छंद सलिला :
घनश्याम छंद
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संरचना १२१ १२१ २११ २११ २११ २
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भजो नित इष्ट , श्री घनश्याम सदा जग के
हरें हर कष्ट , गोकुलनाथ सदा सब के
नहीं छल-छद्म , का कुछ काम कहे छलिया
करे वह प्रीत , हो मनमीत अरे! रसिया
न माखन चोर , के बिन शांत रहे मइया
सदा गउपाल , का जप नाम सुखी गुइया
लगा पग धूल , लूँ निज माथ तरूँ भव से
उठा सुखधाम , कंठ लगा लें खुद झट से
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