हिंदी ग़ज़ल
१. चलें भी चलें
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वर्णिक छंद: वृहती जातीय, नवधा छंद
मात्रिक छंद- भागवत जातीय, अष्टाक्षरी अनुष्टुप जातीय छंद,
मापनी:१२२ १२२ १२, यगण यगण लघु गुरु, सूत्र ययलग
बहर: फऊलुं फऊलुं फअल
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चलें भी चलें साथ हम
करें दुश्मनों को ख़तम
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न पीछे हटेंगे कदम
न आगे बढ़ेंगे सितम
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न छोड़ा, न छोड़ें तनिक
सदाचार, धर्मो-करम
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तुम्हारे-हमारे सपन
हमारे-तुम्हारे सनम
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कहीं और है स्वर्ग यह
न पाला कभी भी भरम
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२. ताज़ा-ताज़ा
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मात्रिक छंद:तैथिक जातीय चौपई/जयकरी छंद
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ताज़ा-ताज़ा दिल के घाव.
सस्ता हुआ नमक का भाव..
मँझधारों-भँवरों को पार
किया, किनारे डूबी नाव..
सौ चूहे खाने के बाद
हुआ अहिंसा का है चाव..
ताक़तवर को जोड़े हाथ
निर्बल को दिखलाया ताव..
ठण्ड करी नेता ने दूर.
जला झोपड़ी, बना अलाव..
लड़ते डाकू तस्कर चोर.
मतदाता क्या करे चुनाव..
जन सीता नेता लंकेश
कैसे होगा 'सलिल' निभाव?.
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३. खौलती खामोशियों
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मात्रिक छंद उन्नीस मात्रिक महापौराणिक जातीय ग्रंथि छंद
मापनी: २१२२ २१२२ २१२, रगण तगण मगण लघु गुरु
बह्र: फाइलातुं फाइलातुं फाइलुं
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खौलती खामोशियों कुछ तो कहो
होश खोते होश सी चुप क्यों रहो?
*
स्वप्न देखो तो करो साकार भी
राह की बढ़ा नहीं चुप हो सहो
*
हौसलों के सौं नहीं मन मारना
हौसले सौ-सौ जियो, मत खो-ढहो
*
बैठ आधी रात संसद जागती
चैन की लो नींद, कल कहना अहो!
*
आ गया जी एस टी, अब देश में
साथ दो या दोष दो, चुप तो न हो
***
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खौलती खामोशियों कुछ तो कहो
होश खोते होश सी चुप क्यों रहो?
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स्वप्न देखो तो करो साकार भी
राह की बढ़ा नहीं चुप हो सहो
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हौसलों के सौं नहीं मन मारना
हौसले सौ-सौ जियो, मत खो-ढहो
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बैठ आधी रात संसद जागती
चैन की लो नींद, कल कहना अहो!
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आ गया जी एस टी, अब देश में
साथ दो या दोष दो, चुप तो न हो
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४. . क्या?
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वार्णिक छंद: अथाष्टि जातीय छंद
मात्रिक छंद: यौगिक जातीय विधाता छंद
मापनी: १२२२ १२२२ १२२२ १२२२, यगण रगण तगण मगण यगण गुरु
मुफ़ाईलुन,मुफ़ाईलुन, मुफ़ाईलुन,मुफ़ाईलुन।
बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम।।
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बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम।।
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दियों में तेल या बाती नहीं हो तो करोगे क्या?
लिखोगे प्रेम में पाती नहीं भी तो मरोगे क्या?
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बुलाता देश है, आओ! भुला दो दूरियाँ सारी
बिना गंगा बहाए खून की, बोलो तरोगे क्या?
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पसीना ही न जो बोया, रुकेगी रेत ये कैसे?
न होगा घाट तो बोलो नदी सूखी रखोगे क्या?
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परों को ही न फैलाया, नपेगा आसमां कैसे?
न हाथों से करोगे काम, ख्वाबों को चरोगे क्या?
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न ज़िंदा कौम को भाती कभी भी भीख की बोटी
न पौधे रोप पाए तो कहीं फूलो-फलोगे क्या?
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५. नव दुर्गा का
वर्णिक छंद: अत्यष्टि जातीय, हाइकु छन्द यति ५-७-५
मात्रिक छंद: अवतारी जातीय,
नव दुर्गा का, हर नव दिन हो, मंगलकारी
नेह नर्मदा, जन-मन रंजक, संकटहारी
मैं-तू रहें न, दो मिल-जुलकर, एक हो सकें
सुविचारों के, सुमन सुवासित, जीवन-क्यारी
गले लगाये, दिल को दिल खिल, गीत सुनाये
हों शरारतें, नटखटपन भी, रञ्जनकारी
भारतवासी, सकल विश्व पर, प्यार लुटाते
संत-विरागी, सत-शिव-सुंदर, छटा निहारी
भाग्य-विधाता, लगन-परिश्रम, साथ हमारे
स्वेद बहाया, लगन लगाकर, दशा सुधारी
पंचतत्व का, तन मन-मंदिर, कर्म धर्म है
सत्य साधना, 'सलिल' करे बन, मौन पुजारी
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नेह नर्मदा, जन-मन रंजक, संकटहारी
मैं-तू रहें न, दो मिल-जुलकर, एक हो सकें
सुविचारों के, सुमन सुवासित, जीवन-क्यारी
गले लगाये, दिल को दिल खिल, गीत सुनाये
हों शरारतें, नटखटपन भी, रञ्जनकारी
भारतवासी, सकल विश्व पर, प्यार लुटाते
संत-विरागी, सत-शिव-सुंदर, छटा निहारी
भाग्य-विधाता, लगन-परिश्रम, साथ हमारे
स्वेद बहाया, लगन लगाकर, दशा सुधारी
पंचतत्व का, तन मन-मंदिर, कर्म धर्म है
सत्य साधना, 'सलिल' करे बन, मौन पुजारी
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