कुल पेज दृश्य

बुधवार, 2 जून 2021

मुक्तिका

मुक्तिका सलिला:
सन्जीव
*
ये पूजा करे, वो लगाता है ठोकर
पत्थर कहे आदमी है या जोकर?
वही काट पाते फसल खेत से जो
गए थे जमीं में कभी आप बोकर
हकीकत है ये आप मानें, न मानें
अधूरे रहेंगे मुझे ख्वाब खोकर
कोशिश हूँ मैं, हाथ मेरा न छोड़ें
चलें मंजिलों तक मुझे मौन ढोकर
मेहनत ही सबसे बड़ी है नियामत
कहता है इंसान रिक्शे में सोकर
केवल कमाया, न किंचित लुटाया
निश्चित वही जाएगा आप रोकर
हूँ 'संजीव' शब्दों से सच्ची सखावत
करी, पूर्णता पा मगर शून्य होकर
२-६-२०१५
***

कोई टिप्पणी नहीं: