दोहा सलिला: किरण-कीर्ति
संजीव 'सलिल'
*
सूर्य-चन्द्र बिन किरण के, हो जाते हैं दीन.
तिमिर घेर ले तो लगे, नभ में हुए विलीन..
आस-किरण बिन ज़िंदगी, होती सून-सपाट.
भोर-उषा नित जोहतीं, मिलीं किरण की बाट..
भक्त करे भगवान से, कृपा-किरण की चाह.
कृपा-किरण बिन दे सके, जग में कौन पनाह?
किरण न रण करती मगर, लेती है जग जीत.
करे प्रकाशित सभी को, सबसे सच्ची प्रीत..
किरण-शरण में जो गया, उसको मिला प्रकाश.
धरती पर पग जमा कर, छू पाया आकाश..
किरण पड़े तो 'सलिल' में, देखें स्वर्णिम आभ.
सिकता कण भी किरण सँग, दिखें स्वर्ण-पीताभ..
शरतचंद्र की किरण पा, 'सलिल' हुआ रजिताभ.
संगमरमरी शिलाएँ, हँसें हुई श्वेताभ..
क्रोध-किरण से सब डरें, शोक-किरण से दग्ध.
ज्ञान-किरण जिसको वरे, वही प्रतिष्ठा-लब्ध..
हर्ष-किरण से जिंदगी, होती मुदित-प्रसन्न.
पा संतोष-किरण लगे, स्वर्ग हुआ आसन्न..
जन्म-दिवस सुख-किरण का, पल-पल को दे अर्थ.
शब्द-शब्द से नमन लें, सार्थक हो वागर्थ..
___________________________
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot. com
http://hindihindi.in.divyanarmada
0761 2411131 / 94251 83244
संजीव 'सलिल'
*
सूर्य-चन्द्र बिन किरण के, हो जाते हैं दीन.
तिमिर घेर ले तो लगे, नभ में हुए विलीन..
आस-किरण बिन ज़िंदगी, होती सून-सपाट.
भोर-उषा नित जोहतीं, मिलीं किरण की बाट..
भक्त करे भगवान से, कृपा-किरण की चाह.
कृपा-किरण बिन दे सके, जग में कौन पनाह?
किरण न रण करती मगर, लेती है जग जीत.
करे प्रकाशित सभी को, सबसे सच्ची प्रीत..
किरण-शरण में जो गया, उसको मिला प्रकाश.
धरती पर पग जमा कर, छू पाया आकाश..
किरण पड़े तो 'सलिल' में, देखें स्वर्णिम आभ.
सिकता कण भी किरण सँग, दिखें स्वर्ण-पीताभ..
शरतचंद्र की किरण पा, 'सलिल' हुआ रजिताभ.
संगमरमरी शिलाएँ, हँसें हुई श्वेताभ..
क्रोध-किरण से सब डरें, शोक-किरण से दग्ध.
ज्ञान-किरण जिसको वरे, वही प्रतिष्ठा-लब्ध..
हर्ष-किरण से जिंदगी, होती मुदित-प्रसन्न.
पा संतोष-किरण लगे, स्वर्ग हुआ आसन्न..
जन्म-दिवस सुख-किरण का, पल-पल को दे अर्थ.
शब्द-शब्द से नमन लें, सार्थक हो वागर्थ..
___________________________
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.
http://hindihindi.in.divyanarmada
0761 2411131 / 94251 83244
17 टिप्पणियां:
- sosimadhu@gmail.com
अति आदरणीय संजीव जी
आपकी लेखनी आपकी उँगलियों का स्पर्श पाते ही जादू करने लगती हैं ।
शब्दों के जादूगर को ढेर सारी बधाई
मधु
मधु की सद्भावना ही, बनकर झरे मिठास.
शब्द-शब्द से अर्थ का, होता तब आभास..
छूट गयी है लेखनी, टंकित होते भाव.
'सलिल' विनय प्रभु से करे, हो ना शब्दाभाव..
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
वाह आचार्य जी,
नमन आपकी प्रतिभा को!
सुंदर दोहे,
मन कमल खिला!
संदेश मिला
* *
मिला किरण को आपका जन्म-दिवस सन्देश
हुए कृतारथ हम सभी पढ़ दोहे सनिवेश
सादर
कमल
कमल-किरण जब भी पड़े, पंक हो गया धन्य.
'सलिल'करे नत शिर नमन, आप कृपालु अनन्य..
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
excellent wishes !
=D> applause
kiran [kavyadhara]
आ. सलिल जी,
धन्य है आप की लेखनी
धन्य हैं आप की विचार
आप के उज्ज्वल विचारों ने किया
क्षीण पड़ती किरण का उद्धार
- आप को मेरा बारम्बार नमस्कार
(किरण निरवाल)
kiran
प्रिये साथियों,
क्षमा चाहती हूँ पता नहीं कैसे मेरी ये ई-मेल बार-बार आती जा रही है..
दीप्ति जी, अगर आप काव्यधारा के सर्वर से मेरी ई-मेल रोक सकती हैं तो कृपया रोक दीजिए...धन्यवाद
असुविधा के लिए खेद है
प्रिय किरण जी,
इस काम में, हम जैसे अनाड़ी से आप उम्मीद कर रही हैं कि हम मेल रोक दें!:))laughing
हम तो mail और male किसी को भी रोक पाने में असमर्थ हैं! :(( crying
असमर्थता के लिए खेद है! कोई बात नहीं मेल्स आने दीजिए, अपने आप थम जाएगी!
सस्नेह,
दीप्ति
- shishirsarabhai@yahoo.com
बहुत खूब! What a witty reply Deepti ji! Kiran ji must have enjoyed it.
Regards,
Shishir
Mukesh Srivastava ✆ kavyadhara
मैं भी लिखनेवाला था, अब आपने लिख ही दिया...स्वस्थ वातावरण, स्वस्थ दिलो-दिमाग के लिए हँसना बहुत ज़रूरी है. दीप्ति जी इस बात का ख्याल रखते हुए, हम सबको अक्सर इसी तरह हँसाती रहती हैं.
सराहना और करतल ध्वनि के साथ,
मुकेश
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
क्यों नहीं क्यों नहीं
अवश्य ही अवश्य ही
मेल में जब मेल हो , मेल औ फी-मेल का
बन जाती हैं रचनाएं ज्यो सोने में सुहागा
कमल
ऊषा-संध्या ला रहीं, नित्य किरण की मेल.
सूर्य-चन्द्र की दीप्ति का, 'सलिल' अनूठा खेल..
mail male के मेल को, मत मानें अनमेल.
यहाँ न कुछ बेमेल है, सच मानें female.
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
बहुत मनोहारी, संजीव जी! अतिसुन्दर, अतिप्रभावान..............!
सादर,
दीप्ति
किरण-कीर्ति जिनको रुची, उनका शत आभार.
सुबह-साँझ उनका करे, किरण विहँस सत्कार..
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
वाह, वाह, वाह संजीव जी, बहुत खूब कहा!
- sosimadhu@gmail.com
ईश्वर आपकी लेखनी को असीम सम्पद्दा प्रदान करें। अभाव जैसे शब्दों का रहें सदा अभाव।
मधु (अत्यंत आदर सहित)
एक टिप्पणी भेजें