कुल पेज दृश्य

शनिवार, 13 जुलाई 2019

रूप के दोहे

दोहा सलिला 
रूप धूप का दिव्य
*
धूप रूप की खान है, रूप धूप का दिव्य।
छवि चिर-परिचित सनातन, पल-पल लगती नव्य।।
*
रश्मि-रथी की वंशजा, या भास्कर की दूत।
दिनकर-कर का तीर या, सूर्य-सखी यह पूत।।
*
उषा-सुता जग-तम हरे, घोर तिमिर को चीर।
करती खड़ी उजास की, नित अभेद्य प्राचीर।।
*
धूप-छटा पर मुग्ध हो, करते कलरव गान।
पंछी वाचिक काव्य रच, महिमा आप्त बखान।।
*
धूप ढले के पूर्व ही, कर लें अपने काम।
संध्या सँग आराम कुछ, निशा-अंक विश्राम।।
*
कलियों को सहला रही, बहला पत्ते-फूल।
फिक्र धूप-माँ कर रही, मलिन न कर दे धूल।।
*
भोर बालिका; यौवना, दुपहर; प्रौढ़ा शाम।
राग-द्वेष बिन विदा ले, रात धूप जप राम।।
*
धूप राधिका श्याम रवि, किरण गोपिका-गोप।
रास रचा निष्काम चित, करें काम का लोप।।
*
धूप विटामिन डी लुटा, कहती- रहो न म्लान।
सूर्य-़स्नान कर स्वस्थ्य हो, जीवन हो वरदान।।
*
सलिल-लहर सँग नाचती, मोद-मग्न हो धूप।
कभी बँधे भुजपाश में, बाँधे कभी अनूप।।
*
रूठ क्रोध के ताप से, अंशुमान हो तप्त।
जब तब सोनल धूप झट, हँस दे; गुस्सा लुप्त।।
*
आशुतोष को मोहकर, रहे मेघ ना मौन।
नेह-वृष्टि कर धूप ले, सँग-सँग रोके कौन।।
*
धूप पकाकर अन्न-फल, पुष्ट करे बेदाम।
अनासक्त कर कर्म वह, माँगे दाम न नाम।।
*
कभी न ब्यूटीपारलर, गई एक पल धूप।
जगती-सोती समय पर, पाती रूप अनूप।।
*
दिग्दिगंत तक टहलती, खा-सो रहे न आप।
क्रोध न कर; हँसती रहे, धूप न करे विलाप।।
*
salil.sanjiv@gmail.com
13.7.2018, 7999559618

कोई टिप्पणी नहीं: