शिवमय दोहे
लोभ, मोह, मद शूल हैं, शिव जी लिए त्रिशूल.
मुक्त हुए, सब को करें, मनुज न करना भूल.
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जो त्रिशूल के लक्ष्य पर, निश्चय होता नष्ट.
बाणासुर से पूछिए, भ्रष्ट भोगता कष्ट.
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तीन लोक रख सामने, रहता मौन त्रिशूल.
अत्याचारी को मिले, दंड हिला दे चूल.
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जर जमीन जोरू 'सलिल', झगड़े की जड़ तीन.
शिव त्रिशूल छोड़े नहीं, भूल अगर संगीन.
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शिव-त्रिशूल से काँपते, देव दनुज नर प्रेत.
जो सम्मुख आया, हुआ शिव प्रहार से खेत.
२२-१२-२०१७
शिव न सहज ही रुष्ट हों, लेकिन सहज प्रसन्न.
रुष्ट सहज, खुश हो न जो, उस सा कौन विपन्न?
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आप अनाहद नाद शिव, जग जाने ओंकार,
जो जपता श्रद्धा सहित, उसके मिटें विकार.
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नंदी बैठा ताल दे, शिव हों नृत्य-विभोर.
लिपट कंठ से झूमता, नागराज कह और.
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शशि सिर पर शशिनाथ के, बैठा ले आनंद.
गणपति रचते नित नए, उमा सुनातीं छ्न्द.
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अमृत-विष का संतुलन, सुख-दुख सह समभाव.
शिव त्रिशूल ले हाथ में, हँसकर करें निभाव.
१९-१२-२०१७
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शिव को बाहर खोज मत, मन के भीतर झाँक.
सत्-सुंदर ही शिवा हैं, आँक सके तो आँक.
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शिवा कार्य-कारण बनें, शिव हों सहज निमित्त.
परि-सम्पूरक जानिए, जैसे हों तन-चित्त.
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शिव तो देहातीत हैं, उन्हें देह मत मान.
शिव से सच कब छिप सका?, तुरत हरें अभिमान.
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शिव भोले भाले दिखें, किंतु चतुर हैं खूब.
हैं भोले भाले लिए, सजग ध्यान में डूब.
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अहंकार गिरि पर बसें, शिव रखकर निज पैर,
अहं गला ममता बना, शिवा रहें निर्वैर.
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१८-१२-२०१७
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