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गुरुवार, 27 सितंबर 2012

दोहा सलिला: संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
संजीव 'सलिल'
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१. ठेस:
ठेस लगी दिल को बहुत, देखा- करें विवाद.
संसद में भेजा जिन्हें, करने शुभ संवाद..

२. उम्मीद:
आशा पर ही टँगा है, आसमान- सच मान.
निर्बल को करता सबल, प्रभु का यह वरदान..

३. सौन्दर्य:
दिल में बस बेबस करें, मृगनयनी के नैन.
चन्द्रमुखी की छवि विमल, छीने मन का चैन..

४. आश्चर्य:
हाय! ठगा सा रह गया, विस्मय भी है खूब.
विषमय देखा अमिय को, आश्चर्य में डूब..

५. हास्य:
ब्यूटीपार्लर से मिला, उनको रूप-निखार.
कोयल पर चूना गिरा, मरु में छायी बहार..

६. वक्रोक्ति:
 कौन? कामिनी- तो नहीं, करतीं क्यों कुछ काम?
वामा? तो अनुकूल हो, हरदम रहतीं वाम..

७. सीख:
मत पूछो है देश का, क्या तुम पर उपकार?
आगे बढ़ कर्तव्य निज, कर लो अंगीकार..

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