संजीव
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पढ़ेंगे खुदका लिखा खुद निहाल होना है
पढ़े जो और तो उसको निढाल होना है
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हुई है बात सलीके की कुछ सियासत में
तभी से तय है कि जमकर बबाल होना है
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कहा जो हमने वही सबको मानना होगा
यही जम्हूरियत की अब मिसाल होना है
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दियों से दुश्मनी, बाती से अदावत जिनको
उन्हीं के हाथों में जलती मशाल होना है
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कहाँ से आये मियाँ और कहाँ जाते हो?
न इससे ज्यादा कठिन कुछ सवाल होना है
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२८-०६-२०१५
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