धरोहर :
निराला जी - गिरिजा कुमार माथुर
बाँधो न नाव...
*
बाँधो न नाव इस ठांव बंधु!
पूछेगा सारा गाँव बंधु!!
वह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धँसकर,
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव बंधु!
बाँधो न नाव इस ठांव बंधु!
पूछेगा सारा गाँव बंधु!!
*
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी घुटती थी, सहती थी,
देती थी सबके दाँव बंधु!
बाँधो न नाव इस ठांव बंधु!
पूछेगा सारा गाँव बंधु!!
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इस स्तम्भ में विश्व की किसी भी भाषा की श्रेष्ठ मूल रचना देवनागरी लिपि में, हिंदी अनुवाद, रचनाकार
का परिचय व चित्र, रचना की श्रेष्ठता का आधार जिस कारण पसंद है. संभव हो
तो रचनाकार की जन्म-निधन तिथियाँ व कृति सूची दीजिए. धरोहर में
सुमित्रा नंदन पंत, मैथिलीशरण गुप्त तथा नागार्जुन के पश्चात् अब आनंद लें सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी की रचनाओं
का।
४.स्व. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
निराला जी - गिरिजा कुमार माथुर
बाँधो न नाव...
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बाँधो न नाव इस ठांव बंधु!
पूछेगा सारा गाँव बंधु!!
वह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धँसकर,
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव बंधु!
बाँधो न नाव इस ठांव बंधु!
पूछेगा सारा गाँव बंधु!!
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वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी घुटती थी, सहती थी,
देती थी सबके दाँव बंधु!
बाँधो न नाव इस ठांव बंधु!
पूछेगा सारा गाँव बंधु!!
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3 टिप्पणियां:
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
निराला मेरे प्रिय कवियों में से हैं ! सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई !
सादर,
दीप्ति
pratapsingh1971@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
निराला की यह कविता बहुत ही सुन्दर है.
भूलवश लगता है टाइपिंग की त्रुटि के कारण निम्न अनुच्छेद में कुछ पंक्तियाँ गलत लिख गई हैं --
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
पचकी घुटती थी, बहती थी,
देती थी बचके दाँव बंधु!
सही पंक्तियाँ हैं --
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी सुनती थी, सहती थी
देती थी सबके दांव बंधु !
सादर
प्रताप
sanjiv verma salil ✆ salil.sanjiv@gmail.com kavyadhara
प्रताप जी स्मृति भ्रम को सुधारने हेतु आभार.
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