व्यवस्थापक - अंजू खरबंदा
११-१२--२०२०, अपराह्न १४.२०
काव्य रचना संगोष्ठी : विषय - अभिलाषा
काव्य रचना संगोष्ठी : विषय - अभिलाषा
संचालक - सदानंद कवीश्वर
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त्वरित प्रतिक्रिया :
१. निशि शर्मा 'जिज्ञासु'
अभिलाषा जिज्ञासु रहे, निशि-दिन हो साधक
पूछ रही 'को विद?', कोविद भी \सलिल' न बाधक
शर्मा चुप होती बतियाती, निर्भय रब से-
जी भर कविता सुने-सुना, शारद आराधक
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२. पदम गोधा
सुधियों की पावस अभिलाषा, पद्म-पुष्प सम खिल पाए
पनघट फिर आबाद हो सके, दिल से मिल दिल खिल पाए
गोधा जोधा शब्द-शस्त्र संधान करे, मन छू जाए-
संजीवित संजीवनी कविता, ह्रदय ह्रदय में बस जाए
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३. गीता चौबे 'गूँज'
'गूँज' गुँजा गीता की अविचल
अभिलाषा जीवन-पथ पर चल
मधुर मिलन हर द्वैत मिटा दे -
सुख-दुःख सह चलते रह अविचल
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४. पूनम झा
अभिलाषा पूनम चंदा सी जगमग-जगमग
निर्झर सी झरझर झरती धरती पर धर डग
दिल में बसती सुगम बनाती है जीवन को -
खट्टे-मीठे की सहभागी दिवस-रात जग
५. मनोरमा जैन 'पाखी', भिंड
अभिलाषा बच्चे की जिद सी हो मनोरमा मन भाती है
पाखी बनकर नीलगगन में झटपट फुरफुर उड़ जाती है
मजबूरी की बेड़ी तोड़े, सपनों की पायल खनकाती
झाँक 'सलिल' में दर्पण देखे दिल बस जाती है
६. शेख शहजाद हुसैन
दिल में हँस दें जगह कोशिश-अभिलाषा को
लोकतंत्र में गंगो-जमुनी परिभाषा को
एक पक्षीय न हो चिंतन, सब सबके हित
साधें; अंकुरित करें सपनों-नव आशा को
७. पूनम कतरियार
मैं भारत, भास्कर सम हरता हूँ अँधियारा
अभिलाषा पूनम बन काटूँ तम की कारा
कजरी चैता आल्हा होरी बंबुलिया गा
नाप रहा ब्रह्माण्ड; भा रहा मंगल द्वारा
८. सपना सक्सेना दत्ता
अपना सपना माटी-चंदन, शारद-वंदन
अभिलाषा संजीवित हो भारत नंदन वन
नीर-क्षीर परिवेश; मृदुल हो बोली-भाषा
हिन्द और हिंदी का हो युग-युग अभिनन्दन
९. रमेश सेठी
अभिलाषा नभ-चंदा-तारा; मन वसुधा हो करे नमन
रमा रमा में जग रमेश को बिसरा; सुख का करे जतन
सृजन सलिल संजीवित नदिया; कविता कालपात्र जैसी
प्रेम सुधा रंग रँगी हुई है; बिंदिया-निंदिया छंद शास्त्र सी
१०. भारती नरेश पाराशर
जो पर्दे के पीछे उसको करे अनावृत्त हँस अभिलाषा
सागर के पानी से कह दे 'आ तुझमें दूँ घोल बताशा'
नर नरेश मिल करें आरती, कहें भारती जगवाणी हो
सरल तरल हो सलिल सरीखी; कविता मधुरा कल्याणी हो
११. संध्या गोयल 'सुगम्या'
सतरंगी संध्या अभिलाषा
पल में तोला पल में माशा
कभी सुरम्या, कभी सुगम्या-
जीवन की सार्थक परिभाषा
१२. विभा तिवारी
आभा विभा प्रभामय अभिलाषा की जय हो
सरसी हरषी विकसी शुभ आशा निर्भय हो
भाग्य विधाता सदय; तमन्ना हर पूरी हो
चुटकी बजा मिटाती दिल में यदि दूरी हो
१३. सरला वर्मा, भोपाल
सरला तरला अभिलाषा तुलसी बिरवे सी
स्वामिन आप भाग्य की; मधुमय शुभ रिश्ते सी
हृदयासन आसीन कह रही लगन न हारे-
मगन जतन सौ करे; आप तकदीर सँवारे
१४. सदानंद कवीश्वर
सदानंद दे-पा, दिल-देहरी दीप जलाती अभिलाषा
सलिल-धार में अंजु सुस्मिता, रंग रँगीली अभिलाषा
बिंदिया-निंदिया; गीत-प्रीत बन, अधर पटल पर सज्जित हो-
साँसों की सरगम संजीवित; कवित-कवीश्वर अभिलाषा
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