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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

दोहा दुनिया

 दोहा दुनिया

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आलम आलमगीर की, मर्जी का मोहताज
मेरे-तेरे बीच में, उसका क्या है काज?
*
नयन मूँद देखूं उसे, जो छीने सुख-चैन
गुम हो जाता क्यों कहो, ज्यों ही खोलूँ नैन
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पल-पल बीते बरस सा, अपने लगते गैर
खुद को भूला माँगता, मन तेरी ही खैर
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साया भी अपना नहीं, दे न तिमिर में साथ
अपना जीते जी नहीं, 'सलिल' छोड़ता हाथ
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रहे हाथ में हाथ तो, उन्नत होता माथ
खुद से आँखे चुराता, मन तू अगर न साथ
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११-१२-२०१६

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