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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

कुंडलिया, दोहे, नवगीत, मुक्तक, क्षणिका, सवैया, बाल गीत, षट्पदी, लघुकथा

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कुंडलिया 
वादे कर जो भुला दे, वह खोता विश्वास.
ऐसे नेता से नहीं, जनता को कुछ आस.
जनता को कुछ आस, स्वार्थ ही वह साधेगा.
भूल देश-हित दल का हित ही आराधेगा.
सलिल कहे क्यों दल-हित को जनता पर लादे.
वह खोता विश्वास भला दे जो कर वादे 
१९-१२-२०१७ 
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शिवमय दोहे 
लोभ, मोह, मद शूल हैं, शिव जी लिए त्रिशूल.
मुक्त हुए, सब को करें, मनुज न करना भूल.
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जो त्रिशूल के लक्ष्य पर, निश्चय होता नष्ट.
बाणासुर से पूछिए, भ्रष्ट भोगता कष्ट.
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तीन लोक रख सामने, रहता मौन त्रिशूल.
अत्याचारी को मिले, दंड हिला दे चूल.
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जर जमीन जोरू 'सलिल', झगड़े की जड़ तीन.
शिव त्रिशूल छोड़े नहीं, भूल अगर संगीन.
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शिव-त्रिशूल से काँपते, देव दनुज नर प्रेत.
जो सम्मुख आया, हुआ शिव प्रहार से खेत.
२२-१२-२०१७
शिव न सहज ही रुष्ट हों, लेकिन सहज प्रसन्न.
रुष्ट सहज, खुश हो न जो, उस सा कौन विपन्न?
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आप अनाहद नाद शिव, जग जाने ओंकार,
जो जपता श्रद्धा सहित, उसके मिटें विकार.
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नंदी बैठा ताल दे, शिव हों नृत्य-विभोर.
लिपट कंठ से झूमता, नागराज कह और. 
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शशि सिर पर शशिनाथ के, बैठा ले आनंद.
गणपति रचते नित नए, उमा सुनातीं छ्न्द.
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अमृत-विष का संतुलन, सुख-दुख सह समभाव.
शिव त्रिशूल ले हाथ में, हँसकर करें निभाव.
१९-१२-२०१७ 
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शिव को बाहर खोज मत, मन के भीतर झाँक.
सत्-सुंदर ही शिवा हैं, आँक सके तो आँक.
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शिवा कार्य-कारण बनें, शिव हों सहज निमित्त.
परि-सम्पूरक जानिए, जैसे हों तन-चित्त.
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शिव तो देहातीत हैं, उन्हें देह मत मान.
शिव से सच कब छिप सका?, तुरत हरें अभिमान.
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शिव भोले भाले दिखें, किंतु चतुर हैं खूब.
हैं भोले भाले लिए, सजग ध्यान में डूब.
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अहंकार गिरि पर बसें, शिव रखकर निज पैर,
अहं गला ममता बना, शिवा रहें निर्वैर.
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१८-१२-२०१७ 
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नवगीत:
अनेक वर्णा पत्तियाँ हैं
शाख पर तो क्या हुआ?
अपर्णा तो है नहीं अमराई
सुख से सोइये
बज रहा चलभाष सुनिए
काम अपना छोड़कर
पत्र आते ही कहाँ जो रखें
उनको मोड़कर
किताबों में गुलाबों की
पंखुड़ी मिलती नहीं
याद की फसलें कहें, किस नदी
तट पर बोइये?
सैंकड़ों शुभकामनायें
मिल रही हैं चैट पर
सिमट सब नाते गए हैं
आजकल अब नैट पर
ज़िंदगी के पृष्ठ पर कर
बंदगी जो मीत हैं
पड़ गये यदि सामने तो
चीन्ह पहचाने नहीं
चैन मन का, बचा रखिए
भीड़ में मत खोइए
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३-१२-२०१७ 
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अपनी अपनी ढपलियाँ, अपने-अपने राग.
कोयल-कंठी मौन है, सुरमणि होते काग.
वैतालिक कवि विचरते, मनोलोक में खूब.
नभ ले आते धरा पर, कर कल्पना अजूब.
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दोहा 
राम-राम सब से करें,या कहिए जय राम.
कह आ राम विराम तज, काम करें तज काम.
२-१२-२०१७ 
मुक्तक
नमन तुमको कर रहा सोया हुआ ही मैं 
राह दिखाता रहा, खोया हुआ ही मैं 
आँख बंद की तो हुआ सच से सामना 
जाना कि नहीं दूध का धोया हुआ हूँ मैं
१-१२-२०१७ 
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क्षणिका 
उस्ताद अखाड़ा नहीं,
दंगल हुआ?, हुआ.
बाकी न वृक्ष एक भी,
जंगल हुआ? हुआ.
दस्तूर जमाने का अजब,
गजब ढा रहा 
पूछते- 
हाय-हाय कर 
मंगल हुआ? हुआ.
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मुक्तक 
घर-घर में गान्धारियाँ हैं, कोई क्या करे?
करती न रफ़ू आरियाँ हैं, कोई क्या करे?
कुन्ती, विदुर न धर्मराज शेष रहे हैं-
शकुनी-अशेष पारियाँ हैं, कोई क्या करे?
३०-११-२०१७ 
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क्षणिका 
भोर भई जागो
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चीर तम का चीर आता,
रवि उषा के साथ.
दस दिशाएँ करें वंदन 
भले आए नाथ.
करें करतल-ध्वनि बिरछ मिल,
सलिल-लहर हिलोर.
'भोर भई जागो' गाती है 
प्रात-पवन झकझोर.
१५-११-२०१७ 
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दोहे 
जब तक मन में चाह थी,
तब तक मिली न राह.
राह मिली अब तो नहीं,
शेष रही है चाह.
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राम नाम की चाह कर,
आप मिलेगी राह.
राम नाम की राह चल,
कभी न मिटती चाह.
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दुनिया कहती युक्ति कर,
तभी मिलेगी राह.
दिल कहता प्रभु-भक्ति कर,
मिल मुक्ति बिन चाह.
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भटक रहे बिन राह ही,
जग में सारे जीव.
राम-नाम की राह पर,
चले जीव संजीव.
.१४-११-२०१७ 
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जनक छंद 
श्रीगणेश रुचिकर हुआ 
जनकछंद काकातुआ 
कलरव कर मन हर रहा.
८-११-२०१७ 
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सवैया 
रचना विधान- (गुरु लघु लघु x ७)
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कार्य व कारण भिन्न दिखें पर भिन्न नहीं दिखते भर हैं 
साध्य व साधन एक नहीं पर एक बने फ़लते तब हैं 
तीर व लक्ष्य न एक हुए यदि तो न धनुर्धर जीत सके 
ज्यों विधि विष्णु व शंकर हैं त्रय एक नहीं पर एक सखे! 
रचना विधान - (लघु लघु गुरु) x ८ 
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चलते - चलते, घुलते - मिलते, सद्भाव बढ़ा, हम एक बने. 
हर धर्म कहे, यह मर्म सखे!, कर कर्म सभी हम नेक बने. 
मतिमान बने, गुणवान बने, रसखान बने, सुविवेक बने. 
चल यार! चलें, मिल प्यार करें, मनुहार बने, शुभ टेक बने. 
२४-१०-२०१७
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बाल गीत 
रूठ खीझकर नोचिए 
बाल, लिखें तब गीत.
बाल गीत सुन सहमकर, 
सनम रहें भयभीत.
बाल बाल बचते रहे, 
जो न रच सके गीत.
कलम उठा लो तो करें,
गीत आप आ प्रीत.
श्यामल घुँघताले मिले,
बाल गीत हैं संग.
क्यों भरमाती सलिल को, 
नाहक करती तंग.
१५-१०-२०१७ 
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मुक्तक 
आह भरें श्रोता सभी कवि जी समझें वाह 
शेष सभी यह देखकर करें आपसे डाह 
करें आपसे डाह, ठठाकर हँसिए जीभर 
चिंता-फ़िक्र न हो बाकी अबसे रत्ती भर
४-१०-२०१७ 
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षट्पदी 
नित मनमानी कीजिए, तनिक न रहे तनाव 
पागल हों प्राचार्य जी, ऐसा पड़े प्रभाव 
ऐसा पड़े प्रभाव, शिष्य बन माँगे शिक्षा 
करें कृपा यदि आप, मिल सके उनको भिक्षा 
देखें हीरा-प्रखर, तमाशा आप रहें चित 
तनिक न रहे तनाव, कीजिए मनमानी नित. 
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लघु कथा:
मैया 
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भिखारियों को दुत्कारकर, संपन्नों को प्रसाद प्रसाद वितरण कर पुजारी ने थाली रखी ही थी कि उसने लाड़ से कहा: 'काए? हमाये पैले आरती कर लई? मैया तनकऊ खुस न हुइहैं। हमाये हींसा का परसाद किते गओ?' 
'हओ मैया! पधारो, कउनौ की सामत आई है जो तुमाए भाग के 
परसाद खों हात लगाए? बिराजो और भोग लगाओ। हम अब्बइ आउत हैं, तब लौं देखत रहियो परसाद की थाली कूकुर न जुठार दे.'
'अइसे कइसे जुठार दैहे हम बाको मूँड न फोर देबी, जा तो धरो है लट्ठ।' कोने में रखी डंडी को इंगित करते हुए बालिका बोली। 
पुजारी गया तो बालिका मुस्तैद हो गयी. कुछ देर बाद भिखारियों का झुण्ड निकला।'काए? दरसन नई किए? चलो, इतै आओ.… परसाद छोड़ कहूँ और 
गए तो लापता हो जैहो जैसे लीलावती-कलावती के घरवारे हो गए हते. पंडत जी सें कथा नई सुनी का?' 
भिखारियों को दरवाजे पर ठिठकता देख उसने फिर पुकार लगाई: 'दरवज्जे पे काए ठांड़े हो? इते लौ आउत मां गोड़ पिरात हैं का?' जा गरू थाल हमसें नई उठात बनें। लेओ' कहते हुए प्रसाद की पुड़िया उठाकर उसने हाथ बढ़ा दिया तो भिखारियों ने हिम्मतकर पुड़िया ली और पुजारी को आते देख दहशत में जाने को उद्यत हुए तो बालिका फिर बोल पड़ी: 'इनखें सींग उगे हैं का जो बाग़ रए हो? परसाद लए बिना कउनौ नें जाए। ठीक है ना पंडज्जी?'
'हओ मैया!' अनदेखी करते हुए पुजारी ने कहा।
२१-९-२०१७ 
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