व्यंग्य रचना:
अभिनंदन लो 
*
युग-कवयित्री! 
अभिनंदन
 लो....
*
सब जग अपना, कुछ न पराया
शुभ सिद्धांत तुम्हें यह भाया. 
गैर नहीं कुछ भी है जग में-
'विश्व एक' अपना सरमाया. 
जहाँ मिले झट झपट वहीं से 
अपने माथे यश-चंदन लो
युग-कवयित्री 
अभिनंदन
 लो....
* 
मेरा-तेरा मिथ्या माया 
दास कबीरा ने बतलाया.
भुला परायेपन को तुमने
गैर लिखे को कंठ बसाया.
पर उपकारी अन्य न तुमसा 
जहाँ रुचे कविता कुंदन लो 
युग-कवयित्री 
अभिनंदन
 लो....
*
हिमगिरी-जय सा किया यत्न है 
तुम सी प्रतिभा काव्य रत्न है.
चोरी-डाका-लूट कहे जग 
निशा तस्करी मुदित-मग्न है.
अग्र वाल पर रचना मेरी 
तेरी हुई, महान लग्न है.
तुमने कवि को धन्य किया है 
खुद का खुद कर मूल्यांकन लो 
युग-कवयित्री 
अभिनंदन
 लो....
*
कवि का क्या? 'बेचैन' बहुत वह 
तुमने चैन गले में धारी. 
'कुँवर' पंक्ति में खड़ा रहे पर 
हो न सके सत्ता अधिकारी.
करी कृपा उसकी रचना ले
नभ-वाणी पर पढ़कर धन लो 
युग-कवयित्री 
अभिनंदन
 लो....
* 
तुम जग-जननी, कविता तनया 
जब जी चाहा कर ली मृगया.
किसकी है औकात रोक ले-
हो स्वतंत्र तुम सचमुच अभया.
दुस्साहस प्रति जग नतमस्तक 
'छद्म-रत्न' हो, अलंकरण लो 
युग-कवयित्री 
अभिनंदन
 लो....
***
टीप: श्रेष्ठ कवि की रचना को अपनी बताकर २३-५-२०१८ को प्रात: ६.४० बजे काव्य धारा कार्यक्रम में आकाशवाणी पर प्रस्तुत कर धनार्जन का अद्भुत पराक्रम करने के उपलक्ष्य में यह रचना समर्पित उसे ही जो इसका सुपात्र है)
 
 
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