विमर्श:
शिष्य दिवस क्यों नहीं?
संजीव
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अभी-अभी शिक्षक दिवस गया... क्या इसी तरह शिष्य दिवस भी नहीं मनाया जाना चाहिए? यदि शिष्य दिवस मनाया जाए तो किसकी स्मृति में? राम, कृष्ण के शिष्य रूप आदर्श कहनेवाले बहुत मिलेंगे किन्तु मुझे लगता है आदर्श शिष्य के रूप में इनसे बेहतर आरुणि, कर्ण और एकलव्य हैं. यदि किसी एक नाम का चयन करना हो तो एकलव्य। क्यों?
सोचिए?
किसी अन्य को पात्र मानते हों तो उसकी चर्चा करें ....
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मैं व्यवसाय से शिक्षक कभी नहीं रहा. हिंदी भाषा, व्याकरण, पिंगल, वास्तु, आयुर्वेद और नागरिक अभियांत्रिकी में जो जानता हूँ, पूछनेवालों के साथ साझा करता रहता हूँ. हिन्दयुग्म, साहित्य शिल्पी, ब्लॉग दिव्यनर्मदा, पत्रिका मेकलसुता, फेसबुक पृष्ठों, ऑरकुट, वॉट्सऐप और अन्य मंचों पर लगातार चर्चा या लेख के माध्यम से सक्रिय रहा हूँ. इस वर्ष शिक्षक दिवस पर विस्मित हूँ कि रायपुर से एक साथी ने जिज्ञासा की कि मैं अपने योग्य शिष्य का नाम बताऊँ।, इंदौर से अन्य साथी ने अभिवादन करते हुई बताया कि उसने समय-समय पर मुझसे बहुत कुछ सीखा है जो उसके काम आ रहा है. युग्म और शिल्पी पर कार्यशालाओं के समय शिष्यत्व का दावा करने वालों को शायद अब नाम भी याद न हो.
विस्मित हूँ यह देखकर कि जन्मदिवस पर १,००० से अधिक मित्रों ने शुभ कामना के संदेश भेजे। इनमें से कई से मैं कभी नहीं मिला. क्या यह औपचारिकता मात्र है या इन शुभकामनाओं में संवेदनशील मन की भावना अन्तर्निहित है?
मानव मन की यह भिन्नता विस्मित करती है. अस्तु…
सभी कामना छोड़कर करता चल मन कर्म
यही लोक परलोक है यही धर्म का मर्म
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