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रविवार, 6 दिसंबर 2020

दोहा दुनिया

दोहा दुनिया
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जो चाहें वह बेच दें, जब चाहे अमिताभ
अच्छा है जो बच गए, हे बच्चन अजिताभ
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हे माँ! वर दे टेर सुन, हुआ करिश्मा आज
हेमा से हेमा कहे, डगमग तेरा ताज
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हैं तो वे धर्मेन्द्र पर, बदल लिया निज धर्म
है पत्थर तन में छिपा, मक्खन जैसा मर्म
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नूतन है हर तनूजा, रखे करीना याद
जहाँ जन्म ले बिपाशा, हो न वहाँ आबाद
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नयनों में काजोल भर, हुई शबाना मौन
शबनम की बूँदें झरीं, कहो पी गया कौन?
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जय ललिता की बोलिए, शंकर रहें प्रसन्न
कहें जय किशन अगर तो, हो संगीत प्रसन्न
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अमिताभ = बहुत आभायुक्त, अजिताभ = जिसकी आभा अजेय हो, करिश्मा =चमत्कार, हेमा = धरती, सोना, धर्मेन्द्र = परम धार्मिक, नूतन = नयी, तनूजा = पुत्री, करीना = तरीका,बिपाशा = नदी, काजोल = काजल, शबाना = रात, शबनम = ओस, जय ललिता = पार्वती की जय,जय किशन = कृष्ण की जय
६-१२-२०१६

1 टिप्पणी:

Achary Pratap ने कहा…

अद्भुत सृजन आचार्यवर
।।सादर नमन।।