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रविवार, 20 जून 2021

शिवलिंग और शालिग्राम

शिवलिंग और शालिग्राम का रहस्य .
अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
हिन्दू धर्म के तीन प्रमुख देवता हैं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश। साधारण मानव ने तीनों को प्रकृति तत्वों में खोजने का प्रयास किया है। तीनों के ही मनुष्य ने साकार रूप गढ़ने के लिए सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा को शंख, शिव को शिवलिंग और भगवान विष्णु को शालिग्राम रूप में सर्वोत्तम माना है। उल्लेखनीय है कि शंख सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप है जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है।
गौरतलब है कि हिन्दू धर्म में मूर्ति की पूजा नहीं होती, लेकिन शिवलिंग और शालिग्राम को भगवान का विग्रह रूप माना जाता है और पुराणों के अनुसार भगवान के इस विग्रह रूप की ही पूजा की जानी चाहिए। शिवलिंग जहां भगवान शंकर का प्रतीक है तो शालिग्राम भगवान विष्णु का।
शिवलिंग के तो भारत में लाखों मंदिर हैं, लेकिन शालग्रामजी का एक ही मंदिर है।
शालिग्राम का मंदिर : शालिग्राम का प्रसिद्ध मंदिर मुक्तिनाथ में स्थित है यह वैष्‍णव संप्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह तीर्थस्‍थान शालिग्राम भगवान के लिए प्रसिद्ध है। मुक्तिनाथ की यात्रा काफी मुश्किल है। माना जाता है कि यहां से लोगों को हर तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
मुक्तिनाथ नेपाल में स्थित है। काठमांडु से मुक्तिनाथ की यात्रा के लिए पोखरा जाना होता है। वहां से यात्रा शुरू होती है। पोखरा के लिए सड़क या हवाई मार्ग से जा सकते हैं। वहां से पुन: जोमसोम जाना होता है। यहां से मुक्तिनाथ जाने के लिए आप हेलिकॉप्‍टर या फ्लाइट ले सकते हैं। यात्री बस के माध्‍यम से भी यात्रा कर सकते हैं। सड़क मार्ग से जाने पर पोखरा पहुंचने के लिए कुल 200 कि.मी. की दूरी तय करनी होती है।
शालिग्राम को जानिए : शिवलिंग की तरह शालिग्राम भी बहुत दुर्लभ है। अधिकतर शालिग्राम नेपाल के मुक्तिनाथ, काली गण्डकी नदी के तट पर पाया जाता है। काले और भूरे शालिग्राम के अलावा सफेद, नीले और ज्योतियुक्त शालिग्राम का पाया जाना तो और भी दुर्लभ है। पूर्ण शालिग्राम में भगवाण विष्णु के चक्र की आकृति अंकित होती है।
शालिग्राम के प्रकार : विष्णु के अवतारों के अनुसार शालिग्राम पाया जाता है। यदि गोल शालिग्राम है तो वह विष्णु का रूप गोपाल है। यदि शालिग्राम मछली के आकार का है तो यह श्री विष्णु के मत्स्य अवतार का प्रतीक है। यदि शालिग्राम कछुए के आकार का है तो यह भगवान के कच्छप और कूर्म अवतार का प्रतीक है। इसके अलावा शालिग्राम पर उभरने वाले चक्र और रेखाएं भी विष्णु के अन्य अवतारों और श्रीकृष्ण के कुल के लोगों को इंगित करती हैं। इस तरह लगभग 33 प्रकार के शालिग्राम होते हैं जिनमें से 24 प्रकार को विष्णु के 24 अवतारों से संबंधित माना गया है। माना जाता है कि ये सभी 24 शालिग्राम वर्ष की 24 एकादशी व्रत से संबंधित हैं।
शालिग्राम की पूजा :
* घर में सिर्फ एक ही शालिग्राम की पूजा करना चाहिए।
* विष्णु की मूर्ति से कहीं ज्यादा उत्तम है शालिग्राम की पूजा करना।
* शालिग्राम पर चंदन लगाकर उसके ऊपर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है।
* प्रतिदिन शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराया जाता है।
* जिस घर में शालिग्राम का पूजन होता है उस घर में लक्ष्मी का सदैव वास रहता है।
* शालिग्राम पूजन करने से अगले-पिछले सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
* शालिग्राम सात्विकता के प्रतीक हैं। उनके पूजन में आचार-विचार की शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
शिवलिंग : शिवलिंग को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है तो जलाधारी को माता पार्वती का प्रतीक। निराकार रूप में भगवान शिव को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है।
ॐ नम: शिवाय । यह भगवान का पंचाक्षरी मंत्र है। इसका जप करते हुए शिवलिंग का पूजन या अभिषेक किया जाता है। इसके अलावा महामृत्युंजय मंत्र और शिवस्त्रोत का पाठ किया जाता है। शिवलिंग की पूजा का विधान बहुत ही विस्तृत है इसे किसी पुजारी के माध्यम से ही सम्पन्न किया जाता है।
शिवलिंग पूजा के नियम :
* शिवलिंग को पंचांमृत से स्नानादि कराकर उन पर भस्म से तीन आड़ी लकीरों वाला तिलक लगाएं।
*शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए, लेकिन जलाधारी पर हल्दी चढ़ाई जा सकती है।
*शिवलिंग पर दूध, जल, काले तिल चढ़ाने के बाद बेलपत्र चढ़ाएं।
* केवड़ा तथा चम्पा के फूल न चढाएं। गुलाब और गेंदा किसी पुजारी से पूछकर ही चढ़ाएं।
* कनेर, धतूरे, आक, चमेली, जूही के फूल चढ़ा सकते हैं।
* शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ प्रसाद ग्रहण नहीं किया जाता, सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं।
* शिवलिंग नहीं शिवमंदिर की आधी परिक्रमा ही की जाती है।
* शिवलिंग के पूजन से पहले पार्वती का पूजन करना जरूरी है
शिवलिंग का अर्थ : शिवलिंग को नाद और बिंदु का प्रतीक माना जाता है। पुराणों में इसे ज्योर्तिबिंद कहा गया है। पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है जैसे- प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, ऊर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्मांडीय स्तंभ लिंग आदि।
शिव का अर्थ 'परम कल्याणकारी शुभ' और 'लिंग' का अर्थ है- 'सृजन ज्योति'। वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है। यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है। 1- मन, 2- बुद्धि, 3- पांच ज्ञानेन्द्रियां, 4- पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु। भ्रकुटी के बीच स्थित हमारी आत्मा या कहें कि हम स्वयं भी इसी तरह है। बिंदु रूप।
ब्राह्मांड का प्रतीक : शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा की तरह है। यह शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड में घूम रहे पिंडों का प्रतीक है। वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
अरुणाचल है प्रमुख शिवलिंगी स्थान : भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग (ज्योति) प्रकट किया था। इस लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ। इसी समय से शिव के परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में लिंग की पूजा आरंभ हुई। यह घटना अरुणाचल में घटित हुई थी।
आकाशीय पिंड : ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार विक्रम संवत के कुछ सहस्राब्‍दी पूर्व संपूर्ण धरती पर उल्कापात का अधिक प्रकोप हुआ। आदिमानव को यह रुद्र (शिव) का आविर्भाव दिखा। जहां-जहां ये पिंड गिरे, वहां-वहां इन पवित्र पिंडों की सुरक्षा के लिए मंदिर बना दिए गए। इस तरह धरती पर हजारों शिव मंदिरों का निर्माण हो गया। उनमें से प्रमुख थे 108 ज्योतिर्लिंग।
संग-ए-असवद : शिव पुराण के अनुसार उस समय आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेक उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। कहते हैं कि मक्का का संग-ए-असवद भी आकाश से गिरा था।

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