प्रतिभा
संजीव
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प्रतिभा की प्रति भा रही, मन में चुभता शूल
प्रतिभा की प्रति भा रही, मन में चुभता शूल
हाय सूद प्यारा अधिक, हुआ उपेक्षित मूल
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गिरिधारी सिंह गह रहे, गए बाँसुरी भूल
राधा निकट न आ रहीं, हेरे जमुना धूल
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रहा न आरक्षण बिना, प्रतिभा का कुछ मोल
अवसर है उसके लिए, जो क्रय कर ले तोल
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भाई-भतीजावाद है, खुला हुआ बाजार
प्रतिभा के गाहक नहीं, सत्य करो स्वीकार
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अँधा बाँटे रेवड़ी, चीन्ह-चीन्ह कर रोज
प्रतिभा क्यों कृष्णा हुई, कौन करेगा खोज?
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२-१२-२०२०
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