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येन-केन
गद्दी पाली पर
तुमको नेता,
नहीं सुनाई देता है क्या
चीत्कार वह,
जिसने जन की
रातों की है नींद उड़ा दी?
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जो घटना था
घटित हो गया,
बुरे स्वप्न सम।
मरते थे ज्यादा,
बचते थे जीवित नित कम।
आँख फेरकर
सच्चाई से
कहे प्रशासन -
चले गए दो-चार
हमें इसका बेहद गम।
भक्त करें
जयकार नित्य पर,
कहो हाथ धर
अपने हृद पर
नदी किनारे
लाशें मिलना
नहीं दिखाई देता है क्या?
गिद्ध भोज वह
बेच ओषजन।
येन-केन
गद्दी पाली पर
तुमको नेता,
नहीं सुनाई देता है क्या
चीत्कार वह,
जिसने जन की
रातों की है नींद उड़ा दी?
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जो मिटना था
नहीं मिट सका,
रोग बढ़ रहा
भेस बदलकर।
माल दबाकर,
दाम बढ़ाकर बेच रहे हैं
औषध, बिस्तर
ऑक्सीजन भी;
नर संहारी।
करता शासन -
अभिनंदन उस अस्पताल का
जिसने लूट लिया रोगी को।
पत्रकार भी
आँखें मूँदे,
हाँ में हाँ कर
लाभ कमाते।
जगह नहीं है,
लकड़ी गायब
शमशानों में
नहीं दिखाई देता है क्या?
येन-केन
गद्दी पाली पर
तुमको नेता,
नहीं सुनाई देता है क्या
चीत्कार वह,
जिसने जन की
रातों की है नींद उड़ा दी?
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रोजी रही न,
रोटी गायब,
घर उजड़े हैं।
अपने खोकर ,
मूक हुआ मन, आँखें हैं नम।
मौत हुई कोरोना से
सच नहीं मानते,
लेकिन देयक में वसूलते
दाम दवाई-परामर्श के
वे डॉक्टर भी
आए नहीं जी कभी देखने।
नहीं दिखाई देता है क्या?
बीमावाले बना बहाने
बीमित धन भी
नहीं दे रहे।
नेता-अफसर
तनिक न चिंतित
अपनी पीठ ठोंकते है खुद।
येन-केन
गद्दी पाली पर
तुमको नेता,
नहीं सुनाई देता है क्या
चीत्कार वह,
जिसने जन की
रातों की है नींद उड़ा दी?
२-६-२०१५
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