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शुक्रवार, 18 जून 2021

दोपदी, मुक्तक, कवित्त

दोपदी 
पा पा कह मंज़िल पाने को, जो करते प्रोत्साहित
प्यार उन्हें करते सब बच्चे, पापा कह होते नत
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मुक्तक 
श्रेया है बगिया की कलिका, झूमे नित्य बहारों संग।
हर दिन होली रात दिवाली, पल-पल खुशियाँ भर दें रंग।।
कदम-कदम बढ़ नित नव मंजिल पाओ, दुनिया देखे दंग।
रुकना झुकना चुकना मत तुम, जीतो जीवन की हर जंग।।
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कवित्त
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शिवशंकर भर हुंकार, चीन पर करो प्रहार, हो जाए क्षार-क्षार, कोरोना दानव।
तज दो प्रभु अब समाधि, असहनीय हुई व्याधि, भूकलंक है उपाधि, देह भले मानव।।
करता नित अनाचार, वक्ष ठोंक दुराचार, मिथ्या घातक प्रचार, करे कपट लाघव।
स्वार्थ-रथ हुआ सवार, धोखा दे करे वार, सिंह नहीं है सियार, मिटा दो अमानव।।
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१८-६-२०२०

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