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गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

नवगीत

नवगीत
सड़क पर
.
फ़िर सड़क पर 
भीड़ ने दंगे किए 
.
आ गए पग
भटकते-थकते यहाँ 
छा गए पग 
अटकते-चलते यहाँ 
जाति, मजहब, 
दल, प्रदर्शन, सभाएँ,
सियासी नेता 
ललच नंगे हुए 
.
सो रहे कुछ 
थके सपने मौन हो 
पूछ्ते खुद 
खुदी से, तुम कौन हो?
गएरौंदते जो, 
कहो क्यों चंगे हुए?
.
ज़िन्दगी भागी 
सड़क पर जा रही 
आरियाँ ले 
हाँफ़ती, पछ्ता रही 
तरु न बाकी 
खत्म हैं आशा कुंए 
.
झूमती-गा
सड़क पर बारात जो 
रोक ट्रेफ़िक 
कर रही आघात वो 
माँग कन्यादान 
भिखमंगे हुए 
.
नेकियों को 
बदी नेइज्जत करे 
भेडि.यों से 
शेरनी काहे डरे?
सूर देखें 
चक्षु ही अंधे हुए 
...
संजीव 
३-१२-२०१७ 

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