अभिनव प्रयोग 
त्रिपदिक मुक्तिका 
*
निर्झर कलकल बहता 
किलकिल न करो मानव 
कहता, न तनिक सुनता। 
*
नाहक ही सिर धुनता 
सच बात न कह मानव 
मिथ्या सपने बुनता। 
*
जो सुन नहीं माना 
सच कल ने बतलाया 
जो आज नहीं गुनता। 
*
जिसकी जैसी क्षमता 
वह लूट खा रहा है 
कह कैसे हो समता?
*
बढ़ता न कभी कमता 
बिन मिल मिल रहा है 
माँ का दुलार-ममता। 
***
संजीव, ७९९९५५९६१८ 
२-१२-२०१८ 
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