिष्ट सांगीतिक लय तथा आरोह-अवरोह अथवा गायन शैली हैं। कालांतर में 'लय' के निर्वहन हेतु छंद विधान और अंत्यानुप्रास (तुकांत-पदांत) का अनुपालन संस्कृत काव्य की वार्णिक छंद परंपरा
छंदमुक्तता और छंद हीनता
उर्दू काव्य विधाओं में छंद
उर्दू हिंदी का वह भाषिक रूप है जिसमें अरबी-फ़ारसी शब्दों के साथ-साथ मात्र गणना की पद्धति (तक़्ती) का प्रयोग किया जाता है जो अरबी लोगों द्वारा शब्द उच्चारण के समय पर आधारित हैं। पंक्ति भार गणना की भिन्न पद्धतियाँ, नुक्ते का प्रयोग, काफ़िया-रदीफ़ संबंधी नियम आदि ही हिंदी-उर्दू रचनाओं को वर्गीकृत करते हैं। हिंदी में मात्रिक छंद-लेखन को व्यवस्थित करने के लिये प्रयुक्त गण के समान, उर्दू बहर में रुक्न का प्रयोग किया जाता है। उर्दू गीतिकाव्य की विधा ग़ज़ल की ७ मुफ़र्रद (शुद्ध) तथा १२ मुरक्कब (मिश्रित) कुल १९ बहरें मूलत: २ पंच हर्फ़ी (फ़ऊलुन = यगण यमाता तथा फ़ाइलुन = रगण राजभा ) + ५ सात हर्फ़ी (मुस्तफ़इलुन = भगणनगण = भानसनसल, मफ़ाईलुन = जगणनगण = जभानसलगा, फ़ाइलातुन = भगणनगण = भानसनसल, मुतफ़ाइलुन = सगणनगण = सलगानसल तथा मफऊलात = नगणजगण = नसलजभान) कुल ७ रुक्न (बहुवचन इरकॉन) पर ही आधारित हैं जो गण का ही भिन्न रूप है। दृष्टव्य है कि हिंदी के गण त्रिअक्षरी होने के कारण उनका अधिकतम मात्र भार ६ है जबकि सप्तमात्रिक रुक्न दो गानों का योग कर बनाये गये हैं। संधिस्थल के दो लघु मिलाकर दीर्घ अक्षर लिखा जाता है। इसे गण का विकास कहा जा सकता है।
वर्णिक छंद मुनिशेखर - २० वर्ण = सगण जगण जगण भगण रगण सगण लघु गुरु
चल आज हम करते सुलह मिल बैर भाव भुला सकें
बहरे कामिल - मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
पसे मर्ग मेरे मज़ार परजो दिया किसी ने जला दिया
उसे आह दामने-बाद ने सरे-शाम से ही बुझा दिया
उक्त वर्णित मुनिशेखर वर्णिक छंद और बहरे कामिल वस्तुत: एक ही हैं।
अट्ठाईस मात्रिक यौगिक जातीय विधाता (शुद्धगा) छंद में पहली, आठवीं और पंद्रहवीं मात्रा लघु तथा पंक्त्यांत में गुरु रखने का विधान है।
कहें हिंदी, लिखें हिंदी, पढ़ें हिंदी, गुनें हिंदी
न भूले थे, न भूलें हैं, न भूलेंगे, कभी हिंदी
हमारी थी, हमारी है, हमारी हो, सदा हिंदी
कभी सोहर, कभी गारी, बहुत प्यारी, लगे हिंदी - सलिल
*
हमें अपने वतन में आजकल अच्छा नहीं लगता
हमारा देश जैसा था हमें वैसा नहीं लगता
दिया विश्वास ने धोखा, भरोसा घात कर बैठा
हमारा खून भी 'सागर', हमने अपना नहीं लगता -रसूल अहमद 'सागर'
अरकान मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन से बनी उर्दू बहर हज़ज मुसम्मन सालिम, विधाता छंद ही है। इसी तरह अन्य बहरें भी मूलत: छंद पर ही आधारित हैं।
रुबाई के २४ औज़ान जिन ४ मूल औज़ानों (१. मफ़ऊलु मफ़ाईलु मफ़ाईलु फ़अल, २. मफ़ऊलु मफ़ाइलुन् मफ़ाईलु फ़अल, ३. मफ़ऊलु मफ़ाईलु मफ़ाईलु फ़ऊल तथा ४. मफ़ऊलु मफ़ाइलुन् मफ़ाईलु फ़ऊल) से बने हैं उनमें ५ लय खण्डों (मफ़ऊलु, मफ़ाईलु, मफ़ाइलुन् , फ़अल तथा फ़ऊल) के विविध समायोजन हैं जो क्रमश: सगण लघु, यगण लघु, जगण २ लघु / जगण गुरु, नगण तथा जगण ही हैं। रुक्न और औज़ान का मूल आधार गण हैं जिनसे मात्रिक छंद बने हैं तो इनमें यत्किंचित परिवर्तन कर बनाये गये (रुक्नों) अरकान से निर्मित बहर और औज़ान छंदहीन कैसे हो सकती हैं?
औज़ान- मफ़ऊलु मफ़ाईलुन् मफ़ऊलु फ़अल
सगण लघु जगण २ लघु सगण लघु नगण
सलगा ल जभान ल ल सलगा ल नसल
इंसान बने मनुज भगवान नहीं
भगवान बने मनुज शैवान नहीं
धरती न करे मना, पाले सबको-
दूषित न करो बनो हैवान नहीं -सलिल
छंद के तत्व :
छंद शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता है। 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। निश्चित चरण, वर्ण, मात्रा, यति, गति, तुक, गण, आदि के द्वारा नियोजित पद्य रचना को छंद कहते है।
छंद के अंग
मात्रा
वर्ण-मात्रा
पद-चरण
यति- गति
पदांत-तुकांत
गण
मात्रा : किसी ध्वनि के उच्चारण में जो समय लगता है, उसकी सबसे छोटी इकाई को मात्रा कहते है। मात्राएँ स्वरों की होती है, व्यंजनों की नही। वर्ण का अर्थ अक्षर से है, इसके दो भेद होते है। ह्रस्व स्वर जैसे ‘अ’ की एक मात्रा और दीर्घस्वर की दो मात्राएँ मानी जाती है । यदि ह्रस्व स्वर के बाद संयुक्त वर्ण, अनुस्वार अथवा विसर्ग हो तब ह्रस्व स्वर की दो मात्राएँ मानी जाती है । पाद का अन्तिम ह्रस्व स्वर आवश्यकता पडने पर गुरु मान लिया जाता है ।
वर्ण
(१) ह्रस्व या लघु वर्ण-
जिन वर्णो के उच्चारण में कम समय लगता है, उन्हें ह्रस्व वर्ण कहते है। इनकी एक मात्रा होती है। इनका चिह्न '।' है। अ, इ, उ तथा ऋ लघु वर्ण है।
(२ )दीर्घ या गुरु वर्ण-
जिन वर्णो के उच्चारण में अधिक समय लगता है, उन्हें दीर्घ वर्ण कहते है। इनकी दो मात्राएँ होती है तथा चिह्न 'ऽ' है। आ, ई, ऊ, औ आदि दीर्घ वर्ण है।
पद : छंद में प्रयुक्त पंक्तियों को पद कहते हैं। दोहा को द्विपदी कहा जाता है चूंकि दोहा दो पंक्तियों से बनता है।
चरण : प्रत्येक पद के मध्य में जहाँ विराम निर्धारित होता है उसके पहले या बाद के भाग को चरण कहते हैं।
पाद में वर्णों या मात्राओं की संख्या निश्चित होती हैं। चरण दो प्रकार के होते हैं। साधारणतः छंद के चार चरण होते है- पहले, तीसरे, पांचवे आदि चरण 'विषम' चरण तथा दूसरे, चौथे छठवें आदि चरण को 'सम' चरण कहते हैं।
यति- छंद पढ़ते समय उच्चारण की सुविधा के लिए तथा लय को ठीक रखने के लिए कहीं-कहीं विराम लेना पड़ता है इसी विराम या ठहराव को यति कहते है।
गति- छंद की लय को गति कहते है।
तुक- छंद के चरणों के अंत मे समान वर्णो की आवृत्ति को तुक कहते है
गण-
संख्या, क्रम तथा गण- छंद में मात्राओं और वर्णो की गिनती को संख्या कहते है तथा छंद में लघु वर्ण और दीर्घ वर्ण की व्यवस्था को क्रम कहते है
तीन वर्णो के समूह को गण कहते है। इनकी संख्या आठ निश्चित की गई है। इनके लक्षण और तालिका निम्न है।
गणचिह्नउदाहरणप्रभाव
यगण (य) ।ऽऽ नहाना, सवेरा शुभ
मगण (मा) ऽऽऽ आजादी, नानाजी शुभ
तगण (ता) ऽऽ। चालाक, आकार अशुभ
रगण (रा) ऽ।ऽ पालना, केतकी अशुभ
जगण (ज) ।ऽ। करील, नरेश अशुभ
भगण (भा) ऽ।। बादल, गायक शुभ
नगण (न) ।।। कमल शुभ
सगण (स) ।।ऽ कमला, रचना अशुभ
(1)मात्रिक छंद- यह छंद मात्रा की गणना पर आधारित होता है, इसलिए इसे मात्रिक छंद कहा जाता है। दोहा, रोला, सोरठा, चौपाई, हरिगीतिका, छप्पय आदि प्रमुख मात्रिक छंद है।
(2) वर्णिक छंद- जिन छन्दों में केवल वर्णो की संख्या और नियमो का पालन किया जाता है, वे वर्णिक छंद कहलाते है। घनाक्षरी, रूपघनक्षरी, देवघनाक्षरी, मुक्तक, दण्डक आदि वर्णिक छंद है
(3) उभय छंद- जिन छन्दों में मात्र और वर्ण दोनी की समानता एक साथ पाई जाती है, उन्हें उभय छंद कहते है।
(4) मुक्तक छंद- इन छन्दों को स्वच्छंद छंद भी कहा जाता है, इनमे मात्रा और वर्ण की संख्या निश्चित नही होती है।
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