अतिथि रचना
'कौन संकेत देता रहा'
कुसुम वीर
*
भोर में साथ उषा के जागा रवि, साँझ आभा सिन्दूरी लिए थी खड़ी
कौन संकेत देता रहा रश्मि को, रास धरती से मिलकर रचाती रही
पलता अंकुर धरा की मृदुल कोख में, पल्लवित हो सृजन जग का करता रहा
गोधूलि के कण को समेटे शशि,चाँदनी संग नभ में विचरता रहा
सागर से लेकर उड़ा वाष्पकण, बन कर बादल बरसता-गरजता रहा
मेघ की ओट से झाँकती दामिनी, धरती मन प्रांगण को भिगोता रहा
उत्तालित लहर भाव के वेग में तट के आगोश से थी लिपटती रही
तरंगों की ताल पे नाचे सदा, सागर के संग-संग थिरकती रही
स्मित चाँदनी की बिखरती रही, आसमां' को उजाले में भरती रही
कौन संकेत देता रहा रात भर, सूनी गलियों की टोह वो लेती रही
पुष्प गुञ्जों में यौवन सरसता रहा, रंग वासन्त उनमें छिटकता रहा
कौन पाँखुर को करता सुवासित यहाँ, भ्रमर आ कर मकरन्द पीता रहा
झड़ने लगे शुष्क थे पात जो, नई कोंपल ने ताका ठूँठी डाल को
शाख एक-दूजे से पूछने तब लगी, क्या जीवन का अंतिम प्रहर है यही
साँसों के चक्र में ज़िंदगी फिर रही, मौत के साये में उम्र भी घट रही
कब किसने सुना वक़्त की थाप को, रेत मुट्ठी से हर दम फिसलती रही
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 14 जून 2021
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