शोध लेख कृषि - रसायन अभियांत्रिकी
माइक्रोइनकेपसुलेशन: कृषि एवं कीटनाशकों पर प्रभावी तकनीक
डॉ अनामिका राॅय
परिचयः
डॉ अनामिका राॅय प्राध्यापक, रसायन एवं पर्यावरण विभाग, ओरिंयटल
इंजीनियरिंग महाविद्यालय जबलपुर। पसंदीदा क्षेत्र कृषि रसायन एवं पर्यावरण विज्ञान एवं पाॅलीमर कैमिस्ट्री । कई विख्यात
अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में शोधलेध प्रकाशित। इन्होने कुछ पुस्तकें भी लिखी हैं। फरवरी 2010 में म. प्र. काउंसिल आॅफ साइंस एंड टेक्न¨लाॅजी द्वारा कृषि विज्ञान क्षेत्र केे यंग साइंटिस्ट अवार्ड से पुरस्कृत।
वर्तमान में कृषि की सेहत, पोषण एवं अर्थषास्त्र की दृष्टि से पृथ्वी में सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिये, उर्वरक, कीटनाषक, उन्नत मषीनें एवं उच्च तकनीकें उपयोग में लाई जाती है, पर यह सभी वातावरण प्रदूषण भूजल ,प्रदूषण मृदा क्षरण एवं वनों के विनाश को बढ़ावा देती हैं। जिसमें कीटनाशकों के विषैले अणु वातावरण में मिल जाते हैं और मानव शरीर तथा पादप वर्ग के लिये हानिकारक सिध्द होते हैं। कीटनाशक आज हमारे भोजन तक अपनी पहुँचबना चुके हैं क्योंकि कृषि एवं उच्च तकनीकें कीटनाषकों के उपयोग पर निर्भर हो चुकी है।
कृषक वर्ग मानव निर्मित कीटनाषकों, जैसे साइपरमैथिरान, क्लोरपायरिफॅास ए इंडोसल्फान, डाइक्लोरोवॅास, एल्डिकार्ब का बहुत इस्तेमाल करता है। इस कारण कैंसर, किडनी, वमन, अवसाद एवं एलर्जी जैसे रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। कीटनाशक केवल कीटों को ही नहीं वरन जलीय जीव, तितलियों ,पक्षियों को भी हानि पहुँचाते हैं। कीटनाशकों की सांद्रता खाद्य श्रंखला का संतुलन भी बिगाड़ती है। कीटनाशक को सीधे छिड़काव द्वारा फसल में डाले जाने पर उसका कुछ भाग भूजल तकएवं जलीय जीवों द्वारा खाद्य श्रृंखला के हर चरण तक पहुँचता है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर हर जीव तक कीटनाशक का प्रभाव हो रहा है। जैवविविधता में भी कीटनाशकों का असर दिखायी दे रहा है। संश्लेषित कीटनाषकों के अणु काफी लंबे समय तक विघटित नहीं होते हैं एवं उपयोग के बाद मृदा और वातावरण में उपस्थित रहते हैं, डीडीटी पाॅंच वर्ष तक, लिण्डेन सात वर्ष तक एवं आर्सेनिक तथा फ्लोरीन अनिश्चित समय तक वातावरण में उपस्थित रहते हैं। यूरोपियन यूनियन (ई.यू.) के अनुसार एकल कीटनाशक की पर्यावरण वजल में साॅंद्रता 0.1 प्रतिशत अधिकतम हो सकती है।कीटनाशक एवं उनसे प्रभावित अंग:
क्र खाद्यान्न कीटनाशक प्रभावित अंग
1. सेब क्लोरडेन लीवर, फेफड़े, किडनी, आॅंख, तंत्रिका तंत्र
2. दूध क्लोरपायरिफास कैंसर, तंत्रिका तंत्र
3. अंडे इंडोसल्फान तंत्रिका तंत्र, लीवर
4. चाय फेनप्रोपथ्रिन तंत्रिका तंत्र, माॅंसपेशियाँ
5. गेहूँ एल्ड्रिन कैंसर, अवसाद
6. चाँवल क्लोरफेनविनफास कैंसर, एलर्जी
7. बैगन हेप्टाक्लोर लीवर एवं तंत्रिका तंत्र
कीटनाशकों की सांद्रता से होनेवाले दुष्परिणामों से बचाव के लिये वैज्ञानिकों द्वारा ‘‘कंट्रोल रिलीज टेक्नोलाजी’’ की खोज की गयी। यह वह तकनीक है जिसमें कीटनाशक की सांद्रता को हम नियंत्रित रूप में निश्चित समय में निर्धारित लक्ष्य तक पहॅुचा सकते हैं। आज इस तकनीक का उपयोग कृषि, चिकित्सा, पोषण एवं फार्मेसी में हो रहा है।कंट्रोल रिलीज टेक्नोलाजी में बहुलक की उपयोगिताजैव बहुलक कृषि के लिये वरदान साबित हुआ है क्योंकि इसकी संरचना, अणुभार, आकार, एवं पार्शववर्तीश्रंखला की लंबाई किसी भी कीटनाशक को जुड़ने के लिये आधार प्रदान करती है।
‘‘कंट्रोल रिलीज टेक्नोलाजी’’ में मूलतः जैव बहुलक का उपयोग होता है क्योंकि यह अपघटित होने पर कोई भी अप
शि
ष्ट पदार्थ उत्सर्जित नहीं करते एवं जल में घुलन
शी
ल होने के कारण मृदा में
शेष
नहीं बचता। बहुलक से कीटना
श
क कैरियर के रूप में माइ
क्रो
कैप्सूल, माइक्रो स्फीयर्स, कोटेड ग्रेन्यूल्स एवं ग्रेन्यूलर मेट्रिसेस बनायी जाती है। इन सभी कैरियर्स में कीटना
श
क को बहुलक द्वारा निर्मित झिल्ली में डाल दिया जाता है और यह बहुलक झिल्ली, द्रव, गैस या ठोस रूप में हो सकता है, इस तरह से कीटनाषक को वातावरण के सीधे संपर्क में आने से रोका जा सकता है।
कीटना
श
क युक्त बहुलक का निर्माण
कीटना
श
क युक्त बहुलक कई विधियों द्वारा बनाया जा सकता है।
1
.
रासायनिक आबंधन द्वारा:- इस विधि को दो भागों में बाॅंटा जा सकता है।
- किसी एकलक को बहुलीकरण की प्रक्रिया द्वारा बहुलक में परिर्विर्तत करके उसमें कीटना
श
क को जोड़कर।
- इस विधि में कीटना
श
क को सीधे बहुलक में मिला दिया जाता है।
2
.
मैट्रिक्स इनकैपसुले
श
न द्वारा
यह सबसे ज्यादा प्रचलित सरल विधि हैं। इसमें कीटनाषक किसी आवरण से घिरा नहीं होता है, अपितु कीटना
श
क का मैट्रिक्स में छिड़काव या अव
शो
षण कराया जाता है।
3
.
माइक्रो इनकैप्सुले
श
न
इस तकनीक में कीटनाषक को ठोस कण, द्रव या गैस के बुलबुलों के रूप मे उपयोग में लिया जाता हैं इस विधि में सामान्यतः कार्बनिक बहुलक, वसा एवं मोम का उपयोग किया जाता है। माइक्रोकैप्सूल का व्यास सामान्यतः 3 से 800 मिली माइक्रोन के बीच होता है। इस तकनीक के द्वारा किसी भी द्रव को आसानी से उपयोग हेतु बनाया जा सकता है। माइक्रो इनकैप्सुले
श
न की तकनीक फार्मास्यूटिकल्स, डाई, इत्र निर्माण, कृषि, प्रिंट्रिग, सौंदर्य प्रसाधन एवं चिकित्सा में उपयोग में लायी जाती है।
कृषि में जैव बहुलक
कृषि में फसल की गुणवत्ता एवं मात्रा को बढ़ाने के लिये जैव बहुलक सबसे अच्छे विकल्प साबित हुए हैं, क्योंकि यह जैव अपघटनीय होते हैं इस कारण वातावरण में कोई हानिकारक प्रभाव नहीं डालते हैं। सबसे ज्यादा प्रचलित बहुलक एमाईलोज, सैल्यूलोज, काबौक्सी मिथाइल सैल्यूलोज, एलजिनेट, स्टार्च, काइटोसिन, जिलेटिन इत्यादि हैं। जैव बहुलक का मृदा में अपघटन रासायनिक एवं सूक्ष्मजीवों द्वारा होता है, और इस प्रकार का अपघटन एक या एक से अधिक पदों में होता है। रायायनिक अपघटन, सूक्ष्मजीवी अपघटन की तुलना में तीव्र गति से होता है। वैज्ञानिकों द्वारा पिछले कुछ वर्षों में
संश्लेषित
बहुलकों पर भी कार्य किया जा रहा था, प
रं
तु
संश्लेषित
बहुलक के अपघटनीय उत्पाद विषैले होने की वजह से अब जैव बहुलकों पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है क्योंकि जैव बहुलक काई भी ऐसे अपघटनीय उत्पाद
नहीं
देते जिससे कि वातावरण या जीव जंतुओं पर काई दुष्प्रभाव हो। सूक्ष्मजीव जैसे कि फंजाई, बैक्टीरिया, एल्गी, जैव बहुलक के अपघटन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सूक्ष्मजीव जैव बहुलक का अपघटन एंजायमैटिक श्रॅंखला को तोड़कर करते हैं।
कुछ महत्वपूर्ण जैव बहुलक इस प्रकार हैं।
गवारपाठा:यह एक जैव बहुलक है जो मरूत्भिद पौधा होने के कारण जल संचयन की क्षमता रखता है। इसकी मांसल पत्ती का आॅंतरिक भाग साफ, मुलायम, नम एवं
श्लेष्मी
ऊतकों से मिलकर बना होता है।
एल्जिनेटः यह भी एक जैव बहुलक है जो कि सोडियम, पौटे
शि
यम एवं अमोनियम एल्जिनेट के रूप में पाया जाता है एवं गर्म एवं ठंडे दोनों प्रकार के जल घुलनषील होता है यह गंधहीन इमल्सिफायर के रूप में खाद्य पदार्थों की ष्यानता बढ़ाने में उपयोग में आता है।
काइटोसिन: यह एक जैव अपघटनीय बहुलक है। यह पौधों के प्रतिरक्षीतंत्र को नियॅंत्रित करता है एवं पौधों की रोगों तथा कीटों से रक्षा करता है। यह बिना किसी रासायनिक उर्वरक के सूक्ष्मजीवों की संख्या में वृध्दि कर सकता है।
सैल्यूलोज: यह पौ
धों
के 50 प्रति
श
त
शुष्क
भार एवं 50 प्रतिषत
कृषि
के अप
शि
ष्ट पदार्थों से मिलाकर बनाया जाता है। सॅल्यूलोज का संपूर्ण अपघटन तीन कोएन्जाईम एक्सो β-1-4 ग्लूकेनेज, इंडो β -1-4 ग्लूकेनेज एवं β.ग्लकोसाइडेज द्वारा होता हैं।
पैक्टिन: इस जैव बहुलक की संरचना बहुत जटिल होती है, इसकी निर्माण विधि इस बात पर निर्भर करती है कि यह किस विधि से उत्पादित है।
चित्रण् जैव बहुलक के प्रकार
माइ
क्रो
इनकेप्सुले
श
न द्वारा कीटना
श
क युक्त माइक्रो स्फीयर्स का निर्माण
सर्वप्रथम जैव बहुलक को जल में घोलकर उसमें कीटना
श
क मिलाकर एक विलयन बना लेते हैं, तैयार विलयन को सिरिन्ज की सहायता से क्र्रॅासलिंकर में डालकर इसके छोटे छाटे दानेनुमा आकृति के माइक्रोस्फीयर्स बना लेते हैं, इन माइक्रोस्फीयर्स को 24 घंटों के लिये
क्रो
सलिंकर में ही रहने देते हैं, बाद में इन्हें फिल्टर पेपर की सहायता से छानकर 48 घंटों के लिए 40ं
से.
पर ओवन में रख देते हैं,
शुष्क
अवस्था में प्राप्त माइक्रोस्फीयर्स को पैक करके रख लेते हैं
.
चित्रण् कीटना
श
क युक्त माइक्रो स्फीयर्स का निर्माण
कंट्रोल रिलीज टेक्नालाॅजी से लाभ:
1
.
की
टना
श
क का प्रभाव फसल पर 45 दिन तक रहता है अर्थात 45 दिन तक कीटना
श
क के छिड़काव की जरूरत नहीं होती।
2. की
टना
श
क सूर्य के प्रका
श
में
ऊर्ध्व
पातित नहीं होता
3
. भू
जल प्रदूषण नहीं होता।
4. जै
व बहुलक मृदा में अपने आप घुल जाता है, अर्थात कोई भी प्रदूषक
शे
ष नहीं बचता।
5
. त
कनीक सस्ती एवं सुलभ है।
कीटना
श
क का हर अणु प्रकृति को बिगाड़ने के लिये क्रिया
शी
ल रहता है। कृषक वर्ग की अज्ञानता एवं कीटना
श
कों के विषैले प्रभाव का समुचित ज्ञान न हो पाने के कारण कई कृषकों की मृत्यु भी हो जाती है। सरकार द्वारा प्रतिबंधित कुछ कीटना
श
क आज भी खुले आम बेचे जा रहै हैं। इन प्रतिबंधित कीटना
श
कों के बारे में न ही कीटना
श
क विक्रेता को कोई जानकारी है और न ही कृषकों को। आज के
शि
क्षित युवा वर्ग की यह जवाबदारी होना चाहिये कि हम किसानों को कीटना
श
कों के प्रयोग
से
होनेवाले विषैले प्रभावों से हम उन्हें अवगत करायें एवं कंट्रोल रिलीज टैकनोलाजी से होने वाले लाभ को समझायें। इस तकनीक को व्यापारिक तौर पर अपनाने के पहले कुछ तथ्यों को जरूर ध्यान में रखना चाहिये।
1
, मृ
दा उर्वरकता, भूजल एवं फसल की गुणवत्ता को नजरअंदाज न करते हुए केवल जैव बहुलक ही उपयोग करना चाहिये।
2
.
उत्पाद सस्ता होना चाहिये अगर उत्पाद सस्ता होगा तभी कृषक वर्ग इसे उपयोग कर सकेगा।
३. य
दि प्रकृति में उपलब्ध कीटना
श
क का उपयोग किया जावे तो उचित होगा, एवं इनकेप्सुले
श
न के जरिए कीटना
श
क लंबे समय तक प्रभावी रहेगा।
4
.
स्थानीय मृदा, पर्यावरण एवं मौसम को देखकर उत्पाद बनाया जावे तो अच्छे परिणाम मिलेंगे।
5
अ.
गर उत्पाद में कीटनाशक, उर्वरक, पोषक तत्व एवं जल मिला जावे तो यह ज्यादा प्रभाव
शा
ली एवं सस्ती तकनीक साबित होगी।
कंट्रोल रिलीज टेक्नोलाजी, कृषि एवं अन्य क्षेत्रों में सर्वाधिक उपयोग की जाने वाली तकनीक है, जिसमें कीटनाशक एवं अन्य पदार्थों का माइ
क्रो
इनकेपसुले
श
न कराकर उस सक्रिय पदार्थ की धीमी एवं वि
शि
ष्ट साॅंद्रता प्राप्त की जाती है। इस तकनीक के द्वारा किसी भी कीटना
श
क से होने वाले विषैले प्रभाव से बचा जा सकता है।
सं
दर्भ:-
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परिचय: प्राध्यापक, रसायन शास्त्र, ओरिएण्टल इन्स्टीट्यूट ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलोजी, जबलपुर। अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में शोध-लेख प्रकाशित।
संपर्क: DR.ANAMIKA ROY, L.T.S.R.T.-391, A.C.C.COLONY,NEAR BUS STAND
POST-KYMORE,DISTT-KATNI PIN-483880 M.P. CONT.No.-9425466270,
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