कुल पेज दृश्य

रविवार, 13 जून 2021

नवगीत

नवगीत
दोहा गीत 
*
प्रवहित थी अवरुद्ध है
नेह नदी की धार,
व्यथा-कथा का है नहीं
कोई पारावार।
*
लोरी सुनकर कब हँसी?
खेली बाबुल गोद?
कब मैया-कैयां चढ़ी
कर आमोद-प्रमोद?
मलिन दृष्टि से भीत है
रुचता नहीं दुलार
प्रवहित थी अवरुद्ध है
नेह नदी की धार
*
पर्वत - जंगल हो गए
नष्ट, न पक्षी शेष  
पशुधन भी है लापता
नहीं शांति का लेश 
दानववत मानव करे
अनगिन अत्याचार
प्रवहित थी अवरुद्ध है
नेह नदी की धार
*
कलकल धारा सूखकर
हाय! हो गयी मंद
धरती की छाती फ़टी
कौन सुनाए छंद
पछताए, सुधरे नहीं
पैर कुल्हाड़ी मार
प्रवहित थी अवरुद्ध है
नेह नदी की धार
***
१०-६-२०१६
तक्षशिला इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी
जबलपुर

कोई टिप्पणी नहीं: