डीआरडीओ ने सफेद दाग (ल्युकोडर्मा) के इलाज के लिए आयुर्वेदिक उत्पाद जारी किया |
सफेद दाग के इलाज के लिए रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने एक आयुर्वेदिक उत्पाद ल्यूकोस्किन विकसित किया है। इस उत्पाद को जाने-माने वैज्ञानिक और डीआरडीओ में अनुसंधान और संगठन (जीवविज्ञान और अंतरराष्ट्रीय सहयोग) के मुख्य-नियंत्रक, डा. डबल्यू. सेल्वामूर्तिने नई दिल्ली में जारी किया। ल्यूकोस्किन, हल्दवानी स्थित रक्षा जैव उर्जा अनुसंधान संस्थान(डिबेर) के वैज्ञानिकों के व्यापक अनुसंधान का नतीजा है और यह औषध सफेद दाग से प्रभावित लोगों के लिए वरदान साबित होगी। डिबेर, डीआरडीओ की एक प्रयोगशाला है और इसने औषधीय पादपों के क्षेत्र में व्यापक कार्य किया है। यह प्रयोगशाला उर्जा सुरक्षा के समाधानों के लिए जैव उर्जा के उत्पादन में लगी है। ल्युकोस्किन को डीएआरएल के पूर्व निदेशक डा नरेंद्र कुमार के नेतृत्व में विकसित किया गया है। औषध विज्ञान प्रभाग के पूर्व अध्यक्ष डा. पी. एस. रावत और फाइटो-रसायन विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. एच.के.पांडे ने इसके लिए विशेष प्रयास किए। ल्यूकोस्किन दो रूपों में- मरहम और मुँह से लिए जाने वाले तरल पदार्थ के तौर पर उपलब्ध होगा। हल्दवानी स्थित डिबेर के निदेशक डा. जक्वान अहमद और जीव-विज्ञान निदेशक डा. जी. इल्वाजगन ने ल्यूकोस्किन को बाजार में लाने के विशेष प्रयास किए ताकियह सफेद दाग से प्रभावित लोगों को उपलब्ध हो सके। यह औषध रोग से प्रभावित लोगों के लिए नई आशा सिद्ध होगी। डा. डबल्यू. सल्वामूर्तिके मार्गदर्शन में इस औषधिकी प्रौद्योगिकी नई दिल्ली के एआईएमआईएल फार्मास्यूटिकल (इ्ंडिया) लिमिटेड को दे दी गयी है, जो बड़े पैमाने पर ल्यूकोस्किन का उत्पादन कर इसे बाजार में उपलब्ध कराएगी। सफेद दाग एक त्वचा रोग है। इस रोग से ग्रसित लोगों के बदन पर अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग आकार के सफेद दाग आ जाते हैं। विश्व में एक से दो प्रतिशत लोग इस रोग से प्रभावित हैं, लेकिन भारत में इस रोग के शिकार लोगों का प्रतिशत चार से पांच है। राजस्थान और गुजरात के कुछ भागों में पांच से आठ प्रतिशत लोग इस रोग से ग्रस्त हैं। शरीर पर सफेद दाग आ जाने को लोग एक कलंक के रूप में देखने लगते हैं और कुछ लोग भ्रम-वश इसे कुष्ठ रोग मान बैठते हैं। इस रोग से प्रभावित लोग ज्यादातर हताशा में रहते हैं और उन्हें लगता है किसमाज ने उन्हें बहिष्कृत किया हुआ है। इस रोग के एलोपैथी और अन्य चिकित्सा-पद्धतियों में इलाज हैं। शल्य चिकित्सा से भी इसका इलाज किया जाता है, लेकिन ये सभी इलाज इस रोग को पूरी तरह ठीक करने के लिए संतोषजनक नहीं हैं। इसके अलावा इन चिकित्सा-पद्धतियों से इलाज बहुत महंगा है और उतना कारगर भी नहीं है। रोगियों को इलाज के दौरान फफोले और जलन पैदा होती है। इस कारण बहुत से रोगी इलाज बीच में ही छोड़ देते हैं। डिबेर के वैज्ञानिकों ने इस रोग के कारणों पर ध्यान केंद्रित किया है और हिमालय की जड़ी-बूटियों पर व्यापक वैज्ञानिक अनुसंधान करके एक समग्र सूत्र तैयार किया है। इसके परिणामस्वरूप एक सुरक्षित और कारगर उत्पाद ल्यूकोस्किन विकसित किया जा सका है। इलाज की दृष्टिसे ल्यूकोस्किन बहुत प्रभावी है और यह शरीर के प्रभावित स्थान पर त्वचा के रंग को सामान्य बना देता है। इससे रोगी का मानसिक तनाव समाप्त हो जाता है और उसके अंदर आत्मविश्वास बढ़ जाता है। उत्पाद को डा. सल्वामूर्तिने जारी किया। उस समय डा. नरेंद्र कुमार, डा. जक्वान अहमद, डा. जी. इल्वाजगन, एआईएमआईएल फार्मास्यूटिकल के प्रबंध निदेशक श्री के.के.शर्मा और डीआरडीओ तथा एआईएमआईएल फार्मास्यूटिकल के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। |
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गुरुवार, 18 जुलाई 2019
स्वास्थ्य : सफेद दाग
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