कुल पेज दृश्य

सोमवार, 21 जून 2021

बाल कविता: मेरे पिता

बाल कविता:
मेरे पिता
संजीव 'सलिल'
जब तक पिता रहे बन साया!
मैं निश्चिन्त सदा मुस्काया!
*
रोता देख उठा दुलराया
कंधे पर ले जगत दिखाया
उँगली थमा,कहा: 'बढ़ बेटा!
बिना चले कब पथ मिल पाया?'
*
गिरा- उठाकर मन बहलाया
'फिर दौड़ो' उत्साह बढ़ाया
बाँह झुला भय दूर भगाया
'बड़े बनो' सपना दिखलाया
*
'फिर-फिर करो प्रयास न हारो'
हरदम ऐसा पाठ पढ़ाया
बढ़ा हौसला दिया सहारा
मंत्र जीतने का सिखलाया
*
लालच करते देख डराया
आलस से पीछा छुड़वाया
'भूल न जाना मंज़िल-राहें
दृष्टि लक्ष्य पर रखो' सिखाया
*
रवि बन जाड़ा दूर भगाया
शशि बन सर से ताप हटाया
मैंने जब भी दर्पण देखा
खुद में बिम्ब पिता का पाया
२१-६-२०१५ 
*

कोई टिप्पणी नहीं: