दोहा सलिला:
गले मिले दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
जीना मुश्किल हो रहा, जी ना कहते आप.
जीना चढ़िए आस का, प्यास सके ना व्याप..
पान मान का लीजिए, मानदान श्रीमान.
कन्या को वर-दान दें, जीवन हो वरदान..
रखा सिया ने लब सिला, रजक मूढ़-वाचाल.
जन-प्रतिनिधि के पाप से, अवध-ग्रास गया काल..
अवध अ-वध-पथ-च्युत हुआ, सच का वध अक्षम्य.
रम्य राम निन्दित हुए, सीता जननि प्रणम्य..
खो-खो कर ईमान- सच, खुद से खुद ही हार.
खो-खो खेलें झूठ संग, मानव-मति बलिहार..
मत ललचा आकाश यूं, बाँहों में आ काश.
गले दामिनी के लागून, तोड़ देह का पाश..
कंठ कर रहे तर लिये, अपने मन में आस.
तर जाएँ भव-समुद से, ले अधरों पर आस..
अधिक न ढीला छोड़ या, मत कस तार-सितार.
राग और वैराग का, सके समन्वय तार..
तारा दिप दिप दमकता, अगर न तारानाथ.
तारा तारानाथ को, रवि ने किया सनाथ..
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